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क्या है ये डी डायमर टेस्ट क्या है, डॉक्टर कोविड में इसे कराने की क्यों दे रहे हैं सलाह?
कोरोना से संक्रमित होने के बाद हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि फेफड़े के रक्त वाहिकाओं में रूकावट के कारण खून का थक्का बन जाता है। लेकिन अगर इसे समय रहते पता लगा लिया जाए तो हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को समय रहते रोका जा सकता है। इसके लिए डी डायमर टेस्ट किया जाता है। ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर ये डी डायमर टेस्ट क्या है?
क्या है डी डायमर टेस्ट ?
डी डायमर एक प्रकार से ब्लड में माइक्रो क्लॉट्स से बनने वाला प्रोटीन होता है जिसे फिबरिन डी जनरेशन प्रोडक्ट भी कहते है। यह शरीर के अंदर सामान्य रक्त के थक्का बनाने की क्रिया का पार्ट होता है, लेकिन शरीर मे संक्रमण या सूजन के कारण कई पैथोलॉजिकल कंडीशन मे यह मात्रा बढ़ जाती है। ब्लड मे इसी माइक्रो क्लाट प्रोटीन की मात्रा मापने के लिए डी डायमर टेस्ट किया जाता है।
डी डायमर से शरीर में सूक्ष्म क्लॉट को जांचा जाता है
दरअसल, डी डायमर टेस्ट से शरीर में सूक्ष्म क्लॉट को जांचा जाता है। ताकि हार्ट अटैक एवं ब्रेन स्ट्रोक की आशंका को समय रहते पहचान लिया जाए और खून को पतला करने वाली दवाओं से इसे रोक दिया जाए। कोविड के नए मामलों में डॉक्टर अब इस टेस्ट की सलाह दे रहे हैं। लेकिन यहां पर ये समझना होगा कि इस टेस्ट से कोरोना के संक्रमण का पता नहीं लगता। बल्कि संक्रमण के कारण शरीर की सूक्ष्म रक्त वाहिनियों में जो खून के थक्के जमने हैं उसकी जांच की जाती है। ताकि कोविड को जानलेवा होने से रोका जा सके।
कोविड में निमोनिया का खतरा रहता है
कोविड संक्रमण में निमोनिया होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। ऐसे में अगर समय से टेस्ट हो जाए तथा एब्नार्मल माइक्रो क्लाट बनने की पहचान हो जाए तो हम समय रहते इसके गंभीर लक्षण जैसे लंग में सीवियर निमोनिया, हार्ट अटैक तथा ब्रेन स्ट्रोक से मरीजों को बचा सकते है। अगर इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो डॉक्टर रक्त में महीन थक्के को गलाने के लिए साथ ही और ज्यादा बनने से रोकने के लिए खून पतला करने की दवा देते हैं।
चिकित्सक के सलाह पर ही करना चाहिए यह टेस्ट
गौरतलब है कि यह जांच मरीज को अपने चिकित्सक के सलाह पर ही करना चाहिए। ब्लड का नमूना विशेष सावधानी के साथ लाइट ब्लू रंग के साइट्रेट ट्यूब में एक निश्चित मात्रा में लिया जाता है। यह टेस्ट लैब में पहुचने बाद शीघ्र शुरू किया जाता है, इसके लिए जरूरी है कि यथासंभव मरीज को अपना सैंपल आसपास के ही पैथेलॉजी लैब में देना चाहिए। क्योंकि बहुत दूर सैंपल ट्रांसपोर्ट करने से जांच की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। यह जांच एबनार्मल क्लाट के डायग्नोसिस के साथ इलाज के प्रभाव को मॉनीटर करने के लिए भी कई बार कराया जाता है।