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गणेश विसर्जन: जानें गणपति बप्पा को विदा करने की पूरी विधि
गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी के दिन शुरू होता है और इसकी समाप्ति अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन के साथ होती है। चतुर्थी पर्व के दौरान हर उम्र के भक्त गणपति बप्पा की सेवा में लग जाते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। ये माना जाता है कि इन दस दिनों के दौरान भगवान गणेश अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं। मोदक-लड्डू से लेकर पीले वस्त्र उन्हें चढ़ाते हैं। इस दौरान वो गणेश जी की पसंद की हर एक चीज़ उन्हें अर्पित करते हैं ताकि उनपर शिव और पार्वती पुत्र की कृपा बनी रहे।
इस पर्व के दौरान गणेश जी की पूजा डेढ़, तीन, सात या फिर नौ दिनों के लिए की जाती है। ये भक्त पर निर्भर करता है कि वो कितने दिनों के लिए एकदन्त को अपने पास रखना चाहते हैं। इस पूजा की समाप्ति के बाद जल में उनका विसर्जन कर दिया जाता है। लोग उन्हें नदी या फिर समुद्र के जल में प्रवाहित करते हैं। हम आपके लिए गणेश विसर्जन की पूरी विधि लेकर आए हैं।
गणेश विसर्जन पूजा
विसर्जन की प्रक्रिया चतुर्थी तिथि से दसवें दिन यानि अनंत चतुर्दशी के दिन पूर्ण की जाती है। विसर्जन वाले दिन पहले की ही भांति गणेश पूजा करें। उन्हें ताज़ा फूलों की माला, ताज़े फूल और फल चढ़ाएं। इसके साथ पान का पत्ता, सुपारी और लौंग इस पूजा के दौरान ज़रूर चढ़ाएं। उनकी आरती करें और ॐ गं गणपतये नम: का जाप करें।
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ऐसे करें गणेश विसर्जन
एक छोटा स्टूल लें और उस पर गंगाजल की कुछ बूंदे छिड़के। उसके बाद उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। हिंदू धर्म में ही नहीं दूसरे धर्म के लोग भी इस चिन्ह को काफी पवित्र और शुभ मानते हैं। ये वातावरण में सकारात्मकता लाती है। अब स्टूल पर चावल के कुछ दानें छिड़कें और उस पर लाल, गुलाबी या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं।
मूर्ति को ले जाएं विसर्जन के लिए
अब चारों कोनों पर एक एक सुपारी रख दें। फूल की पंखुड़ियां बिछा दें। अब इस सजे धजे स्टूल पर गणपति बप्पा को बिठाएं। इस स्टूल के साथ ही आप मूर्ति को विसर्जन के लिए नदी या समंदर तक लेकर जाएं। बड़ी ही धूमधाम से किया गया विसर्जन बहुत शुभ माना जाता है। भक्त गणेश भगवान का नाम लेते हुए और उनके गीत गाते हुए उन्हें लेकर जाएं। इसके साथ ही सभी इस बात की प्रार्थना करें की भगवान अगले साल उनके घर जल्दी आएं।
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क्या है गणेश विसर्जन की कथा
इस कथा के अनुसार एक बार महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से प्रार्थना करते हुए उनसे महाभारत लिखने का आग्रह किया जिसका वर्णन वो खुद करते। गणेश जी इस शर्त पर राज़ी हुए की वो बिना रुके एक ही बार में महाभारत की कथा उन्हें कहें। वेद व्यास जी मान गए और उन्होंने आंखे बंद करके महाभारत की कथा कहनी शुरू की। उन्होंने दस दिन बाद इसे पूरा करते हुए अपनी आंखें खोली और वह चतुर्दशी का दिन था। लगातार लिखते रहने के कारण गणेश भगवान का शरीर आग की तरह तप रहा था। महर्षि ने उन्हें पानी के कुंड में डुबकियां दिलवाई ताकि उन्हें आराम मिल सके। इस वजह से गणेश विसर्जन की ये प्रथा आज भी उनके भक्तों द्वारा पूरी की जा रही है।