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महत्वपूर्ण संस्कार है चरण स्पर्श
हमारी भारतीय संस्कृति में अपनों से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना एक सदगुण माना गया है। अथर्ववेद में भी बड़ों को प्रणाम की महत्ता को बताया गया है। प्राचीनकाल से ही माता पिता , गुरुओं, बडे़ बुजुर्गों आदि के चरण स्पर्श करने की परंपरा रही है। कोई भी व्यक्ति कितना ही क्रोधी स्वभाव का हो, अपवित्र भावनाओं वाला हो यदि उसके भी चरण स्पर्श किये जाते हैं तो उसके मुख से आशिर्वाद, दुआएं, सदवचन ही निकलता है।
मनुष्य के शरीर में यानी उत्तरी ध्रुव यानी सिर से सकरात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों में ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। हाथों और पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के पोरों में यह ऊर्जा सर्वाधिक रूप से रहती है।
सामान्य तौर पर जब हम किसी का चरण स्पर्श करते हैं उसके हाथ सजह ही हमारे सिर पर जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक का विकास सहज होने लगता है।
चरणामृत
को
माना
अमृत
जब
भी
हम
मंदिर
जाते
हैं
तो
वहां
ताम्रपात्र
में
रखा
तुलसी
दल,
केसर,
चंदन
से
बना
चरणामृत
प्रसाद
के
रूप
में
पाते
हैं।
चरणामृत
वह
तत्व
है
जो
ऊर्जा
,
उत्साह,
शक्ति
और
दीर्घायु
प्रदान
करता
है।
चरणों
की
महिमा
गौतम
ऋषि
की
पत्नी
अहिल्या
श्राप
के
कारण
पत्थर
की
मूरत
बन
गई
थी
और
भगवान
के
चरण
स्पर्श
से
शाप
मुक्त
होकर
वापिस
मानव
रूप
में
आ
गई।
प्रभु
के
चरणों
की
महिमा
का
बखान
हर
ग्रंथ
में
है।
पौराणिक
मान्यता
प्राचीन
समय
में
जब
ऋषि,
मुनि
या
संतजन
किसी
राज
दरबार
में
आते
थे
तो
राजा
महाराजा
पहले
शुद्ध
जल
से
उनके
पैर
धुलते
थे।
उसके
बाद
ही
चरण
स्पर्श
की
परंपरा
पूर्ण
करते
थे।
चरण
स्पर्श
से
पहले
चरण
धोने
के
पीछे
संभवत,
यह
वैज्ञानिक
कारण
रहा
होगा
कि
चरण
में
एकत्रित
विघुत
चुंबकीय
उर्जा
चल
कर
आने
से
अत्यधिक
तीव्रता
से
प्रवाहित
और
गर्म
होती
है।
शीतल जल से धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है। फिर जो व्यक्ति चल कर आता है , उसकी मानसिक और शारीरिक थकान , बेचैनी के कारण वह आशीवार्द देने की स्थिति में नहीं होता है। जल से वह भी सामान्य स्थिति में आ जाता है।