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दस दिनों के बाद ही क्यों किया जाता है गणेश विसर्जन
हर साल बड़े ही धूम धाम से हम गणेश चतुर्थी पर गणपति जी को अपने घर लाते हैं। दस दिनों तक चलने वाला यह उत्सव भाद्रपद की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को पड़ता है। सभी भक्तजन भगवान गणेश की पूजा दस दिनों तक पूरे विधि विधान से करते हैं।
कई लोग तीन, पांच, सात या फिर नौ दिनों तक गणपति की पूजा करने की शपथ लेते हैं और जब उनकी यह सौगंध पूरी हो जाती है तो फिर गणेश जी की प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर देते हैं।
इस त्योहार के पीछे की कथाएं
हालांकि यह त्योहार भारत के कोने कोने में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व के पीछे कई सारी कहानियां प्रचलित है। जहां एक ओर कुछ लोगों का मानना है कि यह त्योहार गणेश जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं कुछ लोगों की इस त्योहार को मनाने के पीछे श्रद्धा है कि इस दिन भगवान अपने सभी भक्तों के घरों में पधारते हैं और पूरे दस दिनों तक अपने भक्तों के साथ ही रहते हैं।
कैसे होता है विसर्जन?
दस दिन के बाद बड़े ही धूमधाम से एक भारी जुलूस निकाला जाता है जिसमें सभी भक्त एकत्रित होकर भगवान गणेश की प्रतिमा को रथ पर बैठाकर नदी की ओर ले जाते हैं। सभी भक्त नाचते गाते नदी तक पहुंचते हैं।
विसर्जन क्यों होता है?
इसके पीछे एक बहुत ही सुंदर कथा है। एक बार महिर्षि वेद व्यास ने महाभारत लिखने का मन बनाया। वे भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने उनके पास गए।व्यास ने गणेश जी से प्रार्थना की कि वे महाभारत लिखने में उनकी मदद करें उन्होंने गणेश जी से कहा कि वे कहानी कहते जाएंगे और गणपति जी उसे लिखते जाएं। साथ ही वेद व्यास ने भगवान से इस बात का वचन मांगा कि पहले वे कहानी के अर्थ को समझेंगे तभी उसे लिखेंगे।
आश्चर्यचकित रह गए वेद व्यास
कहा जाता है कि गणेश जी ने फ़ौरन महर्षि की बात को स्वीकार कर लिया। इसके बाद वेद व्यास ने आँखें बंद करके महाभारत की कथा कहनी शुरू कर दी और गणेश जी ने लिखना आरंभ किया। कहते हैं वेद व्यास ने पूरे दस दिनों तक यह कहानी बिना अपने नेत्र खोले कही थी। दस दिनों के बाद जब कहानी पूरी हुई और उन्होंने अपनी आँखें खोली तो देखा कि गणेश जी का शरीर बहुत गर्म हो चुका था। उनका शरीर मानो तप रहा था और उन्हें फ़ौरन राहत की ज़रुरत थी। तब व्यास ने गणेश जी को पास के ही पानी के एक कुंड में डुबकियां दिलवाई।
गणेश विसर्जन 2018
ऐसी मान्यता है कि जिस दिन गणेश जी महाभारत लिखने के लिए वेद व्यास के आश्रम में आये थे उस दिन भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। दस दिनों के बाद जब महाभारत की कथा समाप्त हुई तब चतुर्दशी थी इसलिए गणेश चतुर्थी के ठीक दसवें दिन पूजा के बाद चतुर्दशी पर भगवान की प्रतिमा को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। इस साल गणेश विसर्जन 23 सितंबर को किया जायेगा।