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पांच पति होने के बाद भी कुंवारी थी द्रौपदी, जानिए इस नायिका के जीवन के अनसुने पहलू
हिंदू धर्म के महाकाव्य महाभारत के किरदारों से जुड़ी कहानियां आज भी लोग रोमांच के साथ पढ़ना और सुनना पसंद करते हैं। इस महाकाव्य का हर किरदार अपनी खूबियों की वजह से जाना जाता है। लेकिन इस महाकाव्य की एक सशक्त किरदार जो इस युद्ध के पीछे असल वजह थी, जी हां हम बात कर रहे हैं द्रौपदी की।
पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्री नहीं हुई। पांचाली (अर्थात पांचाल राज्य की) से लेकर महाभारती ( भारत के महान वंशजों की पत्नी) बनने तक के इस सफर में महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्री के साथ नहीं हुआ। इस पूरे महाकथा में चाहे बात द्रौपदी के चीरहरण की हो या फिर उसके प्रतिशोध की।
अर्जुन नहीं कोई और था द्रौपदी का पहला प्यार, इससे करना चाहती थी शादी, जानिए कौन था ये महारथी?
द्रौपदी अपने अनोखे किरदार की वजह से महाभारत की नायिका के तौर पर जानी जाती है। आइये जानते हैं द्रौपदी के बारे में कुछ ऐसी बातें जिसके बारे में किसी को नहीं पता-
14 पतियों के पत्नी हो सकती थी...
द्रौपदी अपने पूर्व जन्म में ऐसा पति चाहती थी जिसमें 14 गुण हों। भगवान शिव ने उसे वरदान दिया था। परंतु किसी भी एक व्यक्ति में ये 14 गुण न मिलने के कारण उन्होंने उससे कहा कि वह उन पांच व्यक्तियों की पत्नी बनेगी जिनमें सामूहिक रूप से ये 14 गुण होंगे। द्रौपदी ने भगवान शिव से कहा कि उसे ऐसा पति प्रदान करें जिसमें वे सभी श्रेष्ठ 5 गुण हों जो एक पुरुष में होने चाहिए: धर्म, शक्ति, धनुर्विद्या का कौशल, दिखने में सुन्दर, धैर्य आदि।
चौकाने वाले खुलासे: द्रौपदी के पांच पति क्यों थे?
निडर और साहसी
द्रौपदी एक निडर महिला थी जो प्राचीनकाल की महिलाओं में बहुत कम देखने मिलता था। जब उसका अपमान हुआ तो उसने हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से सीधे न्याय की मांग की थी। पुन: जब वह सैरंध्री के वेश में थी तब राजा विराट के साले कीचक द्वारा उसका अपमान किये जाने पर उसने राजा विराट से सीधे न्याय की मांग की थी। औरतों की रक्षा न कर पाने के कारण उसने खुले आम इन दोनों राजाओं (विराट और धृतराष्ट्र) की निंदा की थी। यहाँ तक कि उसने महान योद्धाओं जैसे भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य तथा अपने पतियों की भी खुले आम निंदा की क्योंकि वे चीरहरण के दौरान उसे अपमानित होने से नहीं बचा सके।
द्रोपदी का कभी बचपन नहीं था..
द्रौपदी का कभी बचपन नहीं था द्रौपदी के पिता तथा पांचाल के राजा द्रुपद ने द्रौपदी का निर्माण केवल एक ही उद्देश्य से किया था, कुरु राजवंश को नष्ट करने के उद्देश्य से। ऐसा इसलिए क्योंकि कुरु राजवंश ने द्रोण को संरक्षण दिया था जिन्होंने (द्रोण ने) अपने शिष्यों पांडवों और कौरवों की सहायता से पांचाल पर विजय प्राप्त की थी तथा पांचाल का विभाजन किया था। इसलिए द्रुपद के यज्ञ की वजह से द्रौपदी का जन्म मां के गर्भ की बजाय अग्नि से एक वयस्क के रूप में ही उत्पन्न हुई जिसे न तो बचपन मिला न पालन पोषण।
काली का अवतार
काली का अवतार दक्षिण भारत में ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी काली का एक अवतार थी जिसका जन्म सभी अभिमानी राजाओं के विनाश हेतु भगवान कृष्ण (जो भगवान विष्णु का एक अवतार थे, जो देवी पार्वती के भाई थे) की सहायता करने के लिए हुआ था। यही कारण है द्रौपदी के अग्नि से उत्पन्न होने के बावजूद उन्हें भाई बहन माना जाता है।
द्रौपदी को अपने पतियों पर विश्वास नहीं था
द्रौपदी प्रतिशोध के लिए चिल्लाई परंतु उसे संदेह था कि उसके पति उसके अपमान का बदला लेंगे। उसके आपस संदेह करने के लिए कारण था। उन्होंने अपनी बहन के पति जयद्रथ का वध नहीं किया जबकि जयद्रथ ने ही अपने रथ पर बिठाकर उसे घर से बाहर यह कहते हुए निकाला था कि वह उसे अपनी रखैल बनाएगा। उसी पराक्र जब पांडव अपने अज्ञात वास के अंतिम वर्ष में थे तब उन्होंने इस डर से कीचक का वध नहीं किया कि कोई उन्हें पहचान न ले।
हिडिम्बा से लिया बदला
द्रौपदी ने घटोत्कच को शाप दिया जब घटोत्कच पहली बार अपने पिता के राज्य में आया तो अपनी मां (हिडिम्बा) की आज्ञा के अनुसार उसने द्रौपदी को कोई सम्मान नहीं दिया। द्रौपदी को अपमान महसूस हुआ और उसे बहुत गुस्सा आया।
हिडिम्बा का बदला द्रौपदी ने घटोत्कच को एक भयानक शाप दिया कि उसका जीवन बहुत छोटा होगा तथा वह बिना किसी लड़ाई के मारा जाएगा - जो एक क्षत्री के लिए भयानक स्थिति होती है। जब हिडिम्बा ने द्रौपदी के शाप के बारे में सुना तो वह स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाई। वह उसके पास गयी और उसे एक नीच और पापी औरत कहा। गुस्से में हिडिम्बा ने द्रौपदी के बच्चों को शाप दिया तथा दो रानियों पांडव वंश को लगभग ख़त्म कर दिया।
अपना अधिकार कभी न बांटा..
द्रौपदी की शर्त जब द्रौपदी ने सांझा पत्नी बनना स्वीकार किया तब उसने यह शर्त रखी कि वह अपना राज्य किसी अन्य स्त्री के साथ नहीं बांटेगी। दूसरे शब्दों में उस समय की प्रचलित परंपरा की परवाह किये बिना पांडव अपनी अन्य पत्नियों को इंद्रप्रस्थ नहीं ला सकते थे। हालाँकि अर्जुन एक पत्नी को लाने में सफल हुए। वह कृष्ण की बहन सुभद्रा थी। और कृष्ण की थोड़ी सी सलाह से उसने घर में प्रवेश करने का रास्ता बना लिया।
कुत्तों को शाप दिया
पांडव इस बात पर सहमत हुए थे कि एक समय में केवल एक भाई ही द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेगा और उस समय अन्य कोई भाई कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा। वह भाई जो कक्ष में प्रवेश करेगा वह अपने जूते दरवाज़े पर रखा देगा। इसका उल्लंघन करने पर कड़ी सज़ा होगी - अपराधी को तुरंत ही एक वर्ष के लिए वनवास जाना होगा। एक दिन युधिष्ठिर द्रौपदी के कक्ष में था, तभी एक कुत्ते ने दरवाज़े के बाहर से उनके जूते चुरा लिए। इस बारे में अनजान अर्जुन ने कक्ष में प्रवेश किया और अपने बड़े भाई को द्रौपदी के साथ देख लिया। अनुबंध के अनुसार अर्जुन निर्वासित होना पड़ा। द्रौपदी को शर्मिंदगी महसूस हुई तथा उसे उस कुत्ते पर क्रोध आया जिसने युधिष्ठिर के जूते चुरा लिए थे। इसलिए उसने सभी कुत्तों को शाप दिया - "सारी शर्म को भूलकर सम्पूर्ण विश्व तुम्हें सार्वजनिक रूप से मैथुन करते हुए देखेगा।"
कृष्ण ही द्रौपदी के एकमात्र मित्र थे
द्रौपदी हमेशा ही भगवान कृष्ण को अपना सखा या प्रिय मित्र मानती थी तथा कृष्ण भी उसे सखी कहकर बुलाते थे। यह द्रौपदी और कृष्ण के बीच के आध्यामिक प्रेम को दर्शाता है। कृष्ण द्रौपदी के एक ऐसे मित्र थे जिन्होंने उसके व्यक्तित्व को एक पहचान दी तथा जब भी वह कठिन परिस्थितियों में तब तब उसकी सहायता की। कृष्ण की अलौकिक उपस्थिति को उसने नियमित तौर पर अपने जीवन में महसूस किया।
कुंवारी रहने का वरदान
द्रौपदी को पांच पतियों की पत्नी बनने का सौभाग्य मिला था। कहा जाता है द्रौपदी का जन्म अग्नि से हुआ था। अग्नि को सबसे पवित्र माना जाता हैं। उसी तरह दूसरे पति के पास जाने से पहले पुन: कौमार्य और शुद्धता प्राप्त करने के लिए द्रौपदी आग पर चलती थी। ऐसे नियम बहुविवाही पतियों के समक्ष कभी नहीं रखे गए थे। सभी पांडवों की दूसरी पत्नियां थी परन्तु वे पत्नियां अपने माता पिता के साथ रहती थी तथा पांडवों को अपनी इन पत्नियों से मिलने के लिए दूसरे शहर की यात्रा करनी पड़ती थी। वे चार साल में एक बार अपनी पत्नियों से मिलने जाते थे जब द्रौपदी अन्य भाईयों के साथ अंतरंग होती थी।