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कामाख्या मंदिर का ऐसा रहस्य, जिसे सुनते ही हो जाएंगे दंग
भारत में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जो कामाख्या मंदिर जितनी रहस्यमयी और मायावी हो। यह मंदिर गुवहाटी से 8 किमी दूर कामागिरी या नीलाचल पर्वत पर स्थित है। इसे आलौकिक शक्तियों और तंत्र सिद्धि का प्रमुख स्थल माना जाता है।
आइये दर्शन करते हैं भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों के
कामाख्या
मंदिर
का
अम्बुबासी
मेला
कामाख्या
मंदिर
51
शक्तिपीठों
में
से
एक
है।
कहा
जाता
है
कि
यहां
सति
देवी
का
योनि
भाग
गिरा
था।
यही
वजह
है
कि
यह
मंदिर
सति
देवी
की
योनि
का
प्रतिनिधित्व
करता
है।
सति
देवी
के
स्वःत्याग
से
क्रोधित
होकर
भगवान
शिव
ने
विनाश
का
नृत्य
अर्थात
तांडव
किया
था।
साथ
ही
उन्होंने
पूरी
धरा
को
नष्ट
करने
की
चेतावनी
भी
दी
थी।
READ: भारत में लोग पेड़ों की पूजा क्यों करते हैं?
इसे देखते हुए भगवान महा विष्णु ने सति देवी के शरीर को अपने चक्र से 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। शरीर का हर हिस्सा पृथ्वि के अलग-अलग हिस्से में जाकर गिरा। कामागिरि वह जगह है जहां देवी का योनि भाग गिरा था। यह भी कहा जाता है कि यहां सति देवी भगवान शिव के साथ आया करती थी।
कामाख्या माता:
तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है।
पूजा का उद्देश्य: महिला योनी
मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। इसकी जगह एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीला रहता है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस जल के नियमित सेवन से बीमारियां भी दूर होती हैं।
समस्त रचना की उत्पत्ति
महिला योनि को जीवन का प्रवेश द्वार माना जाता है। यही कारण है कि कामाख्या को समस्त निर्माण का केंद्र माना गया है।
रजस्वला देवी
पूरे भारत में रजस्वला यानी मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है। लड़कियों को इस दौरान अकसर अछूत समझा जाता है। लेकिन कामाख्या के मामले में ऐसा नहीं है। हर साल अम्बुबाची मेला के दौरान पास की नदी ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। तीन दिन बाद श्रद्धालुओं की मंदिर में भीड़ उमड़ पड़ती है। सभी देवी के मासिक धर्म से गीले हुए वस्त्र को प्रसाद स्वरूप लेने के लिए पहुंचते हैं।
जननक्षमता का पर्व
अम्बुबासी या अम्बुबाची मेला को अमेती और तांत्रिक जनन क्षमता के पर्व के रूप में भी जाना जाता है। अम्बुबाची शब्द की उत्पत्ति ‘अम्बु' और ‘बाची' शब्द से हुई है। अम्बु का अर्थ होता है पानी जबकि बाची का अर्थ होता है उत्फुल्लन। यह पर्व स्त्री शक्ति और उसकी जनन क्षमता को गौरवान्वित करता है। इस दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं, जिससे इसे पूर्व का महाकुम्भ भी कहा जाता है।
तंत्र सिद्धि और तंत्र विद्या का स्थल
अकसर यह सोचा जाता है कि तंत्र विद्या और काली शक्तियों का समय गुजर चुका है। लेकिन कामाख्या में आज भी यह जीवन शैली का हिस्सा है। अम्बुबाची मेला के दौरान इसे आसानी से देखा जा सकता है। इस समय को शक्ति तांत्रिक की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। शक्ति तांत्रिक ऐसे समय में एकांतवास से बाहर आते हैं और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। इस दौरान वे लोगों को वरदान अर्पित करने के साथ-साथ जरूरतमंदों की मदद भी करते हैं।
तंत्र की उत्पत्ति
इस क्षेत्र के आसपास कई तांत्रिक मंत्र पाए गए हैं जिससे स्पष्ट है कि कामाख्या मंदिर के आसपास इसका महत्वपूर्ण आधार है। ऐसा माना जाता है कि अधिकांश कौल तांत्रिक की उत्पत्ति कामापूरा में हुई है। सामान्य धारणा यह है कि कोई भी व्यक्ति तब तक पूर्ण तांत्रिक नहीं बन सकता जब तक कि वह कामाख्या देवी के सामने माथा न टेके।
तंत्र विद्या: अच्छाई के लिए और बुराई के लिए
ऐसा कहा जाता है कि कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। कहते हैं कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं।
पशुओं की बलि
बकरे और भैंस की बलि यहां आम बात है। हालांकि किसी मादा पशु की बलि पूरी तरह से वर्जित है। इसके अलावा कन्या पूजा और भंडारा के जरिए भी कामाख्या माता को प्रशन्न किया जाता है।
काला जादू और श्राप से छुटकारा
मंदिर के आसपास रहने वाले अघोड़ी और साधू के बारे में कहा जाता है कि वे काला जादू और श्राप से छुटकारा दिलाने में समर्थ होते हैं।
दस महाविद्या
मुख्य मंदिर जहां कामाख्या माता को समर्पित है, वहीं यहां मंदिरों का एक परिसर भी है जो दस महाविद्या को समर्पित है। ये महाविद्या हैं- मातंगी, कामाला, भैरवी, काली, धूमावति, त्रिपुर सुंदरी, तारा, बगुलामुखी, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी। इससे यह स्थान तंत्र विद्या और काला जादू के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह स्थान प्रचीन खासी था जहां बलि दी जाती थी। कामाख्या मंदिर एक ऐसी जगह है जहां अंधविश्वास और वास्तविकता के बीच की पतली लकीर अपना वजूद खो देती है। यानी कि यहां जादू, आस्था और अंधविश्वास का अस्तित्व एक साथ देखने को मिलता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक। अगर आप रहस्यवाद को करीब से देखना चाहते हैं तो यहां जरूर जाएं।