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ट्यूबरक्लोसिस (टी.बी.) के लिए प्रभावी घरेलू उपचार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2015 में भारत में 2.5 लाख लोग टी.बी. से पीड़ित थे। पूरे विश्व में टी.बी. से ग्रसित कुल 9.6 लाख लोगों में से 2.5 लाख लोग भारत में थे। यह एक चौंका देने वाली संख्या है।
विश्व टीबी दिवस: टीबी के आम लक्षण
ट्यूबरक्लोसिस या टी.बी. एक संक्रामक बीमारी है जो "मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस" नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। टी.बी. मुख्य तौर पर फेफड़ों का संक्रमण होता है परन्तु यह शरीर के अन्य भागों में भी फ़ैल सकता है। टी.बी के लक्षणों में सांस लेने में परेशानी, लगातार कफ़ बने रहना, थकान, बुखार और छाती में दर्द शामिल हैं। यदि सही समय पर टी.बी. का उपचार नहीं किया गया तो यह घातक सिद्ध हो सकती है।
आयुर्वेद में टी.बी. को राजयक्ष्मा कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कई बीमारियों के पीछे दोधों की खराबी मुख्य कारण होता है। आयुर्वेद में टी.बी. के उपचार के लिए कई प्रभावी जडी बूटियाँ और औषधियां बताई गयी हैं।
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तो आइए टी.बी. के उपचार में सहायक इन जडी बूटियों के बारे में जानें। हालाँकि इस बात का ध्यान रखें कि पहले आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह लें तथा जान लें कि कौन सी दवाई आपके लिए बेहतर होगी तथा आप किस दवाई का सेवन कर सकते हैं।
लहसुन
लहसुन
में
उपस्थित
औषधीय
गुणों
के
कारण
आयुर्वेद
में
इसका
उपयोग
औषधि
की
तरह
किया
जाता
है।
इसमें
सल्फ़र
नामक
तत्व
पाया
जाता
है
जो
टी.बी.
के
बैक्टीरिया
को
रोकता
है।
इसमें
एलीसिन
और
अजोएने
नामक
तत्व
भी
पाए
जाते
हैं
जो
इस
बैक्टीरिया
को
बढ़ने
से
रोकते
हैं।
यह
प्रतिरक्षा
तंत्र
को
भी
मज़बूत
बनाता
है।
प्रतिदिन
लहसुन
की
कुछ
कलियाँ
खाएं
या
एक
गिलास
दूध
में
लहसुन
के
रस
की
दस
बूँदें
मिलाकर
प्रतिदिन
पीयें।
सहजन
की
फली
आमतौर
पर
ड्रमस्टिक
का
उपयोग
स्वादिष्ट
व्यंजनों
जैसे
सांभर
आदि
में
किया
जाता
है;
परन्तु
बहुत
कम
लोग
यह
जानते
हैं
कि
टी.बी.
से
ग्रसित
लोगों
के
लिए
इसकी
पत्तियां
भी
उपयोगी
हैं।
इसके
प्रदाहनाशी
और
एंटीबैक्टीरियल
गुण
के
कारण
आयुर्वेदिक
एक्सपर्ट
इसका
उपयोग
करने
की
सलाह
देते
हैं।
इसका
प्रदाहनाशी
गुण
बैक्टीरिया
के
कारण
फेफड़ों
में
आने
वाली
सूजन
को
नियंत्रित
रखता
है
तथा
इसका
एंटीबैक्टीरियल
गुण
बैक्टीरिया
को
दूर
करने
में
सहायक
होता
है।
इन
पत्तियों
में
कई
विटामिन्स
और
खनिज
पाए
जाते
हैं
जो
अनेक
बीमारियों
से
लड़ने
के
लिए
प्रतिरक्षा
तंत्र
को
मज़बूत
बनाते
हैं।
ड्रमस्टिक
का
रस
निकालें।
इसमें
नमक
और
काली
मिर्च
डालें
तथा
टी.बी.
और
इसके
लक्षणों
को
दूर
करने
के
लिए
प्रतिदिन
खाली
पेट
इसका
सेवन
करें।
काली
मिर्च
काली
मिर्च
कई
बीमारियों
जैसे
टी.बी.
आदि
से
लड़ने
में
सहायक
होती
है।
वास्तव
में
आयुर्वेदिक
चिकित्सक
कई
बीमारियों
के
उपचार
हेतु
औषधियों
में
काली
मिर्च
का
प्रयोग
करते
हैं।
यह
फेफड़ों
की
सफ़ाई
करती
है,
इसमें
उपस्थित
विषैले
पदार्थों
को
बाहर
निकालती
है
तथा
टी.बी.
के
छाती
में
होने
वाले
दर्द
को
कम
करती
है।
काली
मिर्च
को
घी
में
तल
लें।
अब
इसकी
पेस्ट
बनायें
तथा
टी.बी
के
कारण
होने
वाली
की
परेशानी
को
दूर
करने
के
लिए
सुबह
इसका
सेवन
करें।
ग्रीन
टी
हम
सभी
जानते
हैं
कि
वज़न
कम
करने
के
लिए
ग्रीन
टी
एक
उत्तम
उपाय
है।
परन्तु
क्या
आप
जानते
हैं
कि
ग्रीन
टी
टी.बी.
के
लिए
भी
एक
उत्तम
उपचार
है?
इसमें
प्रचुर
मात्रा
में
एंटीऑक्सीडेंटस
पाए
जाते
हैं
जो
शरीर
से
मुक्त
विषैले
पदार्थों
को
बाहर
निकालते
हैं
तथा
आपके
प्रतिरक्षा
तंत्र
को
मज़बूत
बनाते
हैं।
इसमें
पॉलीफिनॉल
भी
पाया
जाता
है
जो
टी.बी.
पैदा
करने
वाले
बैक्टीरिया
को
बाहर
निकालने
में
सहायक
होता
है।
टी.बी.
की
समस्या
को
दूर
रखने
के
लिए
दिन
में
दो
बार
ग्रीन
टी
पीयें।
पुदीना
पुदीना
आपके
खाने
के
स्वाद
को
बढ़ाता
है
परन्तु
यह
टी.बी.
से
ग्रसित
लोगों
के
लिए
उपचार
के
समान
है।
इसका
एंटीबैक्टीरियल
गुण
टी.बी.
पैदा
करने
वाले
बैक्टीरिया
से
लड़ने
में
सहायक
होता
है।
यह
फेफड़ों
में
स्थित
बलगम
को
पिघलाता
है
तथा
इसे
स्वस्थ
रखता
है।
पुदीन,
शहद
और
माल्ट
विनेगर
प्रत्येक
को
1:1:½
के
अनुपात
में
लेकर
रस
बनायें।
½
गिलास
गाजर
के
रस
में
इसे
मिलाएं।
यह
टी.बी.
के
लिए
एक
उत्तम
उपचार
है।