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मल्लिकार्जुन: भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग की कहानी
मल्लिकार्जुन बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव के अनुयायियों के लिए पूजा की एक बहुत प्राचीन जगह है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश में स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव के अनुयायियों के लिए पूजा की एक बहुत प्राचीन जगह है।
यह सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा अद्वितीय इसलिए है क्योंकि यहां भगवान शिव और माता पार्वती, दोनों ही मौजूद हैं।
मल्लिकार्जुन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें मल्लिका का अर्थ माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ भगवान शिव है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का एक अन्य महत्व यह है कि यह भी 275 पादल पैत्र स्थलम में से है। पादल पैत्र स्थल वो स्थान होते हैं जो भगवान शिव को समर्पित होते हैं। शैव नयनसार में छंदों में इन मंदिरों का वर्णन किया गया है जिन्हें 6वीं और 7वीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों के रूप में वर्णित किया गया है।
एक
शक्ति
पीठ
के
रूप
में
मल्लिकार्जुन
मल्लिकार्जुन
52
शक्तिपीठों
में
से
एक
है।
जब
भगवान
शिव
ने
अपनी
पत्नी
सती
के
जल
जाने
पर
उसके
शव
को
लेकर
पूरे
ब्रहमांड
में
तांडव
किया
था
तब
उनके
शरीर
के
अंगों
को
भगवान
विष्णु
ने
अपने
सुदर्शन
से
काट
दिया
था
जो
52
स्थानों
पर
जा
गिरे
थे।
इन्हीं
स्थानों
को
शक्ति
पीठ
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
ऐसा
कहा
जाता
है
कि
सती
के
होंठ
का
ऊपरी
हिस्सा,
मल्लिकार्जुन
में
गिरा
था।
इसलिए
यह
स्थान
हिंदुओं
के
लिए
और
ज्यादा
महत्वपूर्ण
है।
मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग
की
किवदंती
मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग
को
लेकर
कई
सारी
कहानी
और
किवदंती
हैं
जिनमें
से
कुछ
इस
प्रकार
हैं:
शिव पुराण में कोटिरूद्र संहिता के 15वें अध्याय में यह कहानी उल्लेखित है। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने तय किया कि वो अपने पुत्रों के लिए सही वधु का चयन करेगी। अब बहस हुई कि कौन पहले शादी करेगा। भगवान शिव ने सुझाव दिया कि जो भी पूरी दुनिया का सबसे पहले चक्कर लगा लेगा, वहीं पहले शादी करेगा।
फिर क्या... भगवान कार्तिकेय अपने मोर पर बैठ गए और चल दिए पूरे ब्रहमांड का चक्कर लगाने। वहीं गणेश जी अपने चूहे पर बैठकर अपने माता-पिता के आसपास ही चक्कर लगाने लगे और उनके तर्क के अनुसार माता पिता ही समस्त संसार होता है, के आधार पर उनका विवाह पहले कर दिया गया और उनकी शादी रिद्धि और सिद्धि से हुई। कार्तिकेय को हार से झटका पहुँचा और वो पर्वत क्रोंचा चले गए। वहां जाकर उन्होंने अपना नाम कुमार्रह्मचारी रख लिया था।
बाद में भगवान शिव और माता पार्वती उस पर्वत पर कार्तिकेय को ढूंढने गए। जब कार्तिकेय को पता चला तो वह किसी दूसरे स्थान पर चले गए। जहां माता पार्वती और भगवान शिव ने इंतजार किया था, उस जगह को श्रीशैलम के नाम से जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने अमावस्या और माता पर्वती ने पूर्णिमा के दिन कार्तिकेय से मिलने के लिए चुना था।
अगली कहानी ये है कि चंद्रवती नामक राजकुमारी थीं। ये वो कहानी है जो कि मल्लिकार्जुन की दीवारों पर लिखी हुई है।
चंद्रवती, राजकुमारी का जन्म लेकर पैदा हुई और शाही ठाठ से रहती थीं। लेकिन उन्होंने ये सब त्याग कर दिया और अपना जीवन तपस्या में बिताने लगी। वो कदाली जंग में ध्यान लगाएं हुए थी कि उन्हें कुछ महसूस हुआ। उन्होंने देखा कि एक कपिला गाय बेल वृक्ष के पास है और अपने दूध से वहां के एक स्थान को धुल रही है। ऐसा हर दिन होता था। एक दिन जाकर राजकुमारी ने उस स्थान को देखा और वहां खुदाई की। यहां उसे एक शिवलिंग प्राप्त हुई जो कि अग्नि लौ की तरह दिख रही थी।
इस
प्रकार,
इस
शिवलिंग
की
स्थापना
हुई।
कहा
जाता
है
कि
चंद्रवती
भगवान
शिव
की
बहुत
बड़ी
भक्त
थीं
और
जब
उनका
अंत
समय
आ
गया
था
तो
वो
हवा
के
साथ
कैलाश
उड़
गईं
थी
और
उनहें
मोक्ष
मिल
गया
था।
मल्लिकार्जुन का महत्व:
ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है।
महोत्सव: महाशिवरात्रि के दौरान यहां बहुत बड़ा महोत्सव होता है। इस वर्ष ये महोत्सव 23 फरवरी को है।