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ये हैं महाभारत और रामायण काल के सर्वश्रेष्ठ गुरु, जिन्हें आज भी याद किया जाता है
गुरुर
ब्रह्मा
गुरुर
विष्णु
गुरुर
देवो
महेश्वरः
गुरुः
साक्षात्परब्रह्मा
तस्मै
श्री
गुरुवे
नमः
हमारे देश में हमेशा से ही गुरु को देवता की तरह पूजा जाता है और सदियों से गुरु की पूजा की परंपरा चली आ रही है। चाहे वो देवता हो या फिर मनुष्य सभी अपने गुरु को पूजनीय मानते हैं। यहां तक कि गुरुओं को भगवान से भी ऊपर माना जाता है।
आज 5 सितंबर को पूरा देश शिक्षक दिवस बड़े ही धूमधाम से मना रहा है यह दिन गुरुओं को सम्मान देने का दिन है।
आज ही के दिन जाने माने विद्वान, शिक्षक, दार्शनिक और भारत के पहले उप-राष्टपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्म हुआ था। डॉ. राधा कृष्णन ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सारे महान कार्य किये हैं इसलिए उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज इस ख़ास मौके पर हम आपको कुछ पौराणिक गुरूओं और उनके शिष्यों के बारे में बताएंगे।
महर्षि
वाल्मीकि
और
श्री
राम
महर्षि
वेदव्यास
और
ऋषि
जैमिन,
रोमहर्षण
परशुराम
और
भीष्म,
कर्ण,
द्रोणाचार्य
गुरु
द्रोणाचार्य
और
पांडव
गुरु
विश्वामित्र
और
राम-लक्ष्मण
गुरु
कृपाचार्य
और
पाण्डव-कौरव
गुरु
वशिष्ठ
और
राम,
लक्ष्मण,
भरत,
शत्रुघ्न
1. महर्षि वाल्मीकि और श्री राम
पवित्र हिंदू ग्रंथ रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि न सिर्फ भगवान राम और लक्ष्मण के गुरु थे बल्कि उन्होंने श्री राम के पुत्रों लव और कुश को भी अस्त्र शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। इतना ही नहीं वाल्मीकि ने कई तरह के अस्त्रों और शस्त्रों का आविष्कार भी किया था।
2. महर्षि वेदव्यास और ऋषि जैमिन, रोमहर्षण
भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है इसलिए गुरु पूर्णिमा इन्हें समर्पित किया गया है। वेदव्यास ने महाभारत के अलावा वेदों और 18 पुराणों की रचना की थी। ऋषि जैमिन और रोमहर्षण के साथ वैशम्पायन और मुनि सुमन्तु भी इनके शिष्य थे।
3. परशुराम और भीष्म, कर्ण तथा द्रोणाचार्य
परशुराम ने समस्त संसार को क्षत्रियों के अत्याचार से बचाने के लिए 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था। इन्होंने भीष्म और कर्ण और द्रोणाचार्य जैसे महान योद्धाओं को शिक्षा प्रदान की थी।
4. गुरु द्रोणाचार्य और पांडव
देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। द्रोणाचर्य एक महान धनुधर्र थे। अर्जुन, भीम, दुर्योधन, युधिष्ठिर, दुशासन और एकलव्य इनके प्रमुख शिष्यों में से थे। द्रोणाचार्य ने अपने वरदान की रक्षा के लिए गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया था।
5. गुरु विश्वामित्र और राम-लक्ष्मण
भगवान राम और लक्षमण ने गुरु विश्वामित्र से कई तरह के अस्त्रों और शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था। कहते हैं एक बार विश्वामित्र सभी देवताओं से रूष्ट हो गए थे और इन्होंने एक अलग ही सृष्टि की रचना कर डाली थी।
6. गुरु कृपाचार्य और पाण्डव-कौरव
भीष्म ने ही गुरु कृपाचार्य को कौरवों और पांडवों की शिक्षा और दीक्षा का कार्यभार संभालने को दिया था। कहते हैं कृपाचार्य के पिता को भी धनुर्विद्या में महारत हासिल थी। इतना ही नहीं गुरु कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।
7. गुरु वशिष्ठ और राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न
सप्तऋषियों में से एक गुरु वशिष्ठ सूर्यवंश के कुलगुरु थे। इन्होंने ही श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म के लिए महान यज्ञ किया था। इन चारों भाइयों ने इनसे भी शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी।