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Ramanuja Jayanti 2022: क्यों की जाती है श्री रामानुजाचार्य के मूल शरीर की पूजा? जानिए इसका रहस्य
वैष्णव
धर्म
का
प्रचार
करने
वाले
और
महान
विद्वान
श्री
रामानुजाचार्य
की
जयंती
6
मई,
2022
शुक्रवार
को
बड़ी
ही
धूमधाम
से
मनाई
जाएगी।
इनका
जन्म
1017
ई.
में
दक्षिण
भारत
के
तिरुकुदूर
क्षेत्र
में
हुआ
था।
भारत
के
दक्षिणी,
उत्तरी
हिस्सों
में
इस
दिन
का
खास
महत्व
है।
श्री
रामानुजाचार्य
की
जयंती
पर
लोग
उनकी
विशेष
पूजा
करते
हैं।
मंदिरों
को
खूब
सजाया
जाता
है
और
वहां
की
रौनक
देखने
लायक
होती
है।
कई
जगहों
पर
पूजा
पाठ,
भजन
कीर्तन
के
अलावा
सांस्कृतिक
कार्यक्रमों
का
भी
आयोजन
किया
जाता
है।
इतना
ही
नहीं
लोग
पूरे
श्रद्धा
भाव
से
पाठ
आदि
भी
करते
हैं।
आइए
श्री
रामानुजाचार्य
की
जयंती
के
खास
मौके
पर
आपको
उनसे
जुड़ी
कुछ
खास
जानकारियां
देते
हैं।
तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म
श्री रामानुजाचार्य जी का जन्म 1017 ई. में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर गांव के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि उनके माता पिता ने यज्ञ के साथ कठिन पूजा की थी जिसके बाद श्री रामानुजाचार्य के माता पिता को वे पुत्र के रूप में प्राप्त हुए थे। जब श्री रामानुजाचार्य जी का जन्म हुआ तब उनके शरीर पर कई दिव्य निशान थे। उन्हें श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
यादव प्रकाश गुरु से मिली वेदों की शिक्षा
बचपन में श्री रामानुजाचार्य जी ने वेदों की शिक्षा कांची में यादव प्रकाश गुरु से प्राप्त की थी। रामानुजाचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। अपने गुरु की इच्छानुसार उन्होंने ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखने का संकल्प लिया था।
भक्तिवाद के लिए बने संन्यासी
श्री रामानुजाचार्य अपना सब कुछ त्याग कर मैसूर के श्रीरंगम से शालग्राम नामक स्थान पर रहने लगे थे। उन्होंने यहां के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली थी। बाद में इसी जगह पर श्री रामानुजाचार्य ने पूरे 12 वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया था। उन्होंने वैष्णववाद के लिए पूरे भारत देश का भ्रमण किया था।
रामानुजाचार्य एक महान दार्शनिक थे जिनका मानना था कि मोक्ष प्राप्त करने का एक ही तरीका है भगवान विष्णु की भक्ति। यही वजह है कि इनकी जयंती पर लोग विष्णु जी की पूजा करते हैं। कुछ भक्त व्रत भी रखते हैं।
रंगनाथ मंदिर में सुरक्षित है श्री रामानुजाचार्य जी का मूल शरीर
सबसे बड़ी बात यह है कि तिरुचरापल्लि के श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में आज भी श्री रामानुजाचार्य जी का मूल शरीर जो 1000 साल से भी पुराना है उसे संभालकर रखा गया है। यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है। कहा जाता है की अपनी वृद्धावस्था में श्री रामानुजाचार्य जी यहां गए थे और करीब 120 वर्ष की आयु तक यही रहे थें। उन्होंने भगवान श्री रंगनाथ से अपना देह त्यागने की अनुमति ली थी और यह उनकी ही इच्छा थी की उनके मूल शरीर को मंदिर के एक कोने में रखा जाए। इस मंदिर में उनके वास्तविक मृत शरीर की पूजा की जाती है।
रामानुजाचार्य जयंती का महत्व
रामानुजाचार्य ने वैष्णव सिद्धांतों और संदेशों से लोगों को अवगत कराया और भक्ति के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता बताया। इनकी जयंती पर उपनिषदों का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है।