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जानिये आयुर्वेद में खड़े होकर पानी पीने के लिए क्यों मना किया जाता है ?
पानी पीने का भी एक वैज्ञानिक तरीका है जिसे सीखा जा सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप इस तरीके से पानी पिएं कि आपकी प्यास बुझ जाए और बार-बार आपको पानी पीने की जरूरत न महसूस हो।
मानव शरीर के कुल वजन का लगभग दो तिहाई भाग पानी होता है। इसलिए भरपूर मात्रा में पानी पीना आवश्यक है यह शरीर से गंदगी को बाहर निकालता है और ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद करता है।
प्रतिदिन हमारे शरीर से काफी मात्रा में पानी निकलता है। पानी इस तरीके से पीना चाहिए कि हमारे शरीर के अंगों तक पर्याप्त मात्रा में पानी पहुंच सके। पानी को एक ही बार में गटक कर पीने से हमारे शरीर को जितने पानी की जरूरत होती है वह उतना पानी अवशोषित नहीं कर पाता है।
पानी
पीने
का
भी
एक
वैज्ञानिक
तरीका
है
जिसे
सीखा
जा
सकता
है।
इसलिए
यह
जरूरी
है
कि
आप
इस
तरीके
से
पानी
पिएं
कि
आपकी
प्यास
बुझ
जाए
और
बार-बार
आपको
पानी
पीने
की
जरूरत
न
महसूस
हो।
हम अक्सर प्यास लगने पर सिर्फ ये देखते हैं कि पानी ठंडा है या गरम और फिर बिना कुछ सोचे ही पानी पी लेते हैं। जबकि घर के बुजुर्गों की बात माने तो वे हमेशा समझाते हैं कि खड़े होकर कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए। यह जानना सच में दिलचस्प है कि आखिर खड़े होकर पानी पीने से क्या नुकसान है?
हमने पाया कि आयुर्वेद को मानने वाले अक्सर एक ऐसी जीवन शैली अपनाते हैं जो कि प्रकृति के अनुरूप है। जब आप खड़े होकर पानी पीते हैं तो आपके शरीर की नसें तनाव की स्थिति में होती हैं। तब यह सिम्पैथेटिक सिस्टम को सक्रिय करने या उससे लड़ने की कोशिश करता है। इसके आपका शरीर बीमारियों से ठीक से लड़ नहीं पाता है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. धन्वंतरी का मानना है कि खड़े होकर पानी पीने की धारणा पूरी तरह से आपके पानी पीने की स्पीड पर निर्भर करती है। दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े होते हैं और ऐसे में पानी पीने की गति का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
डॉ. धन्वंतरी कहते हैं अक्सर कहा जाता है कि खड़े होकर पानी पीने से पानी पीने की गति बढ़ जाती है और यह तभी होता है जब आपको आर्थाराइटिस या ज्वांइट डैमेज की शिकायत हो। उनके अनुसार ऋगवेद में इस मुद्रा का उल्लेख किया गया है जो कि पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
आयुर्वेद विज्ञान में भी इस विशेष वाक्य का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि यह सच है कि किसी भी खाद्य पदार्थ को धीरे-धीरे खाना चाहिए। धीरे-धीरे खाने से खाना डाइजेस्ट होने में आसानी होती है और यही नियम पानी के साथ भी लागू होता है।
पानी को हवा की तरह लगातार और धीरे-धीरे लेना चाहिए। तेज गति से पानी पीने से खाद्य नली में आक्सीजन हवा के साथ कम मात्रा में पहुंचती है इससे संभवतः हृदय और फेफड़े की समस्या बढ़ सकती है।
यह बातें किसी मिथक से कम नहीं लगतीं कि खड़े होकर पानी पीने से इसका स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव पड़ता है। अगर आप बैठकर भी तेज गति से पानी पीते हैं तो भी उसका यही प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें की पानी घूंट-घूंट में पीना चाहिए। चूंकि खड़े होकर पानी पीने पर यह तेजी से नीचे पेट में उतरता है इसलिए डॉक्टर ऐसा करने से मना करते हैं।
पुरानी कहानियों में विश्वास रखने वाले अक्सर इस तरह के विचारों का पालन करते हैं। इसका कारण अब हमें पता चला है। हालांकि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है लेकिन अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि हम प्रकृति के करीब रहे और उसके नियमों की अनदेखी न करें। इसलिए धीरे धीरे पानी पीने की आदत डालें।