For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts

नाग पंचमी के दिन जरूर पढ़नी चाहिए इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा

|

हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म के मानने वाले लोगों के लिए ये दिन बहुत खास होता है। इस दिन नाग देव की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद पाया जाता है। सावन माह को भोलेनाथ का प्रिय महीना बताया गया है। इस महीने में ही उनके आभूषण बनकर सदैव साथ रहने वाले नाग देव की भी विशेष आराधना की जाती है। नाग पंचमी तिथि पर इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा पढ़ने और सुनने से भी जातक को लाभ मिलता है।

नागपंचमी की पौराणिक कथा

नागपंचमी की पौराणिक कथा

नागपंचमी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों का विवाह हो चुका था। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसका कोई भाई नहीं था।

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी धलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- ‘मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।'

यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-‘हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।

उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सबको साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार। सर्प ने कहा- ‘तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं। नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता।

वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांंगती हूंं। तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांंगना हो, मांंग ले। वह बोली- भैया, मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

Nag Panchami 2020: नाग पंचमी व्रत कथा | Nag Panchami Vrat Katha | Boldsky
सर्प पहुंचा बहन के घर

सर्प पहुंचा बहन के घर

कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था।

उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वही सर्प हूंं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- ‘मैं बाहर जा रही हूंं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उसने गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई।

परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांंदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- ‘इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए।' तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।'

राजा ने मंगवाया सर्प का दिया कीमती हार

राजा ने मंगवाया सर्प का दिया कीमती हार

राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि ‘महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो।' सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंंगाकर दे दिया।

छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए।

राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दंड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन, धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।

राजा हुए प्रसन्न

राजा हुए प्रसन्न

यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी बहू अपने हार और धन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

English summary

Nag Panchami Pauranik Vrat Katha In Hindi

Nag Panchami Special: Nag panchami vrat katha in hindi.
Desktop Bottom Promotion