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बदलते मौसम में ऐसे करें शिशुओं की देखभाल
सिरसा। हर मां-बाप अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं। नवजात शिशु को लेकर यह चिंता और भी ज्यादा रहती है। उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम आ चुका है। ऐसे में शिशु की देखभाल कैसे कि जाए इस बारे में हमने सिरसा के नवजीवन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ व न्यूनोलॉजिस्ट डॉ. अशोक पारिक से बातचीत की। बदलते मौसम में शिशुओं की देखभाल कैसे की जाए इस बारे में डॉ. पारिक कहते हैं-
आमतौर पर पेरेंट्स शिशु को सर्दी से बचाव के लिए उसकी छाती को दो या तीन मोटे ऊनी कपड़ों से ढक देते हैं लेकिन उसके पैरों व सिर को नहीं ढकते। लोगों में भ्रामकता रहती है कि शिशु को ठंड छाती के जरीये जल्दी लगती है। जबकि इसके उल्टे पैरों व सिर से सर्दी ज्यादा लगती है।
शिशु की छाती को ज्यादा ढककर रखना नुकसानदायक
डॉ. पारिक ने कि हमारा शरीर दो प्रकार की सैल से बंटा है। पहला ब्राऊन है तथा दूसरा वाइट। शरीर में 75 प्रतिशत ब्राऊन पार्ट पेदाइशी होता है जोकि हमारी छाती व पीठ का होता है। यह भाग हमारे शरीर को न्यूनतम से न्यूनतम तथा अधिकतम से अधिकतम तापमान में भी सुरक्षित रखता है। शिशु के शरीर के नीचे का हिस्सा तापमान के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता है।
तापमान के असंतुलन का होना शिशु को बीमार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉ. पारिक कहते हैं कि दुनिया में 30 प्रतिशत शिशुओं की मौत का कारण लूज मोशन, निमोनिया व सांस की बीमारी से होती है। हमारे देश में शिशुओं में होने वाली मौत का यह आंकड़ा 40 प्रतिशत तक है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय पोलियो उन्मूलन, रक्तदान, एड्स सहित अनेक बीमारियों को लेकर तो जागरूकता अभियान चलाती है लेकिन शिशुओं की इन गंभीर बीमारियों को लेकर कोई जागरूकता अभियान नहीं चला रही।
ऐसे
करें
शिशु
की
ठंड
से
देखभाल
डॉ.
पारिक
का
कहना
है
कि
सर्दी
में
शिशुओं
की
देखभाल
के
लिए
उनके
शरीर
को
तीन
भागों
में
विभाजित
करके
समझना
होगा।
पेट
से
नीचे
का
भाग
ज्यादा
संवेदनशील
होती
है
इसलिए
बच्चे
चाहे
चलने
लगे
या
नहीं
उसके
पैरों
को
ढंक
कर
रखना
चाहिए।
उसकी
छाती
के
भाग
को
उतना
ही
ढकना
चाहिए
जितनी
जरूरत
हो
तथा
तीसरा
भाग
है
सिर।
शिशु को ऊनी टोपी पहनाकर रखनी चाहिए। कपड़ा ऐसा होना चाहिए कि शिशु को पर्याप्त ऑक्सिजन मिलती रहे। इसके अलावा शिशु को बदलते तापमान में नहीं ले जाना चाहिए। जैसे की हीटर वाले कमरे में रहने के बाद बाहर के मौसम में ले जाना। शिशु को ऐसी परिस्थिती से बचना चाहिए। शिशु की देखभाल के लिए अपने डॉक्टर से समय-समय पर सलाह लेनी चाहिए।