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स्ट्रेस घटाने की जगह बढ़ाते हैं ये काम
हम सभी जानते हैं कि स्ट्रेस यानि तनाव लेने की वजह से शरीर कई बीमारियों का घर बन जाता है। हम में से कई लोग इस बात से सहमत भी होंगे क्योंकि कई सालों से स्ट्रेस की वजह से लोगों को अनेक बीमारियों का शिकार बनते हुए जो देख रहे हैं।
कई रिसर्च स्टडी, आंकड़ों और वैज्ञानिक सबूतों में भी ये बात सामने आई है कि तनाव की वजह से लोग मनोवैज्ञानिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार बन जाते हैं।
आमतौर पर कई लोग ऐसा सोचते हैं कि तनाव का असर बस दिमागी रोग जैसे डिप्रेशन और घबराहट ही देता है।
हालांकि, इसका शारीरिक सेहत पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है जैसे कि ओबेसिटी, पाचन रोग, इम्युनिटी कम होना और कुछ तरह के कैंसर के लिए भी तनाव ज़िम्मेदार होता है।
इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम सब तनाव को दूर करने और इससे बचने की कोशिश करें। आपने तनाव से निपटने के कई तरीकों और उपायों के बारे में सुना होगा लेकिन ये सभी असरकारी नहीं होते हैं। यहां तक कि इनमें से कई टिप्स तो झूठे होते हैं जोकि तनाव के स्तर को और भी ज़्यादा खराब कर देते हैं। तो चलिए जानते हैं उन भ्रमों के बारे में जो स्ट्रेस की स्थिति को और भी ज़्यादा बुरा बना देते हैं।
टीवी में ध्यान लगाना
कई दोस्त और परिवार के लोग एवं यहां तक कि कई मैगज़ीन और ब्लॉग में भी ये सलाह दी गई है कि टीवी या फिल्में देखने से हमारा ध्यान उसमें बंट जाता है और इससे तनाव का असर कम होता है। वैसे तनाव कम करने के लिए आपको अपना ध्यान तो बंटाना चाहिए लेकिन ऐसे नहीं। अपनी पसंद का कोई काम करना या एक्सरसाइज़ करना सही रहता है।
टीवी देखने से व्यक्ति आलसी और शिथिल बन सकता है जिसकी वजह से उसका मन काम में नहीं लगता है और काम बढ़ने की वजह से तनाव और ज़्यादा हो जाता है। ये समय की बर्बादी भी है।
बुरी यादों के बारे में सोचना
जब आप किसी परिस्थिति को लेकर बहुत ज़्यादा तनाव लेते हैं तो इसकी वजह से बेचैनी और कंफ्यूज़न होने लगती है। ऐसे में आपको आराम से बैठकर उस स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। उसके फायदे और नुकसान के बारे में सोचकर आप उसका एक सही हल निकाल सकते हैं।
हालांकि, बार-बार ऐसी चीज़ों के बारे में सोचने से तनाव बढ़ भी जाता है और आपकी स्थिति और भी ज़्यादा खराब हो जाती है।
तनाव को नज़रअंदाज़ करना
तनावपूर्ण या खुद को तकलीफ देने वाली चीज़ों के बारे में सोच-सोचकर हम खुद की हालत और ज्यादा खराब कर लेते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ करने से भी स्ट्रेस होता है जोकि अच्छी बात नहीं है।
अपनी परेशानी का पता लगाकर आपको उसका हल ढूंढना चाहिए लेकिन बार-बार सोचने और बिल्कुल ही नज़रअंदाज़ करने वाली आदत के बीच में संतुलन बनाकर। स्ट्रेस देने वाली बातों को नज़रअंदाज़ करने से परिस्थिति और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाती है जिसकी वजह से बाद में तनाव का स्तर और बढ़ जाता है।
अपनी समस्याओं को साझा करना
अपने नज़दीकियों या थेरेपिस्ट से अपने तनाव या तनाव के कारण के बारे में बात करने से स्ट्रेस कम हो सकता है। अपने दिल की बात कहने से मन हल्का हो जाता है लेकिन अगर आप कई लोगों से अपने दिल की बात को साझा करते हैं तो इससे आपका स्ट्रेस और बढ़ सकता है। हर कोई आपकी मुश्किल को नहीं समझ सकता है। कुछ लोग आपके प्रति कठोर रुख भी दिखा सकते हैं जोकि आपकी स्थिति को और बिगाड़ देगा।
मर्ज़ी से खाना
कभी-कभी पिज़्जा, चॉकलेट या चिप्स आदि जैसी अनहेल्दी चीज़ें खाना चल जाता है। अगर आप स्ट्रेस में हैं तो ऐसी चीज़ों से आपको बेहतर महसूस होने लगता है लेकिन ये सब कुछ ही समय के लिए होता है क्योंकि इससे दिमाग में एंडोर्फिन हार्मोन बढ़ जाता है।
हालांकि, आगे चलकर इसका उल्टा ही असर पड़ता है क्योंकि इस तरह के खाने से स्ट्रेस दोगुना हो जाता है। इस तरह के खाने से शरीर में कोर्टिसोल नामक हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जोकि एक स्ट्रेस हार्मोन है। इसके अलावा इन चीज़ों के और भी नुकसान होते हैं।
सिगरेट पीना
कई रिसर्च में भी ये बात सामने आ चुकी है कि अधिकतर लोग स्ट्रेस को कम करने लिए सिगरेट पीने का बहाना बनाते हैं। उन्हें लगता है कि इससे स्ट्रेस कम होता है।
हालांकि, हम सभी जानते हैं कि सिगरेट पीने से शरीर और दिमाग को बस नुकसान ही पहुंचता है। इससे कोर्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जिससे स्थिति और खराब हो जाती है। इसके अलावा सेहत पर भी इसके कई नकारात्मक असर पड़ते हैं।
सोशल मीडिया से ध्यान भटकाना
आजकल हम में से कई लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर चिपके रहते हैं ताकि हम खुद को स्ट्रेस देने वाली परिस्थितियों से खुद को दूर रख सकें। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे टीवी देखना।
हालांकि, रिसर्च में सामने आया है कि सोशल मीडिया से स्ट्रेस और ज़्यादा बढ़ता है क्योंकि यहां पर ऐसी कई पोस्ट होती हैं तो नकारात्मक भावनाओं जैसे जलन, निराशा और अकेलेपन को जन्म देती हैं।