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दुनिया का दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है मां छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर, जानें इससे जुड़े रहस्य
भारत की सरजमीं में कई तरह के राज और चमत्कार छिपे हैं। यहां के लोगों की देवी-देवताओं पर अटूट आस्था है। भय और विश्वास की ये डोर भगवान पर उनके भरोसे को मजबूत करती है। ऐसा ही एक मंदिर है मां छिन्नमस्तिका देवी का, जो झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। छिन्नमस्तिका मंदिर से जुड़े रहस्य और इसकी मान्यता देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर हैं। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं छिन्नमस्तिका मंदिर के बारे में।
यहां की देवी है विचित्र
छिन्नमस्तिका मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है। माता बाएं पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हैं। उनके पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिका का यह रूप सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। उनके केश बिखरे और खुले हुए हैं। माता का यह दिव्य रूप आभूषणों से सुसज्जित है। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यह मंदिर रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है। आस्था के प्रतीक मां छिन्नमस्तिका मंदिर में सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। मगर चैत्र और शारदीय नवरात्रि के समय में यहां भक्तों की भारी भीड़ पहुंचती है।
दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ
छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी मशहूर है। गौरतलब है कि असम में स्थित मां कामाख्या का मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिपीठ है और दुनिया के दूसरे सबसे बड़ी शक्तिपीठ के तौर पर छिन्नमस्तिका मंदिर का स्थान आता है।
छिन्नमस्तिका मंदिर के साथ ही यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के भी मौजूद हैं।
कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था और कई जानकार इसे महाभारतकालीन मंदिर भी बताते हैं।
छिन्नमस्तिका मंदिर से जुड़ी कथा
छिन्नमस्तिका मंदिर में माता के सिर कटे रूप से जुड़ी पौराणिक कथा भी है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं थीं। स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को तेज भूख लगी और वे भूख से बेहाल होने लगी। भूख की वजह से उनकी सहेलियों का रंग काला पड़ने लगा था।
इसके बाद उन दोनों ने माता से भोजन देने के लिए कहा, लेकिन माता ने जवाब में कहा कि वे थोड़ा सब्र और इंतजार करें। लेकिन उन्हें भूख इतनी ज्यादा लगी थी कि वे भूख से तड़पने लगीं। यह देखने के बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया।
ऐसा कहा जाता है कि सिर काटने के बाद माता का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और उसमें से खून की तीन धाराएं बहने लगीं। माता ने सिर से निकली उन दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर बहा दिया, बाकी को खुद पीने लगीं। इसके बाद से ही मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।