Just In
- 9 hrs ago Blackheads Removal Tips: नहीं निकल रहे हैं ठुड्डी पर धंसे हुए ब्लैकहेड्स? 5 मिनट में ये नुस्खें करेंगे काम
- 10 hrs ago आम पन्ना से 10 गुना ज्यादा ठंडक देता है इमली का अमलाना, लू से बचने का है देसी फार्मूला
- 12 hrs ago रूबीना दिलैक ने शेयर किया स्तनपान से जुड़ा दर्दनाक एक्सपीरियंस, नई मांए ने करें ये गलती
- 13 hrs ago Gajalakshmi Yog April 2024: 12 वर्षों के बाद मेष राशि में बनेगा गजलक्ष्मी राजयोग, इन 3 राशियों पर बरसेगा पैसा
Don't Miss
- News VASTU TIPS : घर में समृद्धि लाना है तो इन उपायों पर गौर फरमाइए
- Education UP Board 12th Result 2024: यूपी बोर्ड 12वीं रिजल्ट 2024 कल 2 बजे आयेगा, यहां देखें UPMSP Result डाउनलोड लिंक
- Movies OOPS: बेटे अरहान से गंदी बातें करने के बाद अब इस हाल में दिखी मलाइका, बार-बार ठीक करती रही लटकती फिसलती ड्रेस
- Technology Vivo के इस 5G फोन की कल होने जा रही एंट्री, लॉन्च से पहले कीमत से लेकर फीचर्स तक की डिटेल लीक
- Travel हनुमान जयंती : वो जगहें जहां मिलते हैं हनुमान जी के पैरों के निशान
- Finance Employee Count: देश की टॉप IT कंपनियों में कम हो गए 63,759 कर्मचारी, जानें किस कंपनी में कितने लोग हुए कम
- Automobiles 3 करोड़ की कार में वोट डालने पहुंचे साउथ सिनेमा के दिग्गज स्टार Dhanush, फैंस ने किया स्वागत
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
Rama Ekadashi vrat katha : व्रत कथा के बिना अधूरा है एकादशी व्रत, सुनने मात्र से कट जाते हैं पाप
कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकदशी तिथि कई मायनों में ख़ास बताई गयी है। यह चातुर्मास की आखिरी एकदशी होती है। अन्य सभी एकदशी तिथि में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन रमा एकदशी के मौके पर माता लक्ष्मी का भी विशेष पूजन किया जाता है। यह एकादशी माता लक्ष्मी के ही नाम रमा पर है। रमा एकादशी व्रत का प्रभाव काफी अधिक माना गया है। इस दिन व्रत कथा का पाठ अथवा श्रवण भर कर लेने से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। एकादशी के व्रत करने वाले भक्तों को कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके बिना तो व्रत अधूरा माना जाता है। इस लेख में आप भी पढ़ें रमा एकादशी व्रत कथा।
रमा एकादशी व्रत कथा
रमा एकादशी की प्रचलित व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में मुचुकुंद नाम के प्रतापी राजा थे। उनकी पुत्री का नाम था चंद्रभागा। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया। शरीर से कमजोर और दुर्बल होने के कारण शोभन एक पहर भी बिना खाए नहीं रह सकता था। कार्तिक माह में शोभन अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया था। तभी रमा एकादशी की तिथि आ गई। चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी ने ये व्रत रखा और शोभन को भी यह व्रत रखने को कहा। मगर शोभन चिंतित हो गया क्योंकि वह एक पल भी भूखे नहीं रह सकता था। ऐसे में वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा।
उसने अपनी पत्नी से इसका उपाय निकालने के लिए कहा। चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसी समस्या है तो आपको राज्य से बाहर जाना होगा क्योंकि राज्य में सभी लोग ये व्रत रखते हैं। यहां के पशु भी अन्न ग्रहण नहीं करते। मगर शोभन ने ऐसा करने से मना कर दिया और व्रत करने का फैसला किया। अगले दिन सभी के साथ शोभन ने भी रमा एकादशी का व्रत किया। मगर भूख-प्यास सहन न कर पाने के कारण उसने प्राण त्याग दिए।
चंद्रभागा सती होना चाहती थी। मगर पिता ने ऐसा करने से उसे रोक लिया और भगवान विष्णु पर भरोसा करने को कहा। पिता की आज्ञानुसार चंद्रभागा सती नहीं हुई और अपने पिता के घर पर ही रहकर एकादशी के व्रत करने लगी।
उधर रमा एकादशी के शुभ प्रभाव से शोभन को जल से निकाल लिया गया और श्रीहरि के आशीर्वाद से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण और शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। शोभन के महल में रत्न और स्वर्ण के खंभे लगे थे। राजा शोभन स्वर्ण और मणियों के सिंहासन पर खूबसूरत और कीमती वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था और एक दिन घूमते-घूमते वह शोभन के राज्य में जा पहुंचा। शोभन को ब्राह्मण ने पहचान लिया और उसके निकट गया।
राजा शोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठे और अपने ससुर तथा पत्नी चंद्रभागा के बारे में पूछा। शोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि ऐसा अनोखा और सुंदर नगर आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ।
ब्राह्मण की जिज्ञासा को शांत करते हुए शोभन ने कहा कि यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह सुंदर नगर प्राप्त हुआ है। लेकिन ये अस्थिर है। ब्राह्मण ने पूछा कि यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है। क्या इसे स्थिर करने में मैं आपको कोई मदद कर सकता हूं। ब्राह्मण की बात का जवाब देते हुए शोभन ने बताया कि मैंने वह व्रत विवश होकर और श्रद्धारहित किया था इसलिए मुझे ये अस्थिर नगर प्राप्त हुआ। लेकिन अगर तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा से कहोगे तो वह इसे स्थिर बना सकती है।
इसके बाद ब्राह्मण वहां से वापस अपने नगर को लौट आया और उसने चंद्रभागा से सारा वाक्या कह सुनाया। ब्राह्मण की ये बातें सुनकर राजकन्या को यकीन नहीं हुआ। उसने ब्राह्मण से उस नगर में ले जाने का आग्रह किया। उसने कहा मैं अपने पति को देखना चाहती हूं। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी।
चंद्रभागा की बात सुनकर ब्राह्मण ने बिना देरी किए उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम ले आए। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चंद्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई। शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे अपने पास आसन पर बैठा लिया।
चंद्रभागा ने राजा शोभन को बताया कि हे स्वामी जब मैं अपने पिता के घर आठ वर्ष की थी तब से ही मैं पूरे विधि विधान के साथ एकादशी का व्रत कर रही हूं। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। चंद्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र व अलंकारो से सज-धजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।