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जानिए योगा और नमाज की मुद्राओं की समानताएं और हेल्थ बेनिफिट्स
नमाज़ और योग में एक समान बात है ऊर्जा कम से कम खर्च करना और इससे ज़्यादा शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्राप्त करना है।
योगा करना शरीर के लिए कितना लाभदायक ये तो सबको मालूम है लेकिन आप जानते है योगा करना और नमाज अदा करने में कुछ समानताएं होती है। जी हां योगा और नमाज में कई मुद्राओं में समानताएं होती है। योगा और नमाज दोनों के साइंटिफिक फायदे है। इस आर्टिकल के जरिए हम आपको योग और नमाज की मुद्राओं में समानाएं और उसके फायदो के बारे में बताएंगें।
पुरुषों के लिये योगा करने का फायदा
इस
बारे
में
पढ़ने
से
पहले
इन
दोनों
का
मतलब
समझते
है
योग
शब्द
की
उत्पत्ति
संस्कृत
शब्द
“युजा”
से
हुई
है
जिसका
मतलब
है
एकजुटता।
दूसरी
तरफ,
नमाज़
जिसे
“सलात”
कहा
जाता
है
इसकी
उत्पत्ति
हुई
है
अरबी
शब्द
“सिला/विसाल”
से,
इसका
भी
मतलब
है
एकजुटता।
इसका
अर्थ
है
“आत्मा”
का
“परमात्मा”
से
मिलन
या
उस
सर्वशक्तिमान
की
संगत
में
जाना।
इस समानता के अलावा यह बात भी जानिए “तहरात” का मतलब है शुद्धिकरण और “वुजू” (अपमार्जन या धोना) जो कि नमाज़ से पहले ज़रूरी है। ऐसा ही शब्द है “शौच” जो कि योगा से पहले ज़रूरी है। “वुज़ू” नियत (संकल्प) से शुरू होता है, यानि करने की घोषणा, वैसे ही योग भी “संकल्प” से ही शुरू होता है।
नमाज़ और योग में एक समान बात है ऊर्जा कम से कम खर्च करना और इससे ज़्यादा शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्राप्त करना है।
योग करें, धूम्रपान से छुटकारा पाएं
एक दिन की नमाज़ में कुल 48 “रकत” (नमाज़ का पूरा चक्र), जिनमें से 17 “फर्ज़” हैं और हर रकत में 7 मुद्राएं होती हैं। यदि एक नमाज़ी 17 अनिवार्य रकत करता है तो माना जाता है कि वह एक दिन में लगभग 50 मिनट में 119 मुद्राएं करता है।
जीवन में, यदि व्यक्ति हर नमाज़ करता है, तो माना जाता है कि वह लगभग 1,71,3600 “अर्कण” (मुद्राएं) करता है जिससे कि जीवन में उसके कोई बीमारी नहीं होगी।
रीड की हड्डी सीधी होती है
नमाज़ करते समय पहली मुद्रा में एक स्टेंड खड़े होकर, कंधों को सीधे रखते हैं और शरीर का वजन दोनों पैरों पर डालते हैं। आँखें सजदा ( जब कोई दंडवत झुकता है और माथा और नाक ज़मीन को छोटा है) करती हैं और गर्दन वापस पीछे की ओर आती है। इस मुद्रा का फायदा ये हैं कि इससे शरीर और दिमाग रिलेक्स होते हैं क्यों कि शरीर का वजन दोनों पैरों पर पड़ता है और रीड की हड्डी सीधी होती है। सांसें प्राकृतिक रूप से आती हैं, व्यक्ति मजबूत महसूस करता है और विचारों पर पूरी तरह नियंत्रण होता है। "सजदा" पर आँखें गड़ाने से एकाग्रता बढ़ती है।
गर्दन के झुकने पर गर्दन की मुख्य धमनियों पर स्थित कैरोटिड साइनस पर दबाव पड़ता है। इससे संचार और श्वसन प्रणाली नियमित होती है। सामान्य रूप से, ऑक्सीज़न के गिरने और कार्बन डाई ऑक्साइड के बढ्ने से हार्ट रेट बढ़ती है और सांसें भरी होती हैं। गले में हलचल होने से थाइराइड का कार्यप्रणाली सुचारु होती है और पाचन तंत्र नियमित होता है। यह सब 40 सेकंड की मुद्रा में होता है।
मांसपेशियों को मिलता है पौषण
दूसरी मुद्रा में नमाज़ी हथेलियों को घुटनों पर टिकाते हुये और पैरों को सीधा करते हुये झुकता है। शरीर कमर से सीधे एंगल पर झुकता है। यह आसन "पाश्मितोनासन" के समान है जिसमें शरीर के ऊपरी हिस्से में खून पहुंचता है। रीड की हड्डी लचीली होती है और रीड की हड्डी की मांसपेशियों को पोषण मिलता है और घुटनों व पिंडली की मांसपेशियों की टोनिंग होती है। इससे कब्ज में भी आराम मिलता है। यह मुद्रा 12 सेकंड तक के जाती है।
रक्त शुद्धि के लिए
तीसरी मुद्रा में व्यक्ति सिर को उठाकर खड़ा होता है। इससे जो शुद्ध रक्त शरीर के ऊपरी भाग में गया था वो वापस लौटता है। इससे शरीर फिर रिलेक्स होता है। यह 6 सेकंड की मुद्रा है। अगली मुद्रा में नीचे टिकना होता है, घुटने पर टिकना और माथा ज़मीन पर इस प्रकार से टिकाना होता है कि शरीर के सभी 7 भाग ज़मीन पर टिकें।
दिमाग और शरीर के लिए
इस मुद्रा में किनारों पर झुकते हुये अपनी अंतिम अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करना होता है। अपने घुटनों और हाथों पर फर्श पर टिकाते हुये, हम पहले अपने नाक को छूते हैं, फिर माथे को और फिर बाद में घुटने के जोड़ों को छूते हुये एक सीधा एंगल बनाते हैं और गर्दन पर दबाव डालते हैं जो कि पहली मुद्रा का अनिवार्य पोज है।