Just In
- 1 hr ago Happy Navroz 2024 Wishes: पारसी नववर्ष के मौके पर भेजें ये खूबसूरत शुभकामनाएं
- 4 hrs ago Amalaki Ekadashi 2024: रंगभरी एकादशी के दिन किन कामों की है मनाही, जानें किन कार्यों से होगी श्रीहरि कृपा
- 6 hrs ago Jaya Kishori Quotes: जीवन को सुखद और सरल बनाने के लिए जरूर जानें जया किशोरी के विचार
- 9 hrs ago Chandra Grahan 2024 Rashifal: साल का पहला चंद्र ग्रहण इन 5 राशियों के लिए रहेगा बेहद सौभाग्यशाली
Don't Miss
- News Bihar: शिक्षक भर्ती पेपर लीक मामले में पूर्व IPS ने BPSC पर लगाए गंभीर आरोप, कहा- PIL दायर करेंगे
- Finance Haryana News: हरियाणा में अटल सेवा केंद्रों पर बनाई जाएगी डेस्क, इन लोगों के लिए बढ़ेगी सहूलियत
- Movies "लव सेक्स और धोखा" ने पूरे किए रिलीज के इतना साल? डायरेक्टर ने किया फिल्म से जुड़ा खुलासा!
- Travel बाबा केदारनाथ की डोली - मंदिर के कपाट खुलने से पहले कब और कहां से गुजरेगी?
- Education Yuva Vigyani Programe 2024: इसरो युवा विज्ञानी कार्यक्रम 2024 युविका पंजीकरण अंतिम तिथि 20 मार्च तक
- Automobiles क्या आपने कभी सोचा है, ट्रेन चलने से पहले झटका क्यों देती है? जानिए वजह
- Technology Infinix Note 40 सीरीज 108MP कैमरा के साथ ग्लोबली लॉन्च, इस दिन से शुरू हो रही सेल, जानें कीमत
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
तुलसीदास जयंती 2018: क्यों बेसहारा छोड़ दिया था माता-पिता ने तुलसीदास को
रामायण के रचयिता श्री वाल्मीकि के अवतार माने जाने वाले तुलसी दास ने अपनी रचना रामचरितमानस में प्रभु श्री राम की कथा को दोहराया है। गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध यह एक महान संत, कवि और लेखक थे। तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था।
इस बार 17 अगस्त, 2018 को हम सब तुलसीदास जी का 521वां जन्मदिवस मनाएंगे। हिंदी और संस्कृत साहित्य में तुलसीदास जी ने अद्वितीय योगदान दिया है। साथ ही भक्ति आंदोलन में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
तुलसीदास के महत्वपूर्ण योगदान
रामचरितमानस के अलावा तुलसीदास जी ने पवित्र हनुमान चालीसा की भी रचना की थी। हनुमान चालीसा बजरंगबली को समर्पित है। यहां तक की मशहूर संकट मोचन मंदिर की स्थापना भी तुलसीदास जी ने ही की थी। कहते हैं स्वयं बजरंगबली ने तुसलीदास को मंदिर वाले स्थान पर ही दर्शन दिए थे। साथ ही रामलीला की शुरुआत भी तुलसीदास जी ने ही की थी।
तुलसीदास जी के जन्म से जुड़े कुछ रहस्य
तुलसीदास जी ने अपना अधिकांश जीवन बनारस में गंगा के किनारे ही व्यतीत किया था। वह स्थान आज तुलसी घाट के नाम से जाना जाता है। तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले के सूकर क्षेत्र गाँव में हुआ था। कहते हैं तुलसीदास जी ने अपनी माँ के गर्भ में पूरे बारह महीने बिताने के बाद जन्म लिया था। जन्म के समय वह रोए नहीं और करीब पांच वर्ष के बालक के समान दिखाई पड़ते थे। इतना ही नहीं पूरे तीस दाँतों के साथ उनका जन्म हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था यानी यह उनके पिता के लिए एक अशुभ संकेत था।
माता पिता द्वारा त्याग दिए गए थे तुलसीदास
इन्हीं सब बातों के कारण जन्म के केवल चार दिन बाद ही तुलसीदास के माता और पिता ने उन्हें त्याग दिया था। उन्होंने चुनिया नाम की एक औरत को उन्हें सौंप दिया था। पांच साल तक उनका पालन पोषण करने के बाद चुनिया की मृत्यु हो गयी थी। इसके बाद तुलसीदास जी को भीख मांगने की नौबत आ गयी। कहते हैं चुनिया की मौत के बाद स्वयं माता पार्वती हर शाम को तुलसीदास जी को खाना खिलाने आती थीं।
नरहरिदास ने रामायण की कथा सुनाई
शुरुआत में तुलसीदास जी का नाम रामबोला था क्योंकि जन्म के समय उन्होंने सबसे पहले राम का नाम लिया था। यह बात उन्होंने स्वयं विनय पत्रिका में कही है। उन्हें तुलसीदास नाम उनके गुरु नरहरिदास ने दिया था। नरहरिदास रामानन्द के चौथे शिष्य थे। चुनिया की मृत्यु के कुछ समय के बाद ही नरहरिदास ने तुलसीदास को गोद ले लिया था। उसके बाद वो उन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए जहां उन्होंने तुलसीदास को रामायण की कथा सुनाई थी। अपने एक उद्धरण में तुलसीदास जी ने कहा था कि जब उनके गुरु ने उन्हें रामायण सुनाई थी तब उन्हें उसका अर्थ नहीं समझ आया था लेकिन जब वे बड़े हुए तो उन्हें इस पवित्र ग्रन्थ की सीख समझ आयी।
जब अपनी पत्नी रत्नावली की डांट खाई तुलसीदास ने
तुलसीदास जी की शादी और गृहस्थ जीवन के त्याग से जुड़ी एक बहुत ही चर्चित कहानी है। उस कहानी के अनुसार तुलसीदास जी का विवाह एक ब्राह्मण की कन्या रत्नावली से हुआ था। एक बार जब वह हनुमान जी के मंदिर गए थे तो रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चली गयी थी। उसी रात तुलसीदास उनसे मिलने वहां पहुँच गए थे। तुलसीदास को वहां देख रत्नावली को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने उनसे कहा कि जितना प्रेम वे उसके नश्वर शरीर से करते हैं यदि उसका आधा भी वे ईश्वर से करते तो वे ईश्वर को प्राप्त कर लेते। पत्नी के इस कथन ने तुलसीदास पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन ही त्याग दिया जिसके बाद वे प्रयाग के शहर चले गए।
हालांकि उनके बारे में एक दूसरी कहानी कहती है कि वह बचपन से ही संत थे और आजीवन ब्रम्हचारी ही रहे। कहते हैं उन्होंने श्री राम और हनुमान जी के साक्षात दर्शन किये थे।
तुलसीदास जयंती 2018
तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें मंदिरों में श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है ख़ासतौर पर राम मंदिरों में। कई मंदिरों में पूजा और यज्ञ का आयोजन किया जाता है साथ ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराया जाता है। इसके अलावा जगह जगह रामचरितमानस का पाठ भी होता है। इस वर्ष तुलसीदास जी के जन्म दिवस पर सप्तमी तिथि का सूर्योदय सुबह 6:07 मिनट पर होगा जो अबकी सूर्यास्त शाम 6:54 मिनट पर होगा।