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Hartalika Teej: अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जरूर पढ़ें हरतालिका तीज व्रत कथा
भारत में तीज-त्योहारों का बहुत महत्व है। महिलाएं हरतालिका तीज का विशेषतौर पर इंतजार करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं मनपसंद जीवनसाथी पाने के लिए यह व्रत रखती हैं।
माना जाता है कि सर्वप्रथम यह व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। हरतालिका तीज का व्रत करने के साथ ही इस दिन हरतालिका तीज व्रत कथा सुनने की भी परंपरा है। आप भी जरूर पढ़ें हरतालिका तीज व्रत कथा।

हरतालिका तीज की व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या भी की। उन्होंने इस दौरान अन्न का सेवन तक नहीं किया। इस दौरान महर्षि नारद महाराज हिमालय के पास पहुंचे और बताया कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु का विवाह प्रस्ताव लेकर आए हैं। महाराज हिमालय भगवान विष्णु का ऐसा प्रस्ताव पाकर बेहद खुश हुए मगर जब पार्वती को इस बारे में पता चला तो रो रोकर उनका बुरा हाल हो गया।

सखी ने की सहयता
अपने विवाह का प्रस्ताव सुनने के बाद पार्वती बहुत निराश हुईं। उनकी ऐसी स्थिति देखकर माता पार्वती की एक सखी उन्हें जंगल में एकांत जगह पर ले गई। अपने पिता हिमालय कि नजरों से दूर माता पार्वती गुफा में रहकर भगवान शिव की आराधना करने लगीं। माता पार्वती ने पूर्ण दृढ़ता के साथ भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। ऐसा माना जाता है कि हस्त नक्षत्र में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग की स्थापना की। साथ ही निर्जला उपवास रहकर रात्रि के समय जागरण भी किया।

माता पार्वती के कठोर तप से शिवजी का डोला आसन
ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती की कठोर तपस्या से भगवान शिव का आसन भी हिल उठा था और वो अपनी साधना से जाग गए। पार्वती माता का ऐसा तप देखकर भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। भगवान शिव ने उनकी इच्छानुसार उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
इसके बाद पार्वती माता ने व्रत का पारण किया और सभी पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित किया। महाराज हिमालय अपनी पुत्री को खोजते हुए उस स्थान पर पहुंचे। अपनी पुत्री की ऐसी दशा देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। माता पार्वती ने अपने पिता को अपनी तपस्या के बारे में जानकारी दी और ये भी बताया कि भोलेनाथ ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया है। महाराज हिमालय भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह के लिए राजी हुए और उन्होंने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी।