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समुद्र के अलावा पहाड़ों से भी मिलता है नमक, आयुर्वेद के अनुसार जाने प्रकार और फायदे
आयुर्वेद के अनुसार सही मात्रा में और शरीर में मौजूद दोष यानी बीमारी के अनुसार नमक का सेवन करने से हम उस दोष से मुक्ति पा सकते हैं। हम में से ज्यादात्तर लोग जानते हैं कि नमक समुद्र से बनता है। लेकिन आयुर्वेद में नमक के अलग-अलग प्रकारों के बारे में उल्लेख मिलता है।
समुद्र से प्राप्त नमक के अलावा भी कई प्रकार के नमक होते है। जिनका भोजन बनाने से लेकर कई तरह अन्य कामों में प्रयोग होता है। आज हम आपको सोमा और काला नमक के बारे में बताएंगे जिन्हें आयुर्वेद में भी औषधि के रुप में जाना जाता है।
सोमा नमक
सोमा नमक, इसे सफेद हिमालय नमक के नाम से भी जाना जाता है। इस नमक में अन्य लवण की तुलना में आग और पानी के तत्व कम पाएं जाते हैं, इसलिए यह हल्का होता है और सूजन को कम करने में मदद कर सकता है। आयुर्वेद के अनुसार गर्मियों में इस नमक का उपयोग करना काफी अच्छा होता है। इसे सैंधा या पहाड़ी नमक भी कहा जाता है। पहाड़ी नमक पाचन बढ़ाने वाला तथा भूख कम होने में उपचार के काम आता है, किंतु यह कफ नहीं बढ़ाता।
हिमालया गुलाबी नमक
हिमालय के आसपास चट्टानों में पाया जाने वाला नमक। खासकर ये
पाकिस्तान में हिमालय क्षेत्रों के आसपास प्राचीन समुद्री तट के आसपास खनन से हिमालया गुलाबी नमक बहुतायत में पाया जाता है। इस नमक में पोटेशियम, आयरन और मैग्नेशियम जैसे खनिज पाएं जाते हैं। गुलाबी रंग का नमक खाने में भी स्वाद बढ़ाता है। गहरे गुलाबी रंग की तुलना में हल्का गुलाबी खाने के साथ स्वास्थय के लिए भी सेहतमंद होता है। आयुर्वेद के अनुसार ये तीनों दोष कफ, पित्तवर्धक तथा वातरोधक को नियंत्रित करता है। लेकिन एक सामान्य दिनचर्या में सामान्य नमक का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
काला नमक
हमारे घरों में कई बार काला नमक भी यूज में लिया जाता हैं। खांसकर खांसी या कफ की समस्या होने पर। आयुर्वेद के अनुसार काले नमक में लौह तत्व और गंधक समेत 80 तरह के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। इस नमक में उच्च स्तर पर अग्नि तत्व पाएं जाते है जो शरीर को बहुत गर्म करता है। सामान्य रूप से इस नमक का पितदोष में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए । काला नमक शरीर को स्वस्थ रखने का सबसे अच्छा उपाय है। अगर आप इसका रोजाना सेवन करते हैं तो एक निश्चित मात्रा में करें।
मिनरल और आयोडीन नमक
हिमालय नमक की तरह ही प्राकृतिक मिनरल नमक का मुख्य स्त्रोत समुद्र होता है। इसमें आयोडीन की मात्रा खूब पाई जाती है। आयोडीन दिमागी विकास में मदद करता है और वजन को नियंत्रित रखने में सहायता करता है। इसे टेबल सॉल्ट भी कहाजाता है। आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि की समस्या भी हो सकती है।
समुद्री नमक
यह नमक वाष्पीकरण के जरिए बनाया जाता है और यह सादा नमक की तरह नमकीन नहीं होता है। आयुर्वेद के अनुसार समुद्री नमक या सी-सॉल्ट का सेवन पेट फूलना, तनाव, सूजन, आंत्र गैस और कब्ज जैसी समस्याओं के वक्त सेवन करने की सलाह दी जाती है। इस नमक में भरपूर मात्रा में जिंक, केल्शियम, पोटेशियम, आयरन और आयोडीन पाए जाते है। इसका डेली रुटीन में इस्तेमाल किया जाता है।
लो-सोडियम सॉल्ट
इस नमक को पौटेशियम नमक भी कहा जाता है। हालांकि सादा नमक की तरह इसमें भी सोडियम और पौटेशियम क्लोराइड होते हैं। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या होती हैं उन्हें लो सोडियम सॉल्ट का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा हदय रोगी और मधुमेह रोगियों के लिए भी यह नमक फायदेमंद होता है।