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ये आठ आत्माएं आज भी करती हैं धरती पर वास
भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि इस दुनिया में कुछ भी अमर नहीं होता जो भी संसार में आया है उसे एक न एक दिन वापस जाना ही है। अच्छे कर्म केवल मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलवाते हैं लेकिन उसे अमर नहीं बनाते।
इस संसार में कई बुरी आत्माओं और असुरों ने मृत्यु पर जीत हासिल करने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन उनके हाथ सिर्फ असफलता लगी। ठीक उसी प्रकार कुछ देवता और पवित्र आत्माओं ने भी प्रयास किया और कुछ को अमर होने का वरदान प्राप्त हुआ। जी हाँ कहते हैं कुल आठ आत्माएं हैं जो आज भी अमर हैं और इस संसार में हमारे साथ वास करती हैं। इन आठ आत्माओं को अष्ट चिरंजीवी कहा जाता है।
इन आठ आत्माओं के नाम इस प्रकार है बजरंगबली, भगवान परशुराम, ऋषि वेदव्यास, ऋषि कृपाचार्य, अश्वथामा और विभीषण। हालांकि इनमें से सभी देवता नहीं है, इस सूची में कुछ राक्षस भी शामिल हैं। आज हम उन्हीं अमर आत्माओं के बारे में बात करने जा रहे हैं।
आइए जानते हैं उन आठ आत्माओं के विषय में।
अश्वत्थामा
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र है। इन्होंने महाभारत में पांडवों की ओर से कौरवों के साथ युद्ध किया था। युद्ध के दौरान क्रोध में आकर अर्जुन और अश्वत्थामा ने कौरवों पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया था। ब्रह्मास्त्र में वह शक्ति होती है जिससे पूरा संसार भस्म हो सकता है। तब महिर्षि वेद व्यास ने उन्हें आज्ञा दी कि वे दोनों अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लें। व्यास की आज्ञा का पालन करते हुए अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया किन्तु अश्वत्थामा ऐसा करने में असफल रहें। क्योंकि उनके पिता से यह विद्या उन्हें नहीं प्राप्त हुई थी। साथ ही वे अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग केवल एक बार ही कर सकते थे बार बार नहीं। इस बात से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दे दिया कि उन्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी और उनकी आत्मा सदैव पृथ्वी पर भटकती रहेगी।
कहते हैं श्री कृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के एक शिव मंदिर में आज भी अश्वत्थामा महादेव की पूजा करने आते हैं।
हनुमान जी
कहते हैं त्रेता युग में श्री राम की मदद करने के लिए स्वयं शिव जी ने हनुमान रूप में धरती पर जन्म लिया था। हनुमान जी उन आठ लोगों में शामिल हैं जिन्हें अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। उन्हें यह वरदान श्री राम और माता सीता ने दिया था। कहते हैं कलयुग में बजरंबली गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं इस पर्वत पर बजरंबली का एक मंदिर भी बना हुआ है।
महाबलि
महाबलि असुरों का राजा था। उसे ब्रह्मांड की पूरी संपत्ति में से एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लेने का बहुत अभिमान हो गया था। उसने एक समारोह का आयोजन किया जिसमें उसने सभी दिव्य और पवित्र आत्माओं को आमंत्रित किया। साथ ही यह ऐलान किया कि समारोह में मौजूद सभी की एक इच्छा को वह पूरा करेगा।
भगवान विष्णु ने अपना पांचवां अवतार वामन के रूप में लिया था। अपने इस अवतार में उन्होंने एक बौने ऋषि का रूप धारण किया था। जब महाबलि उनके समीप पहुंचा और उनसे उनकी इच्छा पूछी तो ऋषि वामन ने उससे अपने तीन कदमों के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। इस बात को सुनकर महाबलि ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और उसने ऋषि वामन को अपने तीन पगों के बराबर की भूमि लेने के लिए कहा। इतना सुनते ही ऋषि वामन ने एक विराट रूप धारण कर लिया और पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनो लोकों को अपने कदमों से नाप लिया।
बाद में ऋषि वामन ने महाबलि के उदार स्वभाव से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया, साथ ही उसे अमर होने का भी वरदान दिया।
भगवान परशुराम
भगवान विष्णु के दस अवतारों में से भगवान परशुराम के तौर पर छठे अवतार के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। बचपन में परशुराम का नाम राम था लेकिन शिव जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें एक फरसा दिया था जिसके बाद वे राम से परशुराम कहलाने लगे। उन्होंने सभी क्षत्रिय राजाओं का वध करके धरती से पाप और बुराई का नाश कर दिया था। परशुराम ने अहंकारी और दुष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार कर किया था।
तब महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका था। बाद में परशुराम पृथ्वी छोड़कर महेन्द्रगिरि पर्वत पर चले गए थे। वहां उन्होंने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की जिसके कारण आज उस स्थान को उनका निवास्थल कहा जाता है।
परशुराम ने श्री राम से पहले जन्म लिया था लेकिन चिरंजीवी होने के कारण वे उस वक़्त भी जीवित थे।
विभीषण
विभीषण असुरों के खानदान से था। वह लंका पति रावण का भाई था। रावण जिसने सीता जी का अपहरण किया था, विभीषण को अपना भाई समझ कर अपनी ही मृत्यु का रहस्य उसके सामने उजागर कर दिया था। उसने कई बार रावण को चेतावनी दी की वह पाप का मार्ग छोड़ दे और श्री राम की उपासना करने लगे किन्तु रावण बहुत ही अहंकारी था उसने अपने भाई की एक न सुनी।
असुरों के परिवार से होने के बावजूद विभीषण एक पवित्र आत्मा था इसलिए उसने पाप और अहिंसा का मार्ग छोड़ कर श्री राम की सेवा को चुना और हमेशा सत्य का ही साथ दिया। उसने श्री राम को रावण की मृत्यु से जुड़ा रहस्य बताया जिससे प्रसन्न होकर श्री राम ने उसे अमर होने का वरदान दिया था।
वेद व्यास
ऋषि वेद व्यास ने ही चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद), सभी 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना की थी। ये ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।
कहते हैं व्यास की माता ने बाद में शान्तनु से विवाह कर लिया था, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य। मान्यताओं के अनुसार वेद व्यास भी कई युगों से जीवित है।
कृपाचार्य
कृपाचार्य एक ऋषि होने के साथ साथ गुरु भी थे। उन्होंने महाभारत में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। वे ऋषि गौतम के पौत्र और ऋषि शरद्वान के पुत्र थे क्योंकि उन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त था इसलिए युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हुई और वे उन अठारह लोगों में से एक थे जो युद्ध के बाद जीवित बचे थे।