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क्‍या है कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर का अक्षय तृतीया से संबंध?

अक्षय तृतीया के दिन लोग कोल्‍हापुर स्थितमहालक्ष्मी के मंदिर उनके दर्शन करने के लिए जाते है। आइए जानते है इस मंदिर का अक्षया तृतीया से क्‍या सबंध है।

By Arunima Mishra
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अक्षय तृतीया सुख समृद्धि से जुड़ा पर्व है। चूंकि सोना समृद्धि का प्रतीक है और समृद्धि कभी क्षय न हो इसलिए लोग अक्षय तृतीया को सोना खरीदते हैं। तथा अक्षय तृतीया को वैभव लक्ष्मी की श्री विष्णु के साथ पूजा की जाती है। धन के देवता माने जाने वाले कुबेर की पूजा भी अक्षय तृतीया के दिन की जाती है। इस दिन भगवान शिव पार्वती तथा गणेश भगवान की भी पूजा की जाती है।

देवी महालक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी कहा जाता है और अक्षय तृतीया के दिन इनकी पूजा कर आशीर्वाद लेने का सबसे शुभ दिन है। अक्षय तृतीया के दिन लोग महालक्ष्मी के मंदिर जाते हैं उनके दर्शन करने के लिए। जिससे उनपर उनकी कृपा बनी रहे।

इसीलिए आज हम महालक्ष्मी के प्रसिद्ध मंदिर की बात करने जा रहें हैं। यह महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। बताया जाता है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर 1800 साल पुराना है और इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य ने देवी महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन कई श्रद्धालु दूर दूर से यहांं दर्शन करने आते हैं।

कोल्हापुर महालक्ष्मी की कहानी

कोल्हापुर महालक्ष्मी की कहानी

इस मंदिर को लेकर ऐतिहासिक मान्यता यह है कि इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी को 'अम्बा बाई' के नाम से पूजा जाता है। कोल्हापुर देवी महालक्ष्मी की कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार ऋषि भृगु के मन में शंका उत्पन हुई कि त्रिमूर्ती के बीच में कौन सबसे श्रेष्ठ है। इसे जाने के लिए पहले वे ब्रह्मा के पास गए और बुरी तरह उनसे बात की। जिससे ब्रह्मा को क्रोध आ गया। इससे ऋषि भृगु को यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्मा अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते अतः उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा किसी भी मंदिर में नहीं होगी। इसके बाद वे शिव जी के पास गए लेकिन नंदी ने उन्हें प्रवेश द्वार पर ही यह कह कर रोक दिया कि शिव और देवी पार्वती दोनों एकान्त में हैं। इस पर ऋषि भृगु क्रोधित हुए और शिव जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा लिंग के रूप में होगी।

इसके बाद वे विष्णु जी के पास गए और देखा कि भगवान विष्णु अपने सर्प पर सो रहे थे और देवी महालक्ष्मी उनके पैरों की मालिश कर रहीं थी। यह देख ऋषि भृगु क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु छाती पर मारा। इससे भगवान विष्णु जाग गए और ऋषि भृगु से माफी मांगी और कहा कि कहीं उन्हें पैरो में चोट तो नहीं लग गयी। यह सुन कर ऋषि भृगु वहं से भगवान विष्णु की प्रशंसा करते हुए वापस चले गए। लेकिन ऋषि भृगु के इस व्यवहार को देख कर देवी महालक्ष्मी क्रोधित हो गयी और उन्हों ने भगवान् विष्णु से उन्हें दंडित करने को कहा। लेकिन भगवान विष्णु इसके लिए राज़ी नहीं हुए।

भगवान विष्णु के बात ना मानने पर देवी लक्ष्मी ने वैकुंठ त्याग दिया और कोल्हापुर शहर चली गयी। वहाँ उन्हों ने तपस्या की जिससे भगवान विष्णु ने भगवान वेंकटचलपति रूप में अवतार लिया। इसके बाद उन्होंने देवी पद्मावती के रूप में देवी लक्ष्मी को शांत किया और उनके साथ विवाह किया।

 मूर्ति

मूर्ति

महालक्ष्मी की प्रतिमा काली और ऊंचाई करीब 3 फीट लंबी है। मंदिर के एक दीवार में श्री यंत्र पत्थर पर खोद कर चित्र बनाया गया है। देवी की मूर्ति के पीछे देवी की वाहन शेर का एक पत्थर से बनी प्रतिमा भी मौजूद है। देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के शेषनाग नागिन का चित्र भी रचाया गया है। देवी महालक्ष्मी के चारों हाथों में अमूल्य प्रतीक वस्तुओं को पकड़ते दिखाई देते है। निचले दाहिने हाथ में निम्बू फल धारण किये (एक खट्टा फल), ऊपरी दाएँ हाथ में गधा के साथ (बड़े कौमोदकी जो अपने सिर जमीन को छुए), ऊपरी दाई हाथ में एक ढाल (खेटका) और निचले बाएँ हाथ में एक कटोरे लिए (पानपात्र) देखें जातें है। अन्य हिंदू पवित्र मंदिरों में देवीजी पूरब या उत्तर दिशा को देखते हुए मिलते हैं लेकिन यहाँ देवी महालक्ष्मीजी पश्चिम दिशा को निरीक्षण करते हुए मिलते है। वहाँ पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की मिलती है, जिसके माध्यम से सूरज की किरणें हर साल मार्च और सितंबर महीनों के 21 तारीख के आसपास तीन दिनों के लिए देवीजी की मुख मंडल को रोशनी करते हुए इनके पद कमलों में शरण प्राप्त करते हैं।

 शक्ति पीठों में से एक

शक्ति पीठों में से एक

51 शक्तिपीठ में एक कोल्हपुर शक्तिपीठ है। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। महादेव के अपमान से क्रोधित हो कर माता सती ने यग्न कुंड मे अत्मदेह कर लिया। माता सती के आत्मदाह का आभास होते महादेव तड़प उठे और सारा ब्रह्मांड उनकी क्रोधाग्नि मे जलने लगा। तत्पश्चात महादेव यग्न स्थान पर प्रकट हुए और उन्होने माता सती के शव को अपनी भुजाओ मे लेकर तांडव आरंभ कर दिया। उनके क्रोध की अग्नि मे सारा संसार झर-झर जलने लगा और सभ कुछ भस्म होने लगा। महादेव को शांत करने का उपाय देवताओ के पास नहीं था एसी परिस्थिति मे भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए माता सती के शरीर को ५१ भागो मे विभाजित कर दिया जो इस धरती के अलग-अलग जगहों पर जा गिरे और पाषाण के रूप मे स्थापित हो गए। वे सभी स्थान जहाँ पर माता सती के ५१ अंग पाषाण के रूप मे स्थापित हुए वहीं आज ५१ शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते है।

 कोल्हापुर की अंबाबाई की पूजा के लिए मंत्र जाप

कोल्हापुर की अंबाबाई की पूजा के लिए मंत्र जाप

1. || ओम सर्वबाड़ा विनम्रुको, धन ध्यायाह सूटेनवीता मनुश्या माताप्रसादन आशीर्वाद भावना संप्रशाय ओम || 2. || ओम श्री महालक्ष्मीई चा विदर्भ विष्णु पेट्राई चाई धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रोक्योदय ओम || 3. || ओम श्रृंग श्रीै नमः || 4. || ओम हिंग क्लिंग महालक्ष्मीई नमः ||

English summary

The Story Of Kolhapur Maha Lakshmi & Akshaya Tritiya

Read to know the story of Maha Lakshmi temple in Kolhapur and the mantras that you should chant on Akshaya Tritiya.
Story first published: Thursday, April 27, 2017, 12:41 [IST]
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