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जानें, हिंदू धर्म में जन्म से लेकर दाह संस्कार तक क्यूं करवाया जाता है मुंडन
मुंडन संस्कार और किसी की मुत्यु पर बाल मुंडवाने की प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है। पर ऐसा वास्तव में क्यों किया जाता था आइए जानते है इस बारे में
क्यों हिंदू धर्म में जन्म से लेकर दाह संस्कार तक मुंडन करवाना जरुरुी?हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में छोटी रखने का महत्व है। वैदिककाल में महिलाएं और पुरुष सभी शिखा और चोटी धारण करते थे। हर धार्मिक कार्य या किसी की मुत्यु हो जाने पर मुंडन किया जाता था। और हिंदू समाज में मुंडन संस्कार और किसी की मुत्यु पर बाल मुंडवाने की प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है। पर ऐसा वास्तव में क्यों किया जाता था आइए जानते है इस बारे में
हिन्दू धर्म में जब मुंडन संस्कार होता है या उपनयन संस्कार के समय भी मुंडन करवाने के बाद चोटी या चुंडी रखी जाती है। प्रत्येक हिन्दू को यह करना होता है।
आश्रमकाल में पहले यह संस्कार करते समय यह तय किया जाता था कि बच्चों को ब्राह्मणत्व ग्रहण करना है अथवा क्षत्रियत्व या वैश्यत्व। उसके अनुसार ही मुंडन के बाद बच्चों को शिक्षा दी जाती थी।
मुंडन संस्कार
बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर उसके बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। माना जाता है कि मुंडन के बाद बच्चें का सर पूरी तरह से खाली हो जाता है। जिससे सर और शरीर पर विटामिन डी यानी धूप की रोशनी सीधी पड़ती है, जिससे कोशिकाएं जागृत होकर नसों में रक्त परिसंचरण अच्छे से कर पाती है जिससे नए बाल बहुत अच्छे होते है।
जेनऊ संस्कार
हिन्दू धर्म का एक अहम रिवाज़ है जनेऊ संस्कार। इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है, इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ भी कहते हैं। वैदिक काल में बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। उसके पहले वह पढ़ाई के लिए नहीं जा सकता था। वैदिक काल में 7 वर्ष की आयु में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जाता था। आजकल तो 3 वर्ष की आयु में ही स्कूल में दाखिला लेना होता है।
सुषुम्ना नाड़ी है मस्तिष्क का केंद्र
असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचो-बच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचो-बीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है। भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है।
इच्छा पूरी होने पर
हमने देखा कई जगह होता है जब किसी की मन्नत या इच्छा पूरी होती है तो हिंदू धर्म में मुंडन करवाया जाता है। यह परम्परा तिरुपति और वाराणसी में बहुत प्रचलित है।
क्यों है मुंडन संस्कार जरुरी
मुंडन संस्कार स्वास्थ्य से जुड़ा है। जन्म के बाद बच्चे का मुंडन किया जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं। यह हानिकारक तत्व साधारण तरह से धोने से नहीं निकल सकते इसलिए एक बार बच्चे का मुंडन जरूरी होता है। अत: जन्म के 1 साल के भीतर बच्चे का मुंडन कराया जाता है।
इसलिए है दाह संस्कार के समय मुंडन जरुरी
कुछ ऐसा ही कारण मृत्यु के समय मुंडन का भी होता है। जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो उसमें से भी कुछ ऐसे ही जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं। नदी में स्नान और धूप में बैठने का भी इसीलिए महत्व है। सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है।