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कैसे बनी गांधारी 101 संतानो की माता, जानिए

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महाभारत की एक प्रमुख पात्र गांधारी ने एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे सौ पुत्रों और एक पुत्री को जन्म दिया था। क्या यह बात आपको अचंभित नहीं करती। गांधारी के सौ संतानों की माता बनने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। आइए जानते है क्या है वो रहस्य।

pandav,

धृतराष्ट्र से हुआ था विवाह

गांधारी के पिता गांधार नरेश सुबल ने अपनी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र से कराया था। जब गांधारी को इस बात का ज्ञात हुआ की उसका पति नेत्रहीन है तो पत्नी धर्म निभाते हुए उसने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और आँखें होते हुए भी आजीवन नेत्रहीन रहने का संकल्प लिया।

pandav,

महर्षि वेदव्यास ने दिया वरदान

कहते हैं एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। गांधारी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। इससे प्रसन्न होकर महर्षि ने गांधारी को वरदान मांगने के लिए कहा। तब गांधारी ने अपने पति के समान ही सौ बलवान पुत्रों का आशीर्वाद महर्षि से माँगा। समय आने पर गांधारी गर्भवती हुई किन्तु जब दो वर्ष बीत जाने के बाद भी उसकी संतानो का जन्म नहीं हुआ तो वह चिंतित हो उठी।

एक दिन क्रोध में आकर उसने अपने पेट पर ज़ोर से मुक्का मार कर अपने गर्भ को गिरा दिया जिसके पश्चात उसमें से लोहे के समान एक मांस पिंड निकला। कहते हैं योगदृष्टि से तुरंत ही इस बात की जानकारी महर्षि को हो गई और वह तुरंत ही हस्तिनापुर पहुँच गए। वहां पहुँचते ही उन्होंने गांधारी को आदेश दिया की वह सौ कुंडों में घी भरकर रख दे। महर्षि की आज्ञा के अनुसार गांधारी ने ठीक वैसा ही किया बाद में उन्होंने गांधारी को उसके गर्भ से निकले उस मांस पिंड पर जल छिड़कने को कहा। जैसे ही गांधारी ने उस पर जल डाला उस मांस पिंड के एक सौ एक टुकड़े हो गए।

वेदव्यास ने गांधारी से उन टुकड़ों को घृत से भरे कुंडों में डालने के लिए कहा और साथ ही यह भी आज्ञा दी वह कुंडों को दो वर्ष के बाद ही खोले। ठीक दो वर्षों के पश्चात उन कुंडों में से सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ और फिर उसके बाकी 99 भाइयों का और एक बहन का। यह सौ भाई कौरवों के नाम से जाने जाते है।

माना जाता है कि दुर्योधन के जन्म के बाद ऋषि-मुनियों ने भविष्यवाणी की थी कि वह कुल का विनाशक साबित होगा इसलिए धृतराष्ट्र और गांधारी को अपने उस पुत्र का बलिदान देना होगा किन्तु पुत्र के मोह में वे दोनों ऐसा नहीं कर पाए।

भविष्य में दुर्योधन ही महाभारत के युद्ध का कारण बना जिसमें कौरवों का नाश हो गया।

pandav,

गांधारी की पुत्री दुश्शला

गांधारी की पुत्री का नाम दुश्शला था जिसका विवाह जयद्रथ के साथ हुआ था जो सिंधु प्रदेश का राजा था।

जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र को यह वरदान प्राप्त था कि उसके पुत्र का वध कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर पाएगा। जो भी जयद्रथ को मारकर उसका सिर ज़मीन पर गिरायेगा, उसके सिर के हज़ारों टुकड़े हो जायेंगे। बाद में जयद्रथ का वध अर्जुन ने किया था।

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात जब गांधारी ने अपने पुत्रों का शव देखा तो वह विलाप करने लगी। उसने श्री कृष्ण को युद्ध का ज़िम्मेदार ठहराते हुए श्राप दे दिया था कि ठीक 36 वर्ष बाद वह भी अपने ही परिवार के सदस्यों का वध करेंगे और खुद भी एक अनाथ की तरह मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। किन्तु भगवान को इन सब बातों का ज्ञान पहले से ही था।

English summary

Story of Gandhari and Her 100 Sons

Because of the saint Vyas boon, Gandhari became a mother of 100 sons and one daughter who is later known as the Kauravas.
Story first published: Wednesday, April 18, 2018, 11:01 [IST]
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