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Sita Navami 2022: 16 महादानों का फल प्राप्त करने के लिए सीता नवमी पर इस विधि से करें पूजा
इस बार सीता नवमी का पावन पर्व 10 मई, मंगलवार को मनाया जाएगा। माना जाता है कि इस शुभ दिन ही देवी सीता का जन्म हुआ था। राम नवमी की तरह लोग सीता नवमी को भी पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन को जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। देवी सीता स्वयं लक्ष्मी जी का ही स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा करते हैं, उन्हें मनचाहा फल मिलता है। सीता नवमी पर माता के साथ राम जी की भी पूजा की जाती है। इसके अलावा लोग श्री हरि और लक्ष्मी माता की भी पूजा करते हैं।
अपने सीता अवतार में लक्ष्मी जी का जीवन कष्टों से भरा था। पहले वनवास, फिर रावण द्वारा उनका हरण हुआ और अंत में श्री राम का उन्हें त्यागना। सीता नवमी के इस शुभ अवसर पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ रहस्य बताएंगे। इसके अलावा यहां आपको पूजा की सही विधि के साथ शुभ मुहूर्त और इस पूजा के महत्व के बारे में भी पता चलेगा।
कैसे हुआ सीता जी का जन्म
धार्मिक ग्रंथो में इस बात का उल्लेख किया गया है कि त्रेतायुग में रावण का अंत करने के लिए विष्णु जी धरती पर राम रूप में आए थे, इसलिए लक्ष्मी जी का जन्म सीता जी के रूप में हुआ था। हालांकि सीता जी के जन्म से जुड़ा किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। मिथिला नगरी के राजा जनक संतान प्राप्ति के लिए विशाल यज्ञ का आयोजन करना चाहते थे और इसके लिए वे भूमि तैयार कर रहे थे। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जब वे हल से भूमि जोत रहे थे तो उनका हल किसी चीज़ से टकरा जाता है और उन्हें वहां एक सुंदर बालिका मिलती है जिसे वे अपनी बेटी बना लेते हैं और उसे सीता नाम देते हैं।
हरण के बाद क्यों हाथ में रखती थीं सीता जी घास का तिनका
एक कथा के अनुसार शादी के बाद जब पहली बार सीता जी ने घर के सदस्यों के साथ सभी ऋषि मुनियों के लिए खाना पकाया था तब खीर में कहीं से घास का एक तिनका आकर गिर गया था। देवी जानकी ने उस तिनके को घूरकर देखा जिसके बाद वह राख में बदल गया। यह सब राजा दशरथ ने देख लिया और उन्होंने सीता जी से वजन लिया था कि वे अपने शत्रु को कभी भी इस तरह से घूरकर नहीं देखेंगी। यही वजह थी की जब भी रावण उनके पास आता वे घास के तिनके की तरफ देखने लगतीं।
सीता नवमी के दिन ऐसे होती है पूजा
इस दिन भक्त पूजा के साथ व्रत भी रखते हैं, इसके लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि के बाद आप व्रत और पूजा का संकल्प लें। पूजा करने के लिए आप लकड़ी की छोटी सी चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर राम और सीता जी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। फल फूल मिठाई आदि चढ़ाएं। फिर देवी मां के आगे सुहाग की सारी चीजें रखें। रोली, चंदन और सिंदूर का टिका लगाएं। धूप और घी का दिया जलाएं। अब सीता जी के नाम का 108 बार जाप करें। आप सीता चालीसा का भी पाठ कर सकते हैं। शाम को भी पूजा और आरती करें। इस दिन दान करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
सीता नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 57 मिनट से दोपहर 01 बजकर 39 मिनट तक है।
सीता नवमी की पूजा का महत्व
कहा जाता है की इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं। इसके अलावा यह पूजा 16 महादानों का फल देती है और इससे सारे तीर्थों के दर्शन के बराबर का भी फल मिलता है।