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वट सावित्री व्रत 2018: ऐसे करें माँ सावित्री की पूजा, मिलेगा अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को स्त्रियां वट सावित्री का व्रत रखकर भगवान से अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी आयु की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी विवाहित स्त्री इस दिन व्रत और पूजा करती है उसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा उसके पति पर आने वाली सभी विपदाएं भी टल जाती है, साथ ही उसके संतान का भी भाग्यपक्ष मज़बूत होता है।
आपको बता दें इस बार वट सावित्री का व्रत और पूजन 15 मई, 2018 को है। इस दिन बरगद के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है। आज हम आपको इस व्रत से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियाँ देंगे जिसकी सहायता से आप अपनी पूजा को सफल बना सकते हैं।
वट सावित्री व्रत और पूजा विधि
इस दिन पूजा वट वृक्ष के नीचे बैठ कर होती है। महिलाओं को पूरा साज श्रृंगार कर इस पूजा को करना चाहिए क्योंकि यह पूजा उनके सुहाग की कुशलता के लिए होती है। एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रख लें जिसे कपड़े के दो टुकड़े से ढ़क देते हैं, दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रख लें। पूजा की समाग्री में गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, कुमकुम, रोली, मोली, 5 प्रकार के फल, पान का पत्ता, धुप, घी का दीया, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा ले लें। इसके बाद वट वृक्ष में जल चढ़ाएं फिर प्रसाद चढ़ाकर धुप और दीपक जलाएं। उसके बाद भगवान का ध्यान करें और उनसे अपने पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। इसके पश्चात पंखे से वट वृक्ष को हवा करें, अब बरगद के पेड़ के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधे और प्रार्थना करें। फिर व्रत कथा सुनें या पढ़ें। इस दिन दान दक्षिणा का भी बड़ा महत्व है इसलिए दान ज़रूर करें। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें। उसके बाद आप अपना व्रत खोल सकते हैं।
व्रत कथा
प्राचीन काल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक बड़े ही धर्मात्मा और ब्राह्मण भक्त राजा रहते थे। राजा बहुत दुखी रहते थे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने देवी सावित्री को प्रसन्न करने के लिए 18 वर्षों तक कठोर तपस्या की तब माता ने उन्हें एक सुन्दर कन्या की प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद रानी के गर्भ से एक तेजस्विनी कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा।
समय बीतता गया और सावित्री बड़ी हो गयी। कहते हैं वह इतनी सुन्दर थी कि उसका रूप देखकर कोई भी मोहित हो जाता। राजा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी क्योंकि कई प्रयासों के बाद भी राजा को सावित्री के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। तब राजा ने सावित्री से कहा कि वह अपना वर स्वयं ही ढूंढ ले।
अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए सावित्री कुछ योग्य मंत्रियों के साथ निकल पड़ी। कुछ दिनों बाद जब वह लौट कर आयी तब उसने राजमहल में अपने पिता के साथ देवर्षि नारद को देखा। सावित्री ने दोनों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया और अपने पिता को बताया कि तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को उसने अपने पति के रूप में चुना है।
सावित्री की बात सुनकर वहां बैठे नारद जी चौंक गए और उन्होंने बताया कि सत्यवान के पिता को उनके शत्रुओं ने राज्य से बाहर निकाल दिया है और वह नेत्रहीन हो चुके हैं। इसके अलावा सत्यवान की आयु भी ज़्यादा नहीं है, ठीक एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद जी की यह बात सुनकर राजा बड़े दुखी हुए और उन्होंने सावित्री को दोबारा यात्रा करने के लिए कहा किन्तु सावित्री ने दृढ़ निश्चय कर लिया था, वह अपनी बात पर अडिग थी। उसके हठ के आगे राजा को झुकना पड़ा और उसका विवाह सत्यवान से हो गया। धीरे धीरे समय बीतता गया और सत्यवान की मृत्यु का समय नज़दीक आने लगा। कहा जाता है अपने पति की मृत्यु के निश्चित समय से चार दिन पहले से ही सावित्री ने निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था।
एक दिन सावित्री अपने पति के साथ जंगल में लकड़ी काटने गयी तभी अचानक सत्यवान के सिर में भयानक दर्द उठा और वह पेड़ से नीचे गिर पड़ा। अपनी पत्नी की गोद में सत्यवान आखिरी साँसे गिन रहा था कि अचानक सावित्री को एक भयानक आकृति वाला पुरुष दिखाई पड़ा। वह पुरुष और कोई नहीं स्वयं यमराज थे। यमराज ने सावित्री से कहा कि उसके पति की आयु अब समाप्त हो चुकी है इसलिए वे उसे लेने आए हैं। इतना कहकर यमराज ने सत्यवान के शरीर से उसके प्राण निकाल लिए और दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े।
यह देख सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी। सावित्री ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके यमराज से पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मांग लिया जिसके बाद यमराज को उसके पति के प्राण को लौटाना पड़ा। इतना ही नहीं यमराज ने सावित्री को सत्यवान के पिता की आँखें और उनका राजपाट वापस मिलने का भी आशीर्वाद प्रदान किया। इस प्रकार सावित्री ने यमराज को विवश कर दिया कि वो उसके पति के प्राण वापस कर दें।
निम्न श्लोक से देवी सावित्री को अर्घ्य दें:
अवैधव्यं
च
सौभाग्यं
देहि
त्वं
मम
सुव्रते।
पुत्रान्
पौत्रांश्च
सौख्यं
च
गृहाणार्घ्यं
नमोऽस्तु
ते॥