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गणगौर 2018: जाने क्यों रखा जाता है यह व्रत पति से गुप्त

By Rupa Shah
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Gangaur Puja: सौभाग्य को बनाएं रखता है गणगौर का व्रत और पूजा विधि | Boldsky

गणगौर का महान पर्व प्रेम और आस्था का प्रतीक है। यह पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है और इस दिन महिलाएं शिव जी और माता गौरी की पूजा अर्चना करतीं है। कहा जाता है कि आज ही के दिन महादेव ने माता पार्वती को सौभाग्य का वरदान दिया था इसलिए स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए इस दिन व्रत रखती है। यह व्रत केवल विवाहित महिलाएं ही नहीं बल्कि कुंवारी कन्याएं भी रखती है ताकि उन्हें मनचाहा वर मिल सके।

वैसे तो गणगौर का पर्व चैत्र मास की कृष्ण तृतीया से ही आरंभ हो जाता है लेकिन इस पर्व की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है। आइए जानते है क्या है गणगौर पूजा के पीछे का रहस्य।

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गणगौर व्रत कथा
एक कथा के अनुसार एक बार भोलेनाथ माता पार्वती और नारद जी के साथ घूमने निकले। चलते चलते वे एक गाँव में पहुँच गए । जब वहां के लोगों को देवताओं के आने का समाचार मिला तो वे बहुत प्रसन्न हुए और उनके स्वागत की तैयारी में लग गए। उस गाँव की कुलीन महिलाएं नाना प्रकार के स्वादिष्ट भोजन बनाने में लग गयी। वहीं दूसरी ओर साधारण कुल की स्त्रियां श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुंच गईं। माता पार्वती उनकी पूजा से बहुत खुश हुई और उन्हें अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान दिया।

इसके बाद उच्च कुल की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान लेकर गौरीजी और शंकरजी की पूजा करने पहुंचीं। उन स्त्रियों को देखकर भगवान भोलेनाथ ने पार्वतीजी से कहा- 'तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया, अब इन्हें क्या दोगी?' इस पर देवी ने उत्तर दिया कि उन स्त्रियों को उन्होंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया था इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु इन उच्च कुल की स्त्रियों को देवी अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस देंगी।

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देवी ने महादेव को बताया कि यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से उन्ही की तरह सौभाग्यवती हो जाएगी इतना कहते ही पार्वतीजी ने अपनी उंगली चीरकर अपना रक्त उन पर छिड़क दिया। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया । इसके बाद देवी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू की शिव-मूर्ति बनाकर पूजन करने लगीं।

पूजा करने के बाद माता ने बालू के पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया और फिर उस प्रसाद को खाया । इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी देर हो गई जब वे लौटकर आईं तो महादेवजी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा तब माता ने झूठ कह दिया कि वहां उनके मायके वाले मिल गए थे। परंतु महादेव तो कुछ और ही लीला रचना चाहते थे, अतः उन्होंने पार्वती जी से पूछा कि नदी के तट पर पूजन करके उन्होंने किस चीज का भोग लगाया था और स्वयं कौन-सा प्रसाद खाया था?

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इस पर पार्वतीजी ने पुनः झूठ बोल दिया कि उनकी भाभी ने उन्हें दूध-भात खिलाया उसे खाकर वह सीधी चली आ रही है। यह सुनकर शिवजी भी दूध-भात खाने की लालच में नदी-तट की ओर चल दिए। माता दुविधा में पड़ गईं तब उन्होंने मौन भाव से भोले शंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना करने लगें कि भोलेनाथ उनकी लाज रखें। यह उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया । उस महल के भीतर पहुंचकर उन्होंने देखा कि वहां उनके मायके वाले उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का स्वागत किया और वे दो दिनों तक वहां रहे।

तीसरे दिन पार्वतीजी ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार न हुए। तब पार्वतीजी रूठकर अकेली ही चल दीं । ऐसी हालत में भगवान शिवजी को पार्वती और नारद जी के साथ चलना पड़ा । चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए । उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे। अचानक भगवान शंकर पार्वतीजी से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूं.'

इस पर पार्वती जी ने कहा वह जाकर उनकी माला ले आएँगी परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और नारदजी को भेज दिया । वहां पहुंचने पर नारदजी को कोई महल नजर न आया वहां तो दूर तक जंगल ही जंगल था। नारदजी सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए मगर अचानक ही बिजली चमकी और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी। उन्होंने ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुंचकर वहां का हाल बताया।

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तब शिवजी ने कहा यह सब पार्वती की ही लीला है.' इस पर पार्वती जी बोलीं- 'मैं किस योग्य हूं.' तब नारदजी ने देवी को प्रणाम करते हुए कहा 'माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं । आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियां आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं।

इतना ही नहीं नारद जी ने यह भी कहा कि गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है।माता की भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर नारद जी को बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो भी स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का साथ मिलेगा।

16 दिनों तक चलने वाला गणगौर पर्व 2 मार्च से शुरू हो चुका है आज 20 मार्च को इस महान पर्व का आखिरी दिन है ।

English summary

what is the story of gangaur in hindi

Gangaur is one of the most important festivals in Hinduism. It is a colourful festival which is widely celebrated in Rajasthan which commences after Holi.
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