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ये गणपति बप्पा के 8 अवतार, हर अवतार की अलग महत्ता
ईश्वर ने संसार के कल्याण के लिए और धरती से पाप को नष्ट करने के लिए समय समय पर अलग अलग अवतार लिया था। हमने अपने पिछले लेख में आपको भगवान विष्णु के दस अवतारों के विषय में बताया था, आज हम आपको प्रथम पूजनीय और विघ्नहर्ता श्री गणेश के 8 स्वरूपों के बारे में बताएंगे। अपने इन अवतारों से गणेश जी ने भी कई बुरी शक्तियों का नाश कर अधर्म पर धर्म की जीत का परचम लहराया है।
आइए जानते है गणेश जी के इन आठ अवतारों के बारे में।
1.वक्रतुण्ड
श्री गणेश ने अपना यह अवतार मत्सरासुर नामक एक असुर का वध करने के लिए लिया था। कहतें है मत्सरासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने कठोर तप करके शिव जी को प्रसन्न किया था और उनसे वरदान प्राप्त कर लिया था। भोलेनाथ से मिले वरदान के कारण मत्सरासुर बहुत अहंकारी हो गया था। वह दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर समस्त देवताओं पर अत्याचार करने लगा। उसके उत्पात से तंग आकर सभी देवतागण शिवजी की शरण में गए। तब भोलेनाथ ने उन्हें गणेश जी से सहायता मांगने के लिए कहा। जब देवता गणेश जी के पास पहुंचे तब गणेश जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे उनकी मदद ज़रूर करेंगे। इसके पश्चात उन्होंने वक्रतुण्ड का रूप धारण कर न केवल मत्सरासुर का वध किया बल्कि उसके दोनों पुत्रों सुंदरप्रिय और विषयप्रिय का भी अंत कर दिया।
2.एकदंत
श्री गणेश के इस अवतार में इनकी चार भुजाएं है, एक दांत, बड़ा सा पेट और गज के समान विशाल सिर है। भगवान के हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल है। भगवान के इस स्वरुप के पीछे की कथा इस प्रकार है महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की थी जो उनका पुत्र कहलाया। मदासुर ने शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त की थी और बहुत ही शक्तिशाली बन गया था। मदासुर अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग करना आरम्भ कर दिया था और देवताओं के विरुद्ध हो गया था। तब समस्त देवताओं को इसके अत्याचार से बचाने के लिए गणेश जी ने एकदन्त अवतार लेकर इसका वध कर दिया था।
3.महोदर
गणेश जी के महोदर अवतार में उनका पेट बहुत ही बड़ा है। कहतें है जब गणेश जी के बड़े भाई भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था तब प्रतिशोध लेने के लिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक दैत्य को देवताओं को पराजित करने के लिए तैयार किया था। किन्तु जब उसका वध करने महोदर अपने मूषक पर विराजमान होकर उसके पास पहुंचे तो उसने बिना युद्ध किये ही हार मान ली और गणेश जी को अपना इष्टदेव बना लिया।
4.गजानन
अपना यह अवतार गणेश जी ने लोभासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए लिया था। एक कथा के अनुसार एक बार कुबेर कैलाश पहुंचे वहां माता पारवती को देख कर उनके मन में काम प्रधान लोभ उतपन्न हो गया। कहतें है कुबेर के इसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ। बाद में लोभासुर ने शुक्राचार्य के कहने पर शिव जी की आराधना करनी शुरू कर दी। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर महादेव ने उसे निर्भय रहने का वरदान दे दिया था। किन्तु भोलेनाथ से वरदान प्राप्त करने के बाद लोभासुर बहुत शक्तिशाली हो गया और उसने सभी लोकों पर कब्ज़ा कर लिया। कहा जाता है कि स्वयं महादेव को कैलाश छोड़ कर जाना पड़ा था। तब गणेश जी ने गजानन का अवतार लेकर लोभासुर का वध करने का निर्णय लिया किन्तु शुक्राचार्य के कहने पर इसने भी बिना युद्ध के ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
5.लम्बोदर
कहतें समुद्र मंथन के समय जब विष्णु जी ने असुरों से छल करने हेतु मोहिनी रूप धारण किया था तब शिव जी उनपर मोहित हो गए थे। उनका शुक्र स्खलित हुआ था और एक काले रंग के दैत्य का जन्म हुआ था जिसका नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर को सूर्यदेव से वरदान प्राप्त था कि वह समस्त ब्रह्माण्ड पर विजय पा सकता है। इस बात से सभी देवतागण चिंतित रहने लगे और क्रोधासुर से युद्ध करने का निर्णय लिया। तब गणेश जी ने लम्बोदर अवतार में उस असुर को रोका जिसके बाद वह सदैव के लिए पाताल लोक में चला गया।
6.विकट
जालंधर का विनाश करने के लिए भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया था तब कामासुर नामक एक दैत्य का जन्म हुआ था। कामासुर ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और उनसे त्रिलोक विजय का वरदान प्राप्त कर लिया था। महादेव से वरदान पाकर कामासुर ने चारों ओर उत्पात मचाना शुरू कर दिया था जिसके पश्चात गणेश जी ने विकट अवतार धारण किया था और कामासुर का अंत कर दिया था। अपने इस अवतार में भगवान मोर पर विराजमान रहतें है।
7.विघ्नराज
एक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती बहुत ज़ोर से हंस पड़ी उनकी इस हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। माता ने उसका नाम मम (ममता) रखा बाद में मम वन में चला गया जहाँ उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। मम ने शम्बरासुर से कई आसुरी शक्तियों का ज्ञान प्राप्त किया और गणेश जी की आराधना कर उनसे समस्त ब्रह्माण्ड पर राज करने का वरदान मांग लिया।
बाद में शम्बरासुर ने अपनी पुत्री मोहिनी का विवाह मम से करा दिया। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मम को दैत्यराज का पद दे दिया जिसके पश्चात और वह और भी बलवान हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। उसने सभी देवताओं को बंदी बनाकर अपने पास रख लिया। तब समस्त देवतागण गणेश जी का आह्वान करने लगे। गणेश जी ने विघ्नराज का अवतार धारण कर देवताओं को मम की कैद से आज़ाद कराया था।
8.धूम्रवर्ण
गणेश जी के इस अवतार में उनका वर्ण धुंए जैसा है। भगवान के हाथ में भीषण पाश है जिससे ज्वालाएं निकलती है। एक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया जिसके बाद सूर्यदेव को बहुत घमंड हो गया। एक दिन उन्हें छींक आयी जिससे अहम नामक एक दैत्य उत्पन्न हुआ।अहम ने शुक्राचार्य को अपना गुरु बना लिया और वह अहम से अहंतासुर बन गया।
बाद में वह गणेश जी की उपासना कर उनसे वरदान पाकर वह और भी शक्तिशाली हो गया। उसने देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया तब गणेश जी ने धूम्रवर्ण का अवतार लेकर अहंतासुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया।