Just In
- 6 hrs ago Blackheads Removal Tips: नहीं निकल रहे हैं ठुड्डी पर धंसे हुए ब्लैकहेड्स? 5 मिनट में ये नुस्खें करेंगे काम
- 7 hrs ago आम पन्ना से 10 गुना ज्यादा ठंडक देता है इमली का अमलाना, लू से बचने का है देसी फार्मूला
- 9 hrs ago रूबीना दिलैक ने शेयर किया स्तनपान से जुड़ा दर्दनाक एक्सपीरियंस, नई मांए ने करें ये गलती
- 10 hrs ago Gajalakshmi Yog April 2024: 12 वर्षों के बाद मेष राशि में बनेगा गजलक्ष्मी राजयोग, इन 3 राशियों पर बरसेगा पैसा
Don't Miss
- News मध्य प्रदेश के ग्वालियर में लगी भीषण आग, मौके पर दमकल की 17 गाड़ियां
- Education UP Board 12th Result 2024: यूपी बोर्ड 12वीं रिजल्ट 2024 कल 2 बजे आयेगा, यहां देखें UPMSP Result डाउनलोड लिंक
- Movies OOPS: बेटे अरहान से गंदी बातें करने के बाद अब इस हाल में दिखी मलाइका, बार-बार ठीक करती रही लटकती फिसलती ड्रेस
- Technology Vivo के इस 5G फोन की कल होने जा रही एंट्री, लॉन्च से पहले कीमत से लेकर फीचर्स तक की डिटेल लीक
- Travel हनुमान जयंती : वो जगहें जहां मिलते हैं हनुमान जी के पैरों के निशान
- Finance Employee Count: देश की टॉप IT कंपनियों में कम हो गए 63,759 कर्मचारी, जानें किस कंपनी में कितने लोग हुए कम
- Automobiles 3 करोड़ की कार में वोट डालने पहुंचे साउथ सिनेमा के दिग्गज स्टार Dhanush, फैंस ने किया स्वागत
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2018: जानें कैसे मिलेगा इस व्रत का लाभ
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार पूर्णिमा 29 मई मंगलवार को है लेकिन पूर्णिमा तिथि 28 मई सोमवार शाम 8 बजकर 40 मिनट से ही शुरू हो जाएगी जो 29 मई को 7 बजकर 49 मिनट तक रहेगी।
इस दिन शिव जी और विष्णु जी की पूजा की जाती है। साथ ही महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की भी पूजा करके अपने सुहाग की सलामती की दुआएं मांगती है।
शास्त्रों के अनुसार वट वृक्ष में त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास होता है। भारत के कुछ हिस्सों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन को वट सावित्री के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब सावित्री को इस बात का पता चला कि उसका होने वाला पति अल्पायु है तो उसने एक पतिव्रता नारी का धर्म निभाते हुए सत्यवान को ही अपना पति चुना क्योंकि उसका मानना था कि एक हिंदू नारी सिर्फ एक बार ही अपना जीवनसाथी चुनती है।
कहा जाता है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए थे तब सावित्री अपने मृत पति का शरीर लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थी और जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर दक्षिण दिशा की तरफ निकल पड़े तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल दी। तब यमराज ने उससे कहा कि तुम्हारा और तुम्हारे पति का साथ यहीं तक है इसके आगे तुम नहीं जा सकती।
इस पर सावित्री ने उन्हें उत्तर दिया कि वह एक पतिव्रता स्त्री है इसलिए जहाँ उसके पति रहेंगे वहां वह भी रहेगी। सावित्री की इस बात से प्रसन्न होकर यमराज ने उनसे वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने अपने सास ससुर की आँखों की रौशनी, अपना खोया हुआ राज्य और सत्यवान के सौ पुत्रों की माता बनने का आशीर्वाद मांग लिया। यमराज ने प्रसन्न होकर उनकी तीनों इच्छाओं को स्वीकार कर लिया था।
आइए जानते हैं इस पूजा की विधि और महत्व
पूजन और व्रत विधि
जैसा की हमने आपको बताया कि इस दिन महादेव और विष्णु जी की पूजा की जाती है और वट वृक्ष की पूजा करने के पीछे यह लोककथा है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से इसी वृक्ष के नीचे वापस ले लिए थे। इस दिन सबसे पहले स्त्रियां प्रसाद के रूप में 24 गुलगुले (आटे और शक्कर/गुड़ से निर्मित) और 24 पूरियां बनाती हैं। फिर उन चौबीस पूरियों और गुलगुलों को अपने आँचल में रख कर उनमें से 12-12 वट वृक्ष पर चढ़ा देती हैं। लोटे में जल भर कर वट वृक्ष को अर्पित करती हैं। फिर रोली, हल्दी और चन्दन लगाती हैं। इसके पश्चात फल, फूल चढ़ाकर धुप और दीपक जलाती हैं। कच्चे धागे को वृक्ष में बांध कर 12 परिक्रमा करती हैं और हर एक परिक्रमा पर एक चना चढ़ाती हैं।
परिक्रमा के बाद महिलाएं सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं। फिर बारह तार वाली एक माला को वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को अपने गले में डाल लेती हैं। इस प्रकार छः बार माला वृक्ष से बदलती हैं फिर एक माला वृक्ष पर ही रहने देती हैं और एक खुद धारण कर लेती हैं। इसके बाद बारह चने और वृक्ष की लाल रंग की कली जिसे बौड़ी कहते हैं उसे निगलकर अपना व्रत पूरा करती हैं।
इस दिन औरतें सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं और पूजा के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। कहते हैं इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से और गरीबों में दान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और साथ ही भगवान के आशीर्वाद से उसके समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं। स्कन्द पुराण में ज्येष्ठ पूर्णिमा को ही वट सावित्री का त्योहार बताया गया है।
कहते हैं इसी दिन अमरनाथ यात्रा करने वाले भक्त गंगाजल लेकर अपनी यात्रा आरम्भ करते हैं।