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शीतलाष्‍टमी 2018: इस दिन बासी खाने से नहीं होते हैं रोग.. 'बासोड़ा' पूजन विधि और मूहूर्त

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होली के आठ दिन बाद हिंदू कैलेंडर के अनुसार शीतला अष्टमी 2018 पर मां शीतला देवी की पूजा की जाती है। पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती हैं। इस पर्व को 'बासौड़ा', 'लसौड़ा' या 'ठंडा पूजन' के नाम से भी जाना जाता है। शीतलाष्‍टमी के दिन एक रात पहले ही महिलाएं खाना बनाकर रख देती हैं, इसके बाद अष्‍टमी की सुबह सबसे पहले शीतला माता को भोग लगाकर घर के अन्‍य सदस्‍यों को खिलाती हैं, इस‍ पूरे दिन घर में चूल्‍हा नहीं जलाया जाता हैं।

आइए जानते है कि कब है शीतला अष्टमी 2018, शीतला अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारें। आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि कुछ जगह ऐसी हैं जहां मां शीतला की पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है।

इस दिन शीत रोगों से बचने के लिए मां शीतला देवी की पूजा की जाती हैं।

शीतलाष्‍टमी मूहूर्त

शीतलाष्‍टमी मूहूर्त

इस बार शीतला अष्टमी 9 मार्च 2018 को है, शीतला अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त प्रातः 06:41 बजे से सायं 06:21 बजे तक है। कुल अवधि 11 घंटे 40 मिनट की है, अष्टमी तिथि प्रारंभ 9 मार्च 2018, प्रातः 03:44 बजे से होगा, जिसका समापन 10 मार्च 2018 प्रातः 06:00 बजे होगा।

भोग की विधि

भोग की विधि

शीतलाष्टमी के एक दिन मां को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार किया जाता है। इस दिन बासी पदार्थ मां को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद को भक्तों में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इस पूरे दिन लोग बासी या ठंडा खाना जो मां शीतलाष्‍टमी को चढ़ता है पूरे दिन यहीं खाया जाता हैं।

शीतला माता की उपासना वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है।

 चेचक और शीत रोगों से रक्षा

चेचक और शीत रोगों से रक्षा

महिलाएं अपने बच्चों की आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए बसौड़ा बनाकर शीतला माता की पूजा करती हैं। इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की 5 अंगुली घी से लगाई जाती हैं। इस पर रोली तथा चावल लगाकर देवी माता के गीत गाए जाते हैं। इसके साथ शीतला स्तोत्र तथा कहानी सुनी जाती है। इस दिन चौराहे पर भी जल डालकर पूजा करनी चाहिए। मान्‍यता है कि इस दिन को विधिपूर्वक रुप से पालन करने से जितने भी शीत जनित रोग है जैसे ज्‍वर, चेचक और नेत्रविकार की समस्‍या दूर होते हैं। इस दिन साफ सफाई का विशेष महत्‍व होता हैं।

 शीतला मां का स्‍वरुप

शीतला मां का स्‍वरुप

मां शीतला हाथों में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं। शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घंटकर्ण, त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु नाशक, रोगाणु नाशक, शीतल स्वास्थ्यवर्धक जल होता है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी।

वैज्ञानिक कारण

वैज्ञानिक कारण

देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। माना जाता है यदि किसी बच्चे को इस तरह की बीमारी हो जाए तो उन्हें माँ शीतला का पूजन करना चाहिए इससे बीमारी में राहत मिलती है और मान्‍यता है कि शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करने से घर में कोई बीमारी वास नहीं करती है और परिवार निरोग रहता है। चेचक रोग जैसे अनेक संक्रमण रोगों का यही मुख्य समय होता है अत: शीतला माता की पूजा का विधान पूर्णत: महत्वपूर्ण एवं सामयिक है।

कहीं कहीं पर शीतलासप्‍तमी

कहीं कहीं पर शीतलासप्‍तमी

वहीं गुजरात में ये त्‍योहार जन्‍माष्‍टमी से एक दिन पहले मनाया जाता हैं, जिसे शीतला सातम कहा जाता हैं, उस दिन भी शीतला माता की पूजा की जाती हैं, जहां राजस्‍थान में शीतलाष्‍टमी धूमधाम से मनाया जाता हैं, वहीं राजस्‍थान के जोधपुर में ही इसे शीतलाष्‍टमी से एक दिन पहली सप्‍तमी को यह त्‍योहार मनाया जाता हैं।

English summary

Shitala Ashtami 2018: Date, Rituals and Puja Muhurat of Basoda Puja

Basoda is also known as Sheetala Ashtami. Usually it falls after eight days of Holi but many people observe it on first Monday or Friday after Holi. Sheetala Ashtami is more popular in North Indian states like Gujarat, Rajasthan and Uttar Pradesh.
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