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जन्माष्टमी विशेष: भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई?
हिंदू पौराणिक कथाओं में कई पेचीदा कहानियाँ हैं जिनके बारे में हम में से केवल कुछ को ही पता है। ऐसी ही एक कहानी भगवान कृष्ण की मृत्यु की है।
हम सभी को पता है कि कृष्ण का जन्म कैसे हुआ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? यह जानने के लिए यहां पढ़े।
READ: क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण की 16,000 पत्नियां क्यों थी?
महाभारत के युद्ध के बाद, जब दुर्याोधन का अंत हो गया, तो उसकी माता गांधारी बहुत दुःखी हो गई थी। वह अपने बेटे के शव पर शोक व्यक्त करने के लिए रणभूमि में गई थी।
भगवान
कृष्ण
और
पांडव
भी
उसके
साथ
गए
थे।
गांधारी
अपने
बेटों
की
मृत्यु
से
इतनी
दुःखाी
हुई
कि
उसने
भगवान
कृष्ण
को
36
वर्षों
के
बाद
मृत्यु
का
शाप
दे
दिया।
भगवान
कृष्ण
मुस्कुराए
और
स्वयं
पर
लगा
अभिशाप
स्वीकार
कर
लिया।
और
ठीक
इसके
36
वर्षों
के
बाद
उनका
अंत
एक
शिकारी
के
हाथों
हुआ।
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भगवान कृष्ण का पूरा यादव वंश धीरे-धीरे समाप्त हो गया और द्वारिका समुद्र में डूब गई जहां वह अभी भी हैं। भगवान कृष्ण की मृत्यु की दुखद कहानी पर एक नज़र डालें।
गांधारी
का
अभिशाप
अपने
100
बेटों
की
मृत्यु
के
दुःख
से
उबरने
के
बाद
गांधारी
ने
सारे
रक्तपात
के
लिए
भगवान
कृष्ण
को
दोषी
ठहराया।
उसने
कहा
कि
स्वयं
भगवान
होने
के
कारण
वे
कुरुक्षेत्र
के
युद्ध
को
आसानी
से
रोक
सकते
थे।
लेकिन,
उन्होंने
भाइयों
को
एकदूसरे
से
लड़ने
दिया।
इसलिए,
गांधारी
ने
अभिशाप
दिया
कि
कौरव
वंश
की
ही
तरह
यादव
वंश
भी
नष्ट
हो
जाएगा।
भाई-भाई एकदूसरे को मार देंगे जिससे कृष्ण साम्राज्य का अंत हो जाएगा। उसने यह अभिशाप भी दिया कि कृष्ण को एकांत में मृत्यु प्राप्त होगी और द्वारिका समुद्र में डूब जाएगी। भगवान कृष्ण मुस्कुराए और उन्होंने अभिशाप स्वीकार कर लिया क्योंकि गांधारी उनकीप्रबल भक्त थी।
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यादवों
का
अंत
भगवान
कृष्ण
के
शासन
में
यादव
वंश
एक
समृद्ध
वंश
था।
हालांकि,
एक
समय
के
बाद
वे
सत्ता
और
धन
के
नशे
में
चूर
हो
गए।
यादव
वंश
के
लोग
भ्रष्ट
आचरण
और
भाईयों
के
झगड़ों
में
लिप्त
होने
लगे।
इसके
परिणामस्वरूप
बड़े
पैमाने
पर
युद्ध
हुए
और
रणभूमि
में
यादवों
ने
एकदूसरे
को
मार
डाला।
इन
युद्धों
में
भगवान
कृष्ण
का
पुत्र
प्रद्युम्न
भी
मारा
गया।
इस
विनाश
को
देखकर
भगवान
कृष्ण
ने
द्वारिका
छोड़ने
का
निश्चय
किया
और
वन
में
चले
गए।
जलमग्न
द्वारिका
ऐसा
कहा
जाता
है
कि
भगवान
कृष्ण
द्वारा
द्वारिका
छोड़े
जाने
पर
समुद्र
का
पानी
नगरी
में
आ
गया
और
अंततः
वह
पानी
में
डूब
गयी।
वास्तविक
द्वारिका
नगरी
अभी
भी
अरब
सागर
के
नीचे
है।
कृष्ण
की
मृत्यु
कृष्ण
अपने
बड़े
भाई
बलराम
के
साथ
वन
में
गए
जहां
कुछ
समय
बाद
उनकी
भी
मृत्यु
हो
गई।
दुःख
से
उबरने
के
बाद,
भगवान
कृष्ण
एक
दिन
पेड़
के
नीचे
आराम
कर
रहे
थे।
एक
शिकारी
ने
भगवान
के
पैरों
के
नीचे
कमल
के
चिन्ह
को
देखा
और
उन्हें
गल्ती
से
एक
जानवर
समझ
लिया।
शिकारी
ने
एक
तीर
छोड़ा
जो
भगवान
के
पैरों
में
लगा।
अपनी
गल्ती
का
अहसास
होने
पर
शिकारी
भगवान
के
पास
आया
और
माफी
मांगने
लगा।
भगवान
ने
कहा
कि
यह
नियति
के
अनुसार
ही
हुआ
है।
अतः,
भगवान
कृष्ण
ने
सांसारिक
निवास
को
छोड़
दिया
और
द्वापर
युग
का
अंत
हो
गया।
शिकारी
की
असली
पहचान
शास्त्रों
में
लिखा
है
कि
भगवान
कृष्ण
को
मारने
वाला
और
कोई
नहीं
बल्कि
वानरराज
बाली
था
जिसका
पुनर्जन्म
शिकारी
के
रूप
में
हुआ
था।
चूंकि,
भगवान
कृष्ण
ने
पूर्वजन्म
में
भगवान
राम
के
रूप
में
बाली
को
बिना
किसी
कारण
के
झाडि़यों
के
पीछे
से
मारा
था,
इसलिए,
शिकारी
के
हाथों
उनका
अंत
होना
निश्चित
था।
इसलिए, यह स्पष्ट है कि स्वयं भगवान भी कर्म के चंगुल से बच नहीं सके।