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हिंदी साहित्य के सूर्य सूरदास जी की जयंती पर जानें उनका रहस्यमय जीवन

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मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥

यह प्रचलित दोहा भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और महान कवि संगीतकार सूरदास द्वारा रचित है। सूरदास ने नेत्रहीन होने के बावजूद कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की और साथ ही एक मिसाल कायम करते हुए साबित किया कि प्रतिभा और गुण किसी के मोहताज नहीं होते।

कहते हैं सूरदास बचपन से ही साधु प्रवृति के थे। इन्हे सगुन बताने की विद्या भगवान से वरदान के रूप में प्राप्त थी। मात्र छह वर्ष की आयु में इन्होंने अपनी इस विद्या से अपने माता पिता को चकित कर दिया था और इस वजह से ये बहुत जल्द ही प्रसिद्ध हो गए थे। लेकिन इनका मन अपने गांव में नहीं लगता था इसलिए वो अपना घर छोड़कर समीप के ही गांव में तालाब किनारे रहने लगे।

वैशाख शुक्ल पंचमी को सूरदास जी की जयंती मनाई जाती है। श्री कृष्ण की भक्ति में अपना सारा जीवन समर्पित करने वाले सूरदास की जयंती इस बार आज यानि 25 अप्रैल को है।

आइए इस पवित्र अवसर पर सूरदास जी के जीवन और उनकी रचनाओं से रुबरू होते हैं।

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जन्म को लेकर मतभेद

सूरदास के जन्म को लेकर विद्वानों के अलग अलग मत हैं। कुछ का मानना है कि उनका जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के एक गाँव में हुआ था। वहीं दूसरी ओर कुछ का कहना है कि सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। सूरदास सारस्वत ब्राह्मण परिवार से थे।

इनके पिता रामदास भी एक गायक थे जो अत्यंत ही निर्धन थे।

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महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई भेंट

कहा जाता है कि पुष्टि मार्ग के संस्थापक प्रभु श्री वल्लभाचार्य नहीं होते तो हमें सूरदास जैसे महान कवि नहीं मिलते। वल्लभाचार्य से इनकी भेंट के पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है- एक बार वल्लभ यमुना के किनारे वृंदावन की ओर से आ रहे थे की तभी उन्हें एक दृष्टिहीन व्यक्ति दिखाई पड़ा जो बहुत ही दुखी था और बिलख रहा था। उसकी यह दशा वल्लभ जी से देखी नहीं गयी और उन्होंने उससे कहा कि तुम रोने की जगह कृष्ण लीला का गायन क्यों नहीं करते। सूरदास बोले कि मैं अँधा हूँ मुझे कृष्ण लीला का ज्ञान नहीं है। तब वल्लभ ने सूरदास के माथे पर हाथ रखा। कहते हैं जैसे ही वल्लभ जी ने सूरदास के माथे पर अपना हाथ रखा सूरदास को पांच हजार वर्ष पूर्व के ब्रज में चली श्रीकृष्ण की सभी लीला कथाएं बंद आँखों से दिखने लगी।

सूरदास वल्लभ के साथ वृंदावन आ गए और वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित करके कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया जिसके पश्चात श्रीनाथ मंदिर में होने वाली आरती के क्षणों में हर दिन एक नया पद रचकर वह गायन करने लगे। इन्हीं सूरदास के हजारों पद सूरसागर में संग्रहीत हैं। इन्हीं पदों का गायन आज भी बहुत प्रसिद्ध है।

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जन्म से अंधे नहीं थे सूरदास?

सूरदास के नेत्रहीन होने को लेकर भी विद्वानों के अलग अलग मत हैं। कुछ का यह मानना है कि वे जन्म से अंधे नहीं थे क्योंकि जिस खूबसूरती से उन्होंने अपने ग्रंथों में राधा और कृष्णा के सौंदर्य का चित्रण किया है वह कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।

वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त था इसलिए वो अपनी दिव्य दृष्टि से कृष्ण लीला को देख पाए थे और उसी के आधार पर उन्होंने उसका वर्णन किया था।

पांच ग्रंथों की रचना

1.सूरसागर

2.सूरसारावली

3.साहित्य – लहरी

4. नल – दमयंती

5.ब्याल्हो

सूरदास की इन पांच रचनाओं में से तीन के प्रमाण तो मिलते है किन्तु नल – दमयंती और ब्याल्हो का प्रमाण नहीं मिलता है।

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सूरदास की मृत्यु

माना जाता है कि सूरदास की मृत्यु पारसौली गाँव में हुई थी। कहते हैं इन्हें अपनी मृत्यु का आभास पहले से ही हो गया था। सिर्फ इन्हें ही नहीं वल्लभाचार्य भी इस बात को जान चुके थे कि सूरदास का अंतिम समय आ गया है।

कहा जाता है कि वल्लाभाचार्य के शिष्य चतुर्भुजदास ने सूरदास के अंतिम समय में कहा था कि उन्होंने सदैव ही भगवद्भक्ति के पद गाये हैं गुरुभक्ति में कोई पद नहीं गाया। तब सूरदास ने कहा कि उनके लिए गुरु और भगवान दोनों एक समान है उन्होंने जो ईश्वर के लिए गया वही उनके गुरु के लिए भी है। तब उन्होंने भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो नामक पद गाया था और यही इनका अंतिम पद भी था।

सूरदास जी की जयंती

सूरदास जी की जयंती हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस अवसर पर वे विभिन्न स्थानों पर संगोष्ठी का आयोजन करते हैं तथा इनके पदों को गाकर सूरदास जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

English summary

Know About Surdas on his Jayanti

Sant Surdas was a great poet and musician known for his devotional songs dedicated to Lord Krishna on his Jayanti lets know about his life.
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