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देवी ब्रह्मचारिणी: मां दुर्गा का दूसरा रूप
नवरात्री के दिन शुरु हो चुके हैं और मां दुर्गा के भक्तों ने मां खुश करने के लिये व्रत रखना भी शुरु कर दिया है। मां दुर्गा एक शक्ति हैं, जिनके नौ रूप हैं और इन नौं दिनों में हम मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली।
ब्रह्म तप में लीन होने के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी का नाम दिया गया था। भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने घोर तप किया था, इसी वजह से देवी को तपश्चारिणी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
नवरात्र में रहें ऐसे फिट
ब्रह्मचारिणी की कहानी
जब देवी पार्वती को पता चला कि वह भगवान शिव को कितना प्यार करती हैं, तब उन्होनें सोंच लिया कि उन्हें अब किसी भी तहर भगवान शिव को प्रसन्न करना ही है। नारद मुनी ने माता पार्वती को सलाह दी कि अगर उन्हें भगवान शिव को प्रसन्न करना है तो, उन्हें चरम तपस्या और समर्पण का सहारा लेना होगा। तो माता पार्वती ने खुद को कड़ी तपस्या में डुबो लिया। तपस्या करते वक्त उन्हे प्रकृति की बहुत बड़ी मार झेलनी पड़ी लेकिन वह बिल्कुल भी टस से मस नहीं हुईं। मां कालरात्रि की कहानी: अंधेरो की रानी
कठिन तप करते वक्त उन्होनें खाना पीना सब कुछ छोड़ रखा था। कई सालों की पतस्या के बाद भगवान शिवा ने पार्वती जी की तपस्या को स्वीकारा और उन्हें अपनी पत्नी बनने की अनुमती दी। भगवन ने इतनी साधना और कड़ा तप देख कर माता पार्वती के इस रूप को ब्रह्मचारिणी का नाम दिया।
ब्रहमचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। मात्र एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चन्दन माला लिए हुए प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य क्रोध रहित और तुरन्त वरदान देने वाली देवी हैं। नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है।