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केरल का सबरीमाला मंदिर जहां महिलाओं का जाना है वर्जित
दक्षिण भारत के केरल राज्य में बसा सबरीमाला श्री अयप्पा मंदिर मक्का-मदीना के बाद दूसरे सबसे बड़े तीर्थ स्थानों में से माना जाता है। इस मंदिर में हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं की भींड़ जुटती है, जिसमें केवल पुरुष ही होते हैं।
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। जी हां, चौंक गए ना आप। आज जहां हम महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने की बात करते हैं वहीं केरल राज्य के इस मंदिर में उल्टा ही होता है। माना जाता है कि भगवान श्री अयप्पा ब्रह्माचारी थे इसलिये यहां 10 से 50 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं का आना वर्जित है।
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केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है इसलिये इस बात को यहां पर ज्यादा तूल नहीं दिया जाता। इस मंदिर में वे छोटी बच्चियां आ सकती हैं जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें, जो मासिकधर्म से मुक्त हो चुकी हों। इस मंदिर में ना तो जात- पात का कोई बंधन और ना ही अमीर-गरीब का।
सबरीमाला मंदिर ना केवल महिलाओं के वर्जित प्रवेश के लिये ही विख्यात है बल्कि इस मंदिर के पट साल में केवल दो बार ही खोले जाते हैं। मंदिर के पट 15 नवंबर और 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति के दिन ही खुलते हैं।
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यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को माकरा विलाकू जो कि एक तेज रोशनी होती है, उसके दर्शन आसमान में होते हैं। माना जाता है कि यह भगवान अयप्पा के होने का एहसास होता है। इस मंदिर के बारे में और अधिक जानने के लिये आइये पढ़ते हैं ये लेख...
कौन थे श्री अयप्पा
अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' हैं। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र, बस भगवान इन्ही के अवतार माने जाते हैं। हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है। सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। सबरी वही है जिनका जिक्र रामायण में हुआ है।
18 पहाड़ियों के बीच में बसा मंदिर
यह मंदिर 18 पहाड़ियों के बीच में स्थित एक धाम में है, जिसे सबरीमला श्रीधर्मषष्ठ मंदिर कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमला में मूर्ति स्थापित की थी। यहां किसी भी जाति का आदमी और धर्म का पालन करने वाला आदमी आ सकता है।
यहां के प्रमुख उत्सव
इस मंदिर के पट साल में दो बार खोले जाते हैं: 15 नवंबर और 14 जनवरी। मकर संक्रांति और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के संयोग के दिन, पंचमी तिथि और वृश्चिक लग्न के संयोग के समय ही श्री अयप्पन का जन्म माना जाता है। इन दिनों भक्त घी से भगवान की मूर्ती का अभिषेक कर के मंत्रों का उच्चारण होता है।
भक्तों की लगती है भारी भींड़
यहां आने वाले भक्त नंगे पैर ग्रुप में इकठ्ठे आते हैं। इस दौरान आने वाले भक्तों को कम से कम दो महीने पहले मास-मछली और तामसिक प्रवृत्ति वाले खाद्य पदार्थों का त्याग करना पड़ता है। अगर कोई भक्त तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रख कर पहुंचता है तो उसकी सारी मनोकामना पूरी होती हैं।
मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों का महत्व
मंदिर तक जाने वाली 8 सीढ़ियों का काफी महत्व है। इनमें से 5 सीढ़ियां पांच इंद्रियों को दर्शाती हैं और बाकी की 3 काम, क्रोध, लोभ आदि को केन्द्रित करती हैं। कहते हैं कि भगवान को देखने के लिये आपको अपनी पांचों इंद्रियों का प्रयोग करना चाहिये और बेवज की चीज़ों जैसे दूसरों की बुराई आदि से दूर रहना चाहिये तथा लालच नहीं करना चाहिये।
दिव्य ज्योति के होते हैं दर्शन
यहां आने वाले लाखों भक्तो को रात के समय पहड़ों के बीच में दिव्य ज्योति दिखाई देती है, जिसे माकरा विलाकू कहते हैं। माना जाता है कि यह खुद भगवान अयप्पा हैं जो सच्चे मन से आए भक्तों को दर्शन देते हैं।