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महिलाओं के लिए सस्‍ते दाम में लॉन्‍च हुआ बायोडिग्रेडिबल सैनेटरी पैड, जानिए क्‍या खास है इसमें?

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केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की सुविधा और स्‍वच्‍छता का ध्‍यान रखते हुए बायो डिग्रेडिबल सैनिटरी नैपकिन लॉन्च किया। प्रति पैड 2.50 रुपये की कीमत पर इसे प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना केंद्रों से खरीदा जा सकता है।

difference between biodegradable sanitary pads and Normal pads..

सैनिटरी नैपकिन के एक पैक में 4 पैड होंगे और इसकी कीमत 10 रुपये होगी। अंतरराष्ट्रीय मासिक धर्म स्वच्छता दिवस यानी 28 मई से 'सुविधा पैड' देश के सभी जन-औषधि केंद्रों पर यह नैपकीन बिक्री के लिए उपलब्ध रहेगा। आइए जानते है कि आखिर ये बायोडिग्रेडिबल सैनिटरी नैपकिन होते हैं क्‍या हैं, आम सैनिटरी नेपकिंस और बायोडिग्रेडिबल में अंतर क्‍या हैं? WOW! women's day पर सरकार ने लड़कियों के लिये लॉन्‍च किये बायॉडिग्रेडिबल सैनिटरी पैड

74 प्रतिशत महिलाएं ही..

74 प्रतिशत महिलाएं ही..

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) 2015-16 के रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 वर्ष के उम्र की 58 प्रतिशत महिलाएं कामचलाउ नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं। जो कि बिमारी के संक्रमण से उनका बचाव कर पाने में सक्षम नहीं हैं। शहर में भी 74 प्रतिशत महिलाओं को ही हाइजेनिक नैपकीन उपलब्ध हो पाता है।

 पर्यावरण के लिए हानिकारक

पर्यावरण के लिए हानिकारक

2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है, इसे नष्‍ट करने में जो जहरीली गैस निकलती है इतना वो पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।

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बायॉडिग्रेडिबल मतलब

बायॉडिग्रेडिबल मतलब

बायोडिग्रेडेबल का अर्थ होता है ऐसा पदार्थ या चीज़ जो किसी बैक्टिरिया या जीव जंतु से नष्ट की जा सके, इसी तकनीक से बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नष्ट किए जा सकते हैं और भविष्य में यह किसी भी प्रकार से पर्यावरण को दूषित नहीं करते हैं।

पीरियड में सैनेटरी पैड की जगह कपड़े के पैड यूज करना सही है या नहीं?पीरियड में सैनेटरी पैड की जगह कपड़े के पैड यूज करना सही है या नहीं?

कैसे बनाए जाते हैं बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स?

कैसे बनाए जाते हैं बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स?

ये नैपकिन्स केले के पेड़ के रेशे से बनाए जाते हैं। इन्‍हें इस्‍तेमाल करने के बाद आसानी से नष्ट किया जा सकता हैं। सबसे खास बात नष्ट होते ही ये खाद और बायोगैस की तरह उपयोग में आ जाते हैं। इससे वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा नहीं बढ़ती है, वहीं, इससे उलट बाज़ार से महंगे दामों में मिलने वाले पैड्स प्लास्टिक फाइबर से बने होते हैं जो खुद नष्ट नहीं होते और अगर इन्हें जलाया जाए तो इनमें मौजूद कच्चा तेल (प्लास्टिक को जलाने पर निकलने वाला तरल) से हवा में कार्बन डाइ ऑक्साइड फैलती है, जिससे वायु दूषित होती है।

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नहीं रहेगा इंफेक्‍शन का डर

नहीं रहेगा इंफेक्‍शन का डर

बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स इस्तेमाल करने में भी बहुत मुलायम होते हैं और इनके इस्तेमाल से कैंसर और इंफेक्शन होने का खतरा भी नहीं होता है।

यहां से आया ये विचार

यहां से आया ये विचार

यह आइडिया सबसे पहले एमआईटी स्‍टार्टअप लेकर आएं थे। वो मासिक धर्म के दौरान साफ सफाई को लेकर महिलाओं में जागरुकता लाने के उद्देश्‍य से इन पैड को बनाकर पूरे देशभर में महिलाओं में वितरित किए थे। खासकर ये 88 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं को ध्‍यान में रखते हुए ये नैपकिंस बनाए गए थे जो आज भी महंगे सैनेटरी पेड के वजह से राख, गंदे, कपड़े, समाचार पत्र और लकड़ी के टुकड़े लगाने के लिए मजबूर थी।

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दिया मिर्जा भी करती है इस्‍तेमाल..

दिया मिर्जा भी करती है इस्‍तेमाल..

यूएन की एनवायरनमेंट गुडविल एम्बेसडर बनीं दिया मिर्जा ने भी बताया कि वह पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल नहीं करती हैं, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वह बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स का इस्तेमाल करती हैं, जो कि सौ प्रतिशत नैचुरल है।

ऑनलाइन भी ऑर्डर किए जा सकते हैं

ऑनलाइन भी ऑर्डर किए जा सकते हैं

बायोडिग्रेडेबल वैसे मेडिकल स्‍टोर पर मिल जाते हैं, लेकिन मार्केट में अभी इसकी उपलब्‍धता कम हैं। इसलिए आप इसे ऑनलाइन भी ऑर्डर कर सकते हैं।

English summary

difference between biodegradable sanitary pads and Normal pads..

Not just that, toxic chemicals used in the production of sanitary napkins are carcinogenic and can leak out into the atmosphere. Biodegradable napkins are a game-changer in this regard.
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