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खास बच्‍चों के लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट

By सुश्री सुरभि वर्मा
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जब किसी के इर्द-गिर्द स्थिति अनुकूल नहीं हो तो हर आदमी तनाव का शिकार होता है। इस तरह न केवल वयस्‍क, बल्कि बच्‍चों के भी तनावग्रस्‍त होने का खतरा है। सौ में से 13 बच्‍चे किसी न किसी तरह की चिंता से जुड़ी समस्‍याओं से ग्रस्‍त होते हैं और कई तो तनाव के भी शिकार होते हैं!

अगर बच्‍चे की कोई खास जरूरत हो तो यह चुनौती कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे बच्‍चे माहौल में थोड़ा भी परिवर्तन होने पर खुद को तनाव में महसूस करने लगते हैं और इस बारे में किसी को बताने में भी असमर्थता महसूस कर सकते हैं। आम तौर पर बच्‍चों में तनाव बाहरी कारणों के चलते आता है, लेकिन कभी-कभी यह उनके अंदर से भी आता है। ऐसा अक्‍सर तब होता है जब हम यह सोचते हैं कि क्‍या करना चाहिए और असल में हम क्‍या कर सकते हैं।

सीखने में मुश्किल का सामना करने वाले या ऑटिज्‍म, अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिव डिजॉर्डर (एडीएचडी) या शारीरिक/ आनुवांशिक कमी के शिकार बच्‍चों के लिए यह कमी उनके अंदर निराशा और नाकामी का भाव भरने के लिए पर्याप्‍त है। खास जरूरत वाले ऐसे बच्‍चों को सिर्फ स्‍कूल भेजना ही काफी नहीं है। उन्‍हें कुछ दूसरे पेशेवर लोगों के पास भेजा जाना भी जरूरी है जो उनके व्‍यवहार और शिक्षा को बेहतर बनाने में मदद कर सके और तनावग्रस्‍त होने से बचा सके। तनावग्रस्‍त बच्‍चों का व्‍यवहार असामान्‍य हो सकता है। वह बिस्‍तर गीला कर सकता है, लगातार रो सकता है, झल्‍ला सकता है। अगर तनाव खतरनाक स्‍तर तक बढ़ गया या काफी लंबे समय तक लगातार रह गया तो कई बार बच्‍चों के लिए घातक भी हो सकता है। इसका सबसे आसान शारीरिक लक्षण लगातार फ्लू होने जैसे लक्षण दिखना, सर-पेट में दर्द, मिचली, खाने व सोने की आदतों में अचानक परिवर्तन, खाना नहीं पचना, सुस्‍ती छाए रहना आदि है।

अगर आपका बच्‍चा ऐसा खास जरूरत वाला है और वह ऐसी हरकत करता है तो बेहतर है कि यह समझा जाए कि उसके व्‍यवहार में परिवर्तन किस वजह से हो रहा है? कौन सी चिंता या स्‍ट्रेस देने वाली बात इसका कारण हो सकती है? अगर किसी बच्‍चे के व्‍यवहार में समस्‍या हो तो ज्‍यादातर मामलों में हम यह भी पाएंगे कि बच्‍चा अंदर ही अंदर किसी बात की चिंता से परेशान है। इसे पहचान लेने के बाद यह तय करना आसान हो जाता है कि बच्‍चे को उस माहौल से निकाल कर कैसे उसे चिंतामुक्‍त किया जाए।

(लेखिका सुश्री सुरभि वर्मा, निदेशक, स्‍पर्श फॉर चिल्‍ड्रेन, के पास ऑटिज्‍म स्‍पेक्‍ट्रम डिजॉर्डर, लर्निंग डिफिकल्‍टी, इेंटेलेक्‍चुअल डिजैबिलिटी, डाउन्‍स सिंड्रोम, स्‍लो लर्नर्स, अटेंशन डेफिसिट डिजॉर्डर आदि समस्‍याओं से पीडि़त बच्‍चों पर काम करने का भारी अनुभव है। उनकी विशेषज्ञता दो से 15 साल के बच्‍चों के मामले में है।)

 बच्‍चों के आस पास का माहौल

बच्‍चों के आस पास का माहौल

बच्‍चे के आसपास का माहौल ऐसा बनाएं जहां उसे कुछ भी जटिल नहीं लगे, वह उसकी सोच के एकदम करीब हो। सही-गलत किसी भी व्‍यवहार का सुनिश्चित परिणाम बताना, पिक्‍चर शेड्यूल बनाना आदि इसमें मददगार साबित हो सकता है। इससे बच्‍चे की चिंता कम होती है क्‍योंकि वे जानते हैं कि आगे क्‍या अपेक्षित है?

उन्‍हें बताएं कि परिवर्तन से कैसे निपटना है

उन्‍हें बताएं कि परिवर्तन से कैसे निपटना है

उन्‍हें बताएं कि परिवर्तन से कैसे निपटना है और निराशाजनक याअनअपेक्षित स्थिति का मुकाबला कैसे करना है? इसमें रोल प्‍ले करके बताना और ‘अगर/तब' वाली स्थिति में हालात बयां करते हुए चीजों को समझाना मददगार साबित हो सकता है। हम बच्‍चों को यह सिखाना चाहते हैं कि समय के साथ कैसे चलना है और परिवर्तन के साथ कैसे सामंजस्‍य बिठाना है।

उसका रूटीन चेंज करें

उसका रूटीन चेंज करें

रोज मर्रा के रूटीन में बच्‍चे के सामने विकल्‍प रखें, ताकि एकरसता नहीं बने और उसे यह अहसास हो कि चीजों पर उसका खुद का नियंत्रण भी है। हालांकि, विकल्‍प देते समय यह ध्‍यान रखें कि उसके सामने चुनने की स्थिति हो। मसलन, ‘तुम नहाने के पहले खेलना चाहोगे या बाद में?' विकल्‍प देने से बच्‍चों को यह अहसास होता है कि उसकी दुनिया पर उसी का नियंत्रण है और इस तरह वह चिंतामुक्‍त होता है। हम सबसे ज्‍यादा चिंतित कब होते हैं? जब हमें लगता है कि हमारा कोई वश ही नहीं है, हमारी कोई सुनता ही नहीं है। यह बात खास जरूरत वाले बच्‍चों के मामले में भी लागू होती है।

बच्‍चों को जो शांत रखे उसकी सूच‍ी बनाएं

बच्‍चों को जो शांत रखे उसकी सूच‍ी बनाएं

उन तरीकों या उपायों की सूची बना लें जो अतीत में बच्‍चे को शांत करने में कारगर साबित हुई हो। उदाहरण के लिए कोई बच्‍चा तैरने या कोई खास संगीत सुनने या नहाने के बाद शांत और सुकून में रहता है। तनाव भरा या तनाव बढ़ाने वाला कोई काम खत्‍म होते ही बच्‍चे को उसकी मनपसंद गतिविधि करने दें। यह जहां एकरसता तोड़ेगा, वहीं बच्‍चे को बाकी दिन के लिए शांत रहने की शक्ति भी देगा।

बच्‍चे को वक्‍त देना

बच्‍चे को वक्‍त देना

हर बच्‍चे को कुछ वक्‍त अपने लिए चाहिए होता है। वह वक्‍त जिस दौरान बच्‍चा जो चाहे, जैसे चाहे, करे। यह तनाव कम करने का बेहद कारगर तरीका है, क्‍योंकि बच्‍चा तनाव से बाहर आने के लिए खुद वो तरीके अपनाता है जो उसे पसंद है और खुद उसने अपने स्‍तर से विकसित किए होते हैं। भले ही यह तरीका किसी घेरे के चारो ओर दौड़ना या बैठ कर खिड़की के बाहर निहारना जैसी बेहद सामान्‍य गतिविधि के रूप में ही क्‍यों न हो।

ना पाले बिल्‍कुल उम्‍मीद

ना पाले बिल्‍कुल उम्‍मीद

कई बार तनाव का कारण माता-पिता का बच्‍चे से जरूरत से ज्‍यादा उम्‍मीद पाल लेना होता है। इस तरह वे अपना तनाव बच्‍चे के ऊपर लाद देते हैं। इसलिए माता-पिता को बच्‍चे से उम्‍मीद पालने के मामले में सावधान रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे खुद बच्‍चों के तनाव का कारण नहीं बनें। उन्‍हें हर हाल में अपने बच्‍चों को यही संदेश देना चाहिए कि उन्‍हें अपने बच्‍चे पर गर्व है और वे हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे।

कुछ जरुरी बातें

कुछ जरुरी बातें

सीखने की समस्‍या से पीडि़त बच्‍चों को तनाव से राहत दिलाने के उपाय तलाशते वक्‍त यह याद रखें कि आप उनकी मदद के रास्‍ते तलाश रहे हैं और उन्‍हीं की मदद करें। बच्‍चों की मनोदशा अलग-अलग होती है और इसलिए तनाव से निपटने और रोज मर्रा की मुश्किलों का सामना करने की उनकी क्षमता भी अलग-अलग होती है। वैसे बच्‍चे जिन्‍हें अपनी क्षमता का आभास होता है और जिन्‍हें यह यकीन होता है कि उन्‍हें सब प्‍यार करते हैं और मदद देने के लिए तैयार रहते हैं, ज्‍यादा जल्‍दी तनाव से बाहर आते हैं।

English summary

Stress Managment Tips For Special Children

Ms. Surabhi Verma is the Director of Sparsh for Children and works with children having special needs. She has been working with children with different abilities since 2002. She has a wide range of experience working with children with neurological disorders like Autism Spectrum Disorder, Learning Difficulty, Intellectual Disability, Down’s Syndrome, Slow Learners, Attention Deficit Disorder over the past 6 years.
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