Just In
- 17 min ago प्रेगनेंसी के First Trimester में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? कैसी होनी चाहिए हेल्दी डाइट
- 1 hr ago OMG! भारत के इस गांव में प्रेगनेंट होने आती हैं विदेशी महिलाएं, आखिर यहां के मर्दों में क्या हैं खास बात
- 3 hrs ago Curd Benefits For Skin: रोजाना चेहरे पर दही मलने से पिग्मेंटेशन और मुंहासे की हो जाएगी छुट्टी, खिल उठेगा चेहरा
- 5 hrs ago IPL 2024: कौन हैं क्रिकेटर केशव महाराज की स्टाइलिश वाइफ लेरिशा, इंडिया से हैं स्पेशल कनेक्शन
Don't Miss
- Movies जब करीना कपूर ने रवीना टंडन के बॉयफ्रेंड संग किया 10 था बार लिपलॉक, पति सैफ का ऐसा था रिएक्शन
- Education Job Alert: बैंक ऑफ इंडिया ने निकाली 143 ऑफिसर पदों पर भर्ती 2024, देखें चयन प्रक्रिया
- News दिल्ली: 'राबड़ी देवी के नक्शेकदम पर चल रहीं सुनीता केजरीवाल, अगली CM बनने की कर रही तैयारी, बोले हरदीप पुरी
- Technology अप्रैल में OnePlus, Samsung, Motorola समेत इन ब्रांड्स के Smartphones होंगे लॉन्च, जानिए कीमत व स्पेक्स
- Travel एक दिन में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर वापस लौटे मुंबई, Tour Guide
- Finance 4 ETF Mutual Fund ने 3 साल में इन्वेस्टरों को दिया जबरदस्त रिटर्न
- Automobiles Tesla को टक्कर देने के लिए Xiaomi ने लॉन्च की पहली इलेक्ट्रिक कार, सिंगल चार्ज में मिलेगी 810KM की रेंज
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
इस मंदिर में होती है श्री कृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा
आज हम ज़िक्र कर रहे हैं कोलकाता के मशहूर दक्षिणेश्वर काली मंदिर का। इस मंदिर का एक बहुत बड़ा इतिहास है और इससे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर के प्रांगण में मां काली के अलावा शिव और कृष्ण के मंदिर भी हैं। आम तौर पर खंडित मूर्ति की पूजा हम वर्जित मानते हैं लेकिन यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ श्री कृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है।
आज हम आपको इस मंदिर के पीछे के निर्माण की कहानी और श्री कृष्ण के खंडित मूर्ति की पूजा का रहस्य बताएंगे।
शूद्र महिला ने करवाया था दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण शूद्र जमींदार की विधवा पत्नी रासमणि ने करवाया था। माना जाता है कि रासमणि के पास सब कुछ था किन्तु वह पति के प्यार के लिए तरसती थी। उसकी माँ काली में अपार श्रद्धा थी। जब वह अपनी उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंची तो उसके मन में तीर्थ की करने की इच्छा जागृत हुई। तब उसने यह निर्णय लिया कि वह वाराणसी से अपनी यात्रा शरू करेगी। यह सोच कर उसने माँ काली का ध्यान किया और सो गयी। कहते हैं रात को देवी माँ ने स्वयं सपने में आकर उसे दर्शन दिए और कहा कि उसे किसी भी तीर्थ स्थल पर जाने की आवश्यकता नहीं है। वह यहीं गंगा के किनारे उनके लिए एक मंदिर बनवा दे और उसमें उनकी मूर्ति की स्थापना करवा दे।
माता ने कहा कि वे स्वयं इस मंदिर में विराजमान रहेंगी और अपने भक्तों को दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करेंगी।
इसके बाद माता अंतर्ध्यान हो गयी उतने में रासमणि की नींद खुल गयी और वह अपने सपने के बारे में सोचने लगी। रासमणी ने माता के कहे अनुसार वाराणसी न जाने का निर्णय लिया और गंगा के किनारे पहुँच गयी। वहां जाकर उसने माँ काली के मंदिर के लिए ज़मीन ढूंढनी शुरू कर दी। कहा जाता है कि जब रासमणि मंदिर के लिए जगह ढूंढ रही थी तब एक स्थान पर पहुँच कर अचानक उसे आवाज़ आयी कि हाँ यही वह स्थान है यहीं पर मंदिर बनवाओ। बस फिर क्या था रासमणि के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी उसने फ़ौरन ही मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया।
यह बात 1847 की है और मंदिर बन कर तैयार हुआ 1855 में मतलब कुल आठ सालों में देवी काली का यह भव्य मंदिर तैयार हुआ था।
कहते हैं जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था तब उस समय बंगाल में कुलीन प्रथा ज़ोरों पर थी। ऐसे में एक शूद्र महिला द्वारा बनवाया हुआ मंदिर समाज के लोग स्वीकार नहीं कर रहे थे। कोई भी पुजारी इस मंदिर में पूजा करने के लिए तैयार नहीं था तब रामकृष्ण परमहंस ने इस मंदिर का पुजारी बनना स्वीकार किया। उन्होंने रासमणि से कहा कि एक शूद्र का मंदिर होने के कारण कोई भी इस मंदिर में नहीं आएगा इसलिए वे इस मंदिर को ब्राह्मण के मंदिर के रूप में चलाएंगे। रासमणि ने उनकी बात मान ली थी।
ऐसी मान्यता है कि इसी मंदिर में माँ काली की आराधना करके रामकृष्ण ने परमहंस की अवस्था प्राप्त की थी।
जब माँ काली ने राम कृष्ण परमहंस को दर्शन दिया
माना जाता है कि राम कृष्ण अन्य पुजारियों से एक दम भिन्न थे। उनका उद्देश्य केवल पूजा करके धन अर्जित करना नहीं था बल्कि माँ काली की सेवा कर मोक्ष को प्राप्त करना था। कहते हैं वे घंटो माता की प्रतिमा को निहारते, कभी कभी उन्हें माता के चरणों में बैठ कर रोते हुए भी देखा गया था।
वे इस इंतज़ार में थे कि कब देवी माँ उन्हें अपने दर्शन देंगी। उनका ऐसा बर्ताव देखकर लोग उन्हें पागल तक समझने लगे थे। एक दिन हताश होकर वे खडग से अपना सिर कांटने ही वाले थे कि माँ काली ने स्वयं आकर उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें रोक लिया।
कहा जाता है कि माता के दर्शन से उनका जीवन सफल हो गया था और उन्होंने भौतिक जीवन से कोई मोह नहीं रह गया था। इसके बाद वे जब तक जीवित रहे वे माता की भक्ति और सेवा करते रहे।
श्री कृष्ण के खंडित स्वरुप की पूजा
जैसा की हमने आप को बताया कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर के प्रांगण में शिव जी और श्री कृष्ण दोनों का ही मंदिर है। यहाँ पर श्री कृष्ण के खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है जब की ऐसा करना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है- कहते हैं एक बार जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में श्री कृष्ण की मूर्ति को भोग और आरती के पश्चात वापस उनके शयन कक्ष में ले जाया जा रहा था तभी उनकी मूर्ति ज़मीन पर गिर गयी और उस मूर्ति का एक पैर टूट गया।
यह देख सभी लोग दुखी हो गए और साथ ही उन्हें इस बात का भय सताने लगा कि श्री कृष्ण नाराज़ होकर उन्हें दण्डित करेंगे। उधर रासमणि भी बहुत चिंतित हुई। उसने सभी ब्राह्मणों से इस बात का हल ढूंढने को कहा तब उन्होंने उस खंडित मूर्ति को नदी में बहा कर उसके स्थान पर नयी मूर्ति स्थापित करने की सलाह दी। लेकिन रासमणि को यह सुझाव पसंद नहीं आया। तब वह रामकृष्ण परमहंस के पास गयी और उनसे मदद मांगी। इस पर परमहंस ने उनसे कहा कि यदि घर का कोई सदस्य बीमार हो जाता है या फिर विकलांग हो जाता है तो हम उसकी देखभाल करते हैं और उसकी सेवा करते हैं न की उसका त्याग कर देते हैं।
रासमणि को परमहंस की यह बात बहुत ही अच्छी लगी और उन्होंने फैसला लिया कि मंदिर में उसी खंडित मूर्ति की पूजा की जाएगी।