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अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक कहानियां
अक्षय तृतीया का महत्व एवं इस दिन को मनाने के पिछे छुपी कारणों का पता चलता है। यदि आप इन किंवदंतियों के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को आगे पढ़ें।
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इस त्यौहार को वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को नई शुरुआत के रूप में माना जाता है।
जानिए अक्षया तृतीय का क्या महत्व है शादीशुदा दम्पतियों के जीवन में?
'अक्षय तृतीया' में 'अक्षय' शब्द का अर्थ है कभी ना समाप्त होने वाला या अनंत। इसके नाम से यह स्पष्ट है कि इस दिन आरंभ किए गए काम में आपको बढ़त हासिल होगी।
अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए इस दिन कुछ लोग दान पुण्य के काम में जुटते हैं। कुछ लोग पंडित द्वारा बताई गई चीज़ों का ही दान करते हैं। माना जाता है कि इस दिन आरंभ किए गए किसी भी कार्य को सफलता हासिल होती है।
आखिर
क्यूं
काटा
परशुराम
ने
अपनी
मां
का
सिर?
अक्षय
तृतीया
को
विवाह
के
लिए
काफी
शुभ
दिन
माना
जाता
है।
धारणा
है
कि
यह
शुभ
दिन
विवाहित
जोडे
के
रिश्ते
को
मजबूत
बनाता
है
तथा
वे
अपनी
विवाहित
जीवन
सुख
और
शांति
से
बिताते
हैं।
इन मान्यताओं से जुडी कहानियां आपको किंवदंतियों में मिल जाएंगी। इन कहानियों से अक्षय तृतीया का महत्व एवं इस दिन को मनाने के पिछे छुपी कारणों का पता चलता है। यदि आप इन किंवदंतियों के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को आगे पढ़ें।
भगवान परशुराम का जन्म
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु इस धरती पर भगवान परशुराम के रूप में पैदा हुए थे। भगवान परशुराम भगवान महाविष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ तथा वे जमदग्नी व रेणुका के पुत्र थे। ब्राह्मण कुल में पैदा होने के बावजूद उन्होंने यह प्रण लिया कि वे धरती पर मौजूद सभी दुष्ट क्षत्रियों का नाश करेंगे। जबकि ब्राह्मण कुल के लोग क्षत्रियों को युद्ध कला सिखाते हैं ना कि स्वयं युद्ध में उतरते हैं। एक पौराणिक कथा यह भी है कि केरल की भूमि को भगवान परशुराम ने समुद्र में अपनी कुल्हाड़ को फेंककर पुनः प्राप्त किया।
इसी दिन गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थी
आकाशगंगा में वास करने वाली पवित्र गंगा इसी दिन अक्षय तृतीया के दिन धरती पर उतरी थी। राजा भगीरथ द्वारा की गई तपस्या के फल स्वरूप भगवान शिव ने अपनी जटा में देवी गंगा को बांधकर धरती पर उतारा। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन गंगा नदी में स्नान किया जाता है। ये पौराणिक कहानियां केवल इस दिन की पवित्रता को बढ़ाती हैं।
देवी अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था
देवी अन्नपुर्णा देवी पार्वती का ही रूप है। माना जाता है कि देवी अन्नपुर्णा का जन्म अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर हुआ था। समृद्धि की देवी के रूप में पूजी जाने वाली देवी अन्नपुर्णा, इस दिन सभी प्राणियों का पेट भरती है। इस दिन देवी अन्नपुर्णा की पूजा कर भक्त कामना करते हैं कि उनके भंड़ार सदा भरे रहें।
कुबेर को मिला था वर
दक्षिण भारत में माना जाता है कि धन-धान्य प्राप्त करने के लिए भगवान कुबेर ने अक्षय तृतीया के दिन देवी लक्ष्मी की उपासना की। उनकी भक्ति से खुश होकर, देवी ने उनकी इच्छा पूरी की तथा उन्हें धन का देवता बना दिया। अक्षय तृतीया के दिन, दक्षिण भारत के लोग पहले भगवान महाविष्णु की पूजा करते है और बाद में देवी लक्ष्मी की। इस दिन लक्ष्मी यंत्र को भी पूजा जाता है। पूजा के स्थान पर भगवान महाविष्णु और देवी लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की भी तस्वीर रखी जाती है।
महाभारत से भी है कनेक्शन
महाकाव्य महाभारत में भी हमें अक्षय तृतीया का उल्लेख मिलता है। महर्षि वेद व्यास ने इस शुभ दिन पर महाकाव्य महाभारत को लिखना शुरू किया। युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया के दिन अक्षय पात्र वरदान के रूप में मिला। वन वास के दौरान वरदान में मिले अक्षय पात्र में द्रौपदी के भोजन करने तक भोजन समाप्त ना होता। इसके अलावा, चीरहरण के वक्त जब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तब द्रौपदी की मदद करने भगवान कृष्ण तुरंत पहुंच गए। माना जाता है कि यह घटना अक्षय तृतीया के दिन पर हुई थी।
सुदामा मिले थे कृष्ण से
एक और कहानी भगवान कृष्ण को अक्षय तृतीया के शुभ दिन से जोड़ती है। सुदामा जोकि भगवान कृष्ण के बाल सखा थे, काफी गरीब थे। मदद मांगने के लिए वे एक दिन कृष्ण के महल पहुंचे। परंतु संकोच के कारण वे भगवान कृष्ण से कुछ भी ना कह सके। लेकिन भगवान कृष्ण उनकी मन की बात जान चुके थे। घर पहुंचने पर सुदामा ने देखा उनकी घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बद गई थी।