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इस बुद्ध पूर्णिमा करें सच्चे मन से पूजा, होगी दरिद्रता दूर

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बुद्ध पूर्णिमा केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ही महत्वपूर्ण त्योहार नहीं है बल्कि यह मौका हिन्दू धर्म के लोगों लिए भी बहुत ही महत्व रखता है क्योंकि भगवान बुद्ध को श्री हरी विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है। वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली पूर्णिमा को बुध पूर्णिमा कहा जाता है।

कहते हैं इस दिन भगवान गौतम बुद्ध ने मोक्ष प्राप्त किया था। बुद्ध पूर्णिमा को भगवान् बुद्ध की जयंती और उनके निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ होता है इससे मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसके जीवन में सुख और शान्ति आती है। इस साल बुध पूर्णिमा 29 अप्रैल को मनाई जाएगी। इसका शुभ मुहूर्त 29 को सुबह 6.37 से शुरू होकर 30 अप्रैल के प्रातः 6.27 तक रहेगा।

आज इस पवित्र अवसर पर आइए जानते हैं भगवान बुद्ध के जीवनकाल के विषय में।

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गौतम बुध का जन्म और शिक्षा

भगवान् बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी। कहते हैं गौतम बुद्ध को जन्म देने के ठीक सात दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था जिसके बाद उनका पालन बुद्ध की मौसी महाप्रजापती गौतमी ने किया।

माना जाता है कि भगवान् बुद्ध के जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की थी कि यह शिशु या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। इस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। कहा जाता है कि सिद्धार्थ बचपन से ही बड़े दयालु स्वभाव के थे, वह न तो किसी को दुख दे सकते थे न ही किसी को दुखी देख सकते थे।

विश्वामित्र सिद्धार्थ के गुरु थे। सिद्धार्थ ने अपने गुरु से वेद और उपनिषद्‌ का ज्ञान तो लिया ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कहते हैं कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में सिद्धार्थ की बराबरी कोई नहीं कर पाता था।

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16 वर्ष की आयु में हुआ विवाह

मात्र सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ था। विवाह के पश्चात अपने पिता द्वारा बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे पत्नी यशोधरा के साथ रहने लगे बाद में यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया। कुछ समय बाद सिद्धार्थ का मन वैराग्य में चला गया और उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन त्याग दिया और घर छोड़ कर निकल गए।

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गृहस्थ्य जीवन त्याग दिया

मन में वैराग्य की भावना लिए सिद्धार्थ राजगृह पहुँचे और वहां उन्होंने भिक्षा मांगनी शुरू कर दी। इसके बाद वे आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास पहुँचे और उनसे योग-साधना सीखी। जब इससे भी उनका मन नहीं भरा तो वे उरुवेला पहुँचे और वहां पर तरह-तरह से तपस्या करने लगे।

कहा जाता है कि शुरू में सिद्धार्थ ने केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया जिसके कारण वे बहुत कमज़ोर हो गए थे। छः साल तपस्या करने के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। एक दिन जब सिद्धार्थ अपनी तपस्या में लीन थे तब कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं। उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- 'वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ।’ उनकी यह बात सिद्धार्थ को भा गई, वह मान गये कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है और अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है और इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है।

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जब सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए

कहते हैं वैशाख पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे अपनी तपस्या में लीन थे तभी पास के गाँव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ। उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मनौती मानी थी। बेटे के जन्म के बाद वह अपनी मनौती पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। उसी स्थान पर सिद्धार्थ ध्यानस्थ थे। सुजाता को लगा कि स्वयं वृक्षदेवता ही पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। बस फिर क्या था सुजाता ने बड़े ही आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- 'जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।’ माना जाता है कि उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ 'बुद्ध' कहलाए। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया।

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भगवान के आशीर्वाद से होती है दरिद्रता दूर

माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से जो भी पूजा पथ और व्रत करता है उसके जीवन में सुख शान्ति और समृद्धि आती है इसके अलावा इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का भी बड़ा ही महत्व है, कहते हैं इस पवित्र नदी में बुद्ध पूर्णिमा के दिन स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसके कष्टों का भी निवारण हो जाता है।

English summary

buddha purnima 2018

Buddha Purnima is the day when Lord Buddha was born. This day falls every year on the fifteenth day of the month of Vaishakh during the Shukla Paksha. This year Buddha Purnima is on 29th April 2018.
Story first published: Saturday, April 28, 2018, 12:13 [IST]
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