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जानिये, क्या है वैकुण्ठ एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
ऐसा माना जाता है कि अगर आप इस एकादशी में व्रत रखते हैं तो यह साल की 23 एकादशी के बराबर है। आइये जानते हैं कि क्यों यह एकादशी इतनी महत्वपूर्ण हैं और क्यों इसे वैकुण्ड एकादशी के नाम से जाना जाता है।
भारत विविधताओं और एकता का देश है। जहाँ हर राज्य की एक अलग धार्मिक मान्यताएं और उससे जुड़ी पोशाकें हैं। यहाँ इतने सारे धार्मिक त्यौहार मनाएं जाते जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।
उसी में से एक है वैकुण्ठ एकादशी जो वैष्णव यानि विष्णु जी की पूजा करने वाले बड़ी धूम धाम से मानाते हैं। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष की धनु मार्गाजहि के महीने में मनाया जाता है।
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भी
पढ़ें-
जानिये
भगवान
तिरुपति
बालाजी
की
अनोखी
कहानी
यह
साल
में
दिसंबर
और
जनवरी
के
बीच
में
पड़ता
है।
इस
दिन
सारे
हिन्दू
भगवान
विष्णु
की
पूजा
करते
हैं
और
व्रत
रखते
हैं।
ऐसा
माना
जाता
है
कि
अगर
आप
इस
एकादशी
में
व्रत
रखते
हैं
तो
यह
साल
की
23
एकादशी
के
बराबर
है।
आइये
जानते
हैं
कि
क्यों
यह
एकादशी
इतनी
महत्वपूर्ण
हैं
और
क्यों
इसे
वैकुण्ड
एकादशी
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
साथी
ही
इसे
मनाने
का
आध्यात्मिक
महत्व
भी
जानेगें।
1.
मुक्कोटि
एकादशी
वैकुण्ठ
एकादशी
को
मुक्कोटी
एकादशी
के
नाम
से
भी
जाना
जाता
है।
ऐसा
मन
जाता
है
कि
इस
दिन
भगवान
विष्णु
की
पूजा
करने
से
मनुष्य
की
आत्मा
विष्णु
जी
के
चरणों
में
शांति
प्राप्त
करती
है
जिससे
उसे
जन्म
और
मृत्यु
के
चक्र
से
मुक्ति
मिल
जाती
है।
इसलिए
इस
दिन
उपवास
रखा
जाता
है।
यह भी पढ़ें- तिरूपति भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति की कुछ अनोखी बातें
2.
वैकुण्ठ
एकादशी
की
कथा
वैकुण्ठ
एकादशी
मानाने
के
पीछे
बहुत
दिलचस्प
कहानी
है।
एक
बार
मुरण
नामक
दानव
के
आक्रमण
से
देवता
बहुत
परेशान
थे,
जिसकी
वजह
से
देवता
भगवान
शिव
के
पास
मदद
मांगने
गए।
लेकिन
भगवान
शिव
ने
उन्हें
विष्णु
जी
के
पास
जाने
को
कहा,
क्योंकि
भगवान
विष्णु
के
पास
वह
हथियार
था
जिससे
मुरण
को
हराया
जा
सकता
था।
जिसके
बाद
उनका
नाम
बद्रिकाश्रम
पड़
गया।
एक
दिन
जब
भगवान
विष्णु
आराम
कर
रहे
थे
तो
मुरण
ने
उन्हें
मारने
की
कोशिश
की,
इसी
बीच
उनके
शरीर
से
स्त्री
ऊर्जा
निकली
और
मुरण
को
राख
में
बदल
दिया।
जिसके
बाद
भगवान
विष्णु
ने
उसका
नाम
एकादशी
रखा
और
उसे
वरदान
दिया
कि
इस
दिन
जो
भी
व्रत
रखेगा
उसे
सीधे
वैकुण्ड
में
स्थान
मिलेगा।
3.
वैकुण्ड
का
महत्व
धार्मिक
मान्यता
के
अनुसार,
वैकुण्ड
भगवान
विष्णु
और
देवी
लक्ष्मी
का
निवास
स्थान
है।
वैकुण्ड
का
अर्थ
है
जहाँ
किसी
चीज़
की
कमी
नहीं
है।
जहाँ
अहंकार
समाप्त
हो
जाता
है
और
आप
पूरी
तरह
अपने
आपको
विष्णु
जी
को
समर्पित
कर
देते
हैं।
जब
आप
वैकुण्ड
एकादशी
का
उपवास
रखते
हैं
तो
आप
मोक्ष
प्राप्त
कर
लेते
हैं।
4.
वैकुण्ड
के
दुवार
खुलना
हिन्दू
मान्यताओं
के
अनुसार
जो
मनुष्य
भगवतगीता
का
पाठ
करता
है
और
उसकी
शिक्षा
दूसरों
को
देता
है
उसके
लिए
वैकुण्ड
के
दुवार
खुल
जाते
हैं।
जब
कोई
व्यक्ति
ज्ञान,
भक्ति
और
कर्म
योग
में
लीन
हो
जाता
है
तो
उसके
लिए
वैकुण्ड
के
दुवार
अपने
आप
खुल
जाते
हैं।
5.
नकारात्मक
विचारों
से
आज़ादी
वैकुण्ड
एकादशी
के
दिन
देवता
और
असुरों
द्वारा
समुद्र
मंथन
किया
गया
था।
देवता
सकारात्मक
ऊर्जा
का
प्रतीक
हैं
और
असुर
नकारात्मक
ऊर्जा
का
प्रतीक
हैं।
समुद्र
मंथन
में
हलाहल
(जहर)
बाहर
निकाला
था
जो
कि
मानव
मन
के
नकारात्मक
विचारों
को
दिखता
है।
जब
सारे
नकारात्मक
विचार
दूर
हो
जाते
हैं
तो
भगवान्
विष्णु
के
आशीर्वाद
से
मानुष
वैकुण्ड
पहुँच
जाता
है।
यह
है
वैकुण्ड
एकादशी
का
महत्त्व।
जिसे
विश्वास
और
श्रद्धा
से
किया
जाए
तो
उसे
भगवान
विष्णु
का
आशीर्वाद
मिलता
है।