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महाशिवरात्रि: कथा के बिना अधूरा माना जाता है महाशिवरात्रि का व्रत
शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का दिन बेहद खास होता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने तथा उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन उनकी उपासना की जाती है। इस मौके पर मंदिरों में खास इंतजाम किए जाते हैं। श्रद्धालु व्रत रखते हैं और मंदिर जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भक्त भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने के साथ ही महाशिवरात्रि की कथा सुनते हैं। माना जाता है कि कथा के बिना व्रत अधूरा रहता है। आप महाशिवरात्रि की व्रत कथा यहां पढ़ सकते हैं।
महाशिवरात्रि व्रत की कथा
इस कथा के अनुसार एक जंगल में शिकारी रहता था। वह जानवरों का शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। गरीबी के कारण उसे गांव के साहूकार से ऋण लेना पड़ा। समय पर ऋण न चुका पाने के कारण साहूकार ने उसे जल्द पैसे देने के लिए जोर दिया। साहूकार के क्रोध से बचने के लिए शिकारी ने उससे समय मांगा और जंगल में शिकार की खोज में जा निकला।
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शिवरात्रि के दिन पहुंचा जंगल
शिकारी जिस दिन जंगल पहुंचा वो संयोगवश शिवरात्रि का दिन था। वो भूखे प्यासे शिकार की तलाश में भटकता रहा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। वो एक तालाब के किनारे पेड़ पर चढ़ गया और तालाब में पानी पीने आने वाले जानवरों की प्रतीक्षा करने लगा। संयोग से वह बेल के वृक्ष पर बैठा था और उसके नीचे शिवलिंग बना हुआ था। अनजाने में ही शिकारी के हाथों उस शिवलिंग पर बेल पत्र गिर गए। इस प्रकार शिकारी ने बिना कुछ खाए-पीए शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाए।
नजर आया शिकार
शिकारी ने देखा एक हिरणी तलाब के समीप पानी पीने आई है। शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ाकर निशाना लगाया। मगर किसी कारणवाश हिरणी वहां से भाग गई। रात के पहले प्रहर तक शिकारी को कुछ भी नहीं मिल पाया।
कुछ ही समय बाद एक और हिरणी तालाब के नजदीक दिखाई दी। मगर इस बार फिर शिकारी उस पर बाण नहीं चला पाया। शिकार पाने की इस जद्दोजेहद में उसके हाथ से कुछ बेलपत्र टूट कर शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार से दूसरे प्रहर की पूजा भी शिकारी ने अनजाने में पूरी कर ली।
शिकारी उस वक्त परेशान हो गया जब तीसरे प्रहर में भी उसके साथ ठीक पहले और दूसरे प्रहर की तरह घटना घटी। वह हिरण को देखकर भी उसका शिकार नहीं कर पाया।
तालाब पर पहुंचा हिरण का परिवार
इस बार तालाब पर हिरण अपने पूरे परिवार के साथ पहुंचा। हिरण का झुंड देखकर शिकारी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने धनुष पर एक बार फिर बाण चढ़ाया और अनजाने में बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरे।
चारों प्रहर भूखे प्यासे रहकर शिकारी ने एक तरह से उपवास रखा और अनजाने में ही शिवलिंग की पूजा भी की। शिकार की तलाश में वह पलक भी नहीं झपक पाया था।
संयोगवश शिवरात्रि के मौके पर हुई इस पूरी घटना से शिकारी का मन निर्मल हो गया था। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप भस्म हुए और उसके मन में दयालुता का भाव पैदा हो गया। उसने हिरणों को मारने का विचार तुरंत ही छोड़ दिया। शिकारी को आत्मग्लानि हुई और उसके आंखों से आंसू बहने लगे। भगवान शिव के आशीर्वाद से शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।