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क्या आपमें से भी मछली जैसी बदबू आती है, ये फिश ओडर सिंड्रोम तो नहीं
फिश ओडर सिंड्रोम को ट्राइमेथिलमिनुरिआ के नाम से भी जाना जाता है जो कि एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की सांस, पसीने, प्रजनन तरल पदार्थ और यूरिन से सड़ी मछली जैसी बदबू आती है। ये अनुवांशिक बीमारी जन्म के कुछ समय बाद ही सामने आ जाती है।
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दूसरों के सामने आने और उनके साथ उठने-बैठने में दिक्कत होती है और ये मनोवैज्ञानिक बीमारी जैसे कि डिप्रेशन भी दे सकता है। इस विकार से ग्रस्त व्यक्ति में से बदबू आने के अलावा और कोई गंभीर लक्षण या समस्या नज़र नहीं आती है। आंकडों की मानें तो इस अनुवांशिक बीमारी की चपेट में महिलाएं ज़्यादा आती हैं।
लक्षण
इस अनुवांशिक बीमारी का कोई खास लक्षण नहीं है बल्कि इससे ग्रस्त व्यक्ति भी सामान्य लोगों की तरह ही स्वस्थ जीवन जीता है। किसी इंसान से आने वाली गंध से ही इसका पता चल जाता है। जेनेटिक टेस्ट या यूरिन टेस्ट से भी इसका पता लगाया जा सकता है कि उस इंसान को फिश ओडर सिंड्रोम है या नहीं।
क्या है फिश ओडर सिंड्रोम का कारण
ये सिंड्रोम एक मेटाबोलिक विकार है जोकि एफएमओ3 जीन में परिवर्तन की वजह हो सकता है। ये जीन शरीर को वो एंज़ाइम स्रावित करने के लिए कहता है जो कि नाइट्रोजन, ट्राइमिथेलाइन जैसे यौगिकों को तोड़ने का काम करता है। ये यौगिक हाइग्रोस्कोपिक, ज्वलनशील, पारदर्शी और दिखने में फिश जैसे रंग के होते हैं। इस ऑर्गेनिक यौगिक की मौजूदगी की वजह से शरीर में से इस तरह की गंध आने लगती है।
इस बीमारी से ग्रस्त हर इंसान में एक अलग तरह की गंध आती है। कुछ लोगों में से बहुत तेज़ गंध आती है तो किसी में से कम। एक्सरसाइज़ करने के बाद या इमोशनल होने या स्ट्रेस में होने पर इस तरह की गंध ज़्यादा आती है। माहवारी के दौरान और मेनोपॉज़ में महिलाओं के लिए ये स्थिति और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाती है। गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं के लिए भी ये परेशानी का सबब बन जाता है।
जांच
यूरिन टेस्ट और जेनेटिक टेस्ट के ज़रिए आप फिश ओडर सिंड्रोम का पता लगा सकते हैं।
यूरिन टेस्ट: जिन लेागों के यूरिन में ट्राइमिथइलामाइन का स्तर बढ़ जाता है उनमें इस बीमारी के लक्षण देखे जाते हैं। इस यूरिन टेस्ट के लिए मरीज़ को कोलिन का डोज़ पीने के लिए दिया जाता है।
जेनेटिक टेस्ट: जेनेटिक टेस्ट में एफएमओ3 जीन की जांच की जाती है। इस तरह के जेनेटिक विकार का पता लगाने के लिए कैरिअर टेस्टिंग भी की जा सकती है।
इस गंध को कम करने के लिए ध्यान रखें ये बातें
मछली, अंडा, लाल मांस, बींस और दाल आदि में ट्राइमिथइलामाइन, कोलीन, नाइट्रोजन, सारनिटाइन, लेसिथिन और सल्फर होता है जिसकी वजह से ऐसी दुर्गंध तेज़ हो सकती है। इन चीज़ों को खाने से बचें।
एंटीबायोटिक्स जैसे कि मेट्रोनिडाजोल और निओमाइसिन से ट्राइमिथइलामाइन का आंत में उत्पादन कम हो सकता है।
राइबोफ्लेविन का ज़्यादा सेवन करने से एफएमओ3 एंज़ाइम की एक्टिविटी ट्रिगर होती है जोकि शरीर में ट्राइमिथइलामाइन को तोड़ने में मदद करती है।
ऐसी चीज़ें खाएं तो लैक्सेटिव असर दें क्योंकि इससे पेट में खाना लंबे समय तक नहीं रहता है।
व्यायाम, स्ट्रेस आदि जिन चीज़ों से ज़्यादा पसीना आता हो वो ना करें तो बेहतर होगा।
जिस साबुन में पीएच का स्तर 5.5 और 6.5 हो उसी का इस्तेमाल करें क्योंकि इससे त्वचा में मौजूद ट्राइमिथइलामाइन घटता है और गंध कम आती है।
इस अनुवांशिक रोग से लड़ने के अन्य टिप्स:
मनोवैज्ञानिक स्थिति जैसे कि डिप्रेशन आदि से निपटने के लिए काउंसलिंग की मदद ले सकते हैं।
जेनेटिक काउंसलिंग की मदद से आप इस विकार और इसके कारण के बारे में जान सकते हैं और फिर इसका इलाज शुरु करके इससे मुक्ति पा सकते हैं।