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जानिए, गंगा नदी कैसे हुई धरती पर अवतरित?

आइये जानते हैं पवित्र नदी गंगा के बारे में, कैसे वो धरती पर आई और इससे जुड़ी पौरोणिक कथाओं के बारे में।

By Super Admin
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भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति की किसी न किसी रुप में पूजा होती है। प्राकृतिक स्त्रोतों को यहां देवी देवता की संज्ञा ही नहीं दी जाती बल्कि पौराणिक कथाओं के जरिये उनकी पूजा करने का विधान बनाया गया है। हर देवी-देवता का अपना पौराणिक इतिहास है। ऐसा ही इतिहास मोक्षदायिनी, पापमोचिनी मां गंगा का भी है। गंगा हिंदूओं धर्म के मानने वालों के लिये आस्था का एक मुख्य केंद्र है।

मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। आइये जानते हैं गंगा नदी की कहानी कैसे धरती पर अवतरित हुई गंगा मैया।

गंगा ब्रह्मा की पुत्री

गंगा ब्रह्मा की पुत्री

भगवान विष्‍णु बौने ब्राह्मण का भेष धर बलि के पास प‍हुँचे। बलि को इस बात का बोध था कि उसके समक्ष स्‍वयं भगवान विष्णु उपस्थित हैं। क्‍योंकि वहाँ उपस्थित उसके गुरु शुक्राचार ने विष्‍णु को पहचान लिया था और बलि को इसके प्रति आगाह कर दिया था। अपने वचन पर बने रहते हुए बलि ने झुककर नमन करते हुए वामन ब्राह्मण से मनचाहा वर माँगने का आग्रह किया। ब्राह्मण ने उससे तीन कदम जमीन माँगी। राजा तुरन्‍त तैयार हो गया और ब्राह्मण को तीन कदम जमीन नाप लेने को कहा। और तभी जैसे चमत्‍कार हुआ, वामन ब्राह्मण ने विशाल आकार धारण किया, त्रिविक्रम का । त्रिविक्रम ने पहले कदम में पूरी धरती माप ली। दूसरे कदम में पूरा आकाश। अब तीसरे कदम के लिए कुछ शेष बचा न था। राजा बलि ने तीसरे कदम के लिए अपना सिर आगे कर दिया। तीसरा पैर बलि के सिर पर रख त्रिविक्रम ने बलि को पाताल लोक भेज दिया। पाताल लोक, तीसरा लोक जहाँ सर्प और असुरों का वास था। जब त्रिविक्रम का पैर आकाश नाप रहा था तब ब्रह्मा ने उनके चरण धोए थे क्‍योंकि यह भगवान विष्‍णु के भव्‍य रूप के चरण जो थे और उस पानी को उन्‍होंने अपने कमण्‍डल में इकट्ठा कर लिया था। यही पवित्र जल गंगा, जो आगे चल कर ब्रह्मा की पुत्री कहलाई।

दुर्वासा का अभिशाप

दुर्वासा का अभिशाप

ब्रह्मा की देखरेख में गंगा हँसते-खेलते बड़ी हो रही थी। एक दिन ऋषि दुर्वासा वहाँ आए और स्‍नान करने लगे तभी हवा का एक तेज झोंका आया और उनके कपड़े उड़ गए। यह सब देख पास ही खड़ी गंगा अपनी हँसी को रोक नही पाई और जोर से हँस पड़ी। गुस्‍से में दुर्वासा ने गंगा को श्राप दे डाला कि वह अपना जीवन धरती पर एक नदी के रूप में व्‍यतीत करेगी और लोग खुद को शुद्ध करने के लिए उसमें डुबकियाँ लगाएँगे।

भागीरथ की तपस्या

भागीरथ की तपस्या

राजा सागर ने खुद को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए अश्‍वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस खबर से देवराज इन्‍द्र को चिन्ता सताने लगी कि कहीं उनका सिंहासन न छिन जाए। इन्‍द्र ने यज्ञ के अश्‍व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के एक पेड़ से बांध दिया। जब सागर को अश्‍व नहीं मिला तो उसने अपने 60 हजार बेटों को उसकी खोज में भेजा। उन्‍हें कपिल मुनि के आश्रम में वह अश्‍व मिला। यह मानकर कि कपिल मुनि ने ही उनके घोड़े को चुराया है, वो पेड़ से घोड़े को छुड़ाते हुए शोर कर रहे थे। उनके शोरगुल से मुनि के ध्‍यान में बाधा उत्‍पन्‍न हुई। और जब उन्‍हें पता चला कि ये यह सोच रहे हैं कि मैने घोड़ा चुराया है तो वे अत्‍यन्‍त क्रोधित हुए। उनकी क्रोधाग्नि वाली एक दृष्टि से ही वे सारे राख के ढेर में तब्‍दील हो गए। वे सारे अन्तिम संस्‍कारों की धार्मिक क्रिया के बिना ही राख में बदल गए थे। इसलिए वे प्रेत के रूप में भटकने लगे। उनके एकमात्र जीवित बचे भाई आयुष्‍मान ने कपिल मुनि से याचना की वे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे उनके अन्तिम संस्‍कार की क्रियाएं हो सकें ताकि वो प्रेत आत्‍मा से मुक्ति पाकर स्‍वर्ग में जगह पा सकें। मुनि ने कहा कि इनकी राख पर से गंगा प्रवाहित करने से इन्‍हें मुक्ति मिल जाएगी। गंगा को धरती पर लाने के लिए ब्रह्मा से प्रार्थना करनी होगी। कई पीढि़यों बाद सागर के कुल के भागीरथ ने हजारों सालों तक कठोर तपस्‍या की। तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर ब्रह्मा ने गंगा को धरती पर उतारने की भगीरथ की मनोकामना पूरी कर दी।

 शिव की जटाओं में गंगा

शिव की जटाओं में गंगा

गंगा बहुत ही उद्दंड और शक्तिशाली नदी थी। वे यह तय करके स्‍वर्ग से उतरीं कि वे अपने प्रचण्‍ड वेग से धरती पर उतरेंगी और रास्‍ते में आने वाली सभी चीजों को बहा देंगी। शिव को गंगा के इस इरादे का अन्‍दाजा था इसीलिए उन्‍होंने गंगा को अपनी जटाओं में कैद कर लिया। भागीरथ ने तब शिव को मनाया और फिर उन्‍होंने गंगा को धीरे-धीरे अपनी जटाओं से आजाद किया। और तब गंगा भागीरथी के नाम से धरती पर आईं। इस तरह से गंगा का धरती पर बहना शुरू हुआ और लोग अपने पाप धोने उसमें पवित्र डुबकी लगाने लगे।

गंगा सप्तमी

गंगा सप्तमी

एक बार ऋषि जहानू ने गंगा के पानी को पिया क्योंकि गंगा के वेघ से ऋषि जानु का आश्रम को बर्बाद हो गया था और केवल भगवान और राजा भगीरथ द्वारा विनती करने के बाद, उन्होंने वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी को एक बार फिर गंगा अपने नथुनों के दुवारा आज़ाद कर दिया था। उसके बाद से यह देवी गंगा के पुनर्जन्म को चिन्हित हो गया है और उसे ‘जानु सप्तमी' भी कहा जाने लगा। देवी गंगा को ऋषि जानु की बेटी होने के लिए ‘जानवी' भी कहा जाता है।

पूर्वजों का मोक्ष

पूर्वजों का मोक्ष

इस तरह गंगा धरती पर आयी और भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष दिया। इसके बाद वे पटला गंगा के नाम से जानी जाने लगीं।

English summary

The Story Of Mother Ganga

Read to know what are the stories that are associated with goddess Ganga such as Ganga Saptami.
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