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क्या है भगवान गणेश के एकदंत अवतार का पूरा सच, पढिए...
प्रथम पूज्य भगवान गणेश को हिंदू पौराणिक कथाओं में 108 अलग-अलग नामों से पुकारा गया है इनमे विनायक, गणपति, हरिद्रा, कपिला, गजानन के अलावा भी कई और नाम शामिल हैं। एकदंता भी उनमें से एक नाम है जो पुरानी संस्कृत भाषा से लिया गया है। यदि आपको ये लगता है कि उनके पास केवल एक ही दाँत है तो ये आपको भ्रमित करने जैसा होगा, ज्यादातर लोग इस तथ्य के बारे में भी नहीं जानते हैं। आइए हम बताते हैं कि भगवान गणेश को एकदंता क्यूं कहा जाता है....
क्या
जन्म
से
ही
है
एक
दांत
यहां
पर
ये
सवाल
उठता
है
कि
क्या
भगवान
गणेश
का
जन्म
से
ही
एक
दांत
है
या
माता
पार्वती
ने
उनको
एक
दांत
ही
प्रदान
किया
था।
इस
बारे
में
बहुत
सी
कहावतें
है
पर
तीन
ऐसी
कहावतें
है
तो
आपको
इसका
सच
बाताएंगी।
महाभारत
से
जुड़ी
है
एकदंता
की
कहानी
ऐसा
कहा
जाता
है
कि
देवताओं
के
द्वारा
ऋषि
व्यास
से
'महाभारत'
नामक
महाकाव्य
लिखने
के
लिए
कहा
गया
जिसके
लिए
उनको
दुनिया
में
सबसे
अधिक
जानकार
व्यक्ति
की
आवश्यकता
थी।
तब
भगवान
ब्रह्मा
ने
ऋषि
से
भगवान
शिव
के
पास
जाकर
इस
समस्या
का
समाधान
पूँछने
की
सलाह
दी।
भगवान
शिव
ने
इस
काम
के
लिए
भगवान
गणेश
को
ले
जाने
का
सुझाव
दिया,
साथ
ही
दोनों
के
बीच
एक
समझौता
भी
हुआ
कि
इसके
लिए
ऋषि
को
बिना
एकबार
रुके
महान
महाकाव्य
एक
बार
फिर
से
पढ़ना
होगा,
अन्यथा
भगवान
गणेश
इस
काम
को
छोड़
देंगे।
ऋषि
ने
भगवान
शिव
की
ये
बात
मान
ली।
भगवान
गणेश
ज्ञान
के
मामले
में
इतने
आगे
थे
कि
उन्होने
ऋषि
के
बोलने
से
पहले
ही
लिखना
शुरु
कर
दिया
पर
उनकी
कलम
उनका
तेजी
से
साथ
नहीं
दे
रही
थी
इस
कारण
उन्होने
अपना
एक
दांत
निकाला
जिसको
कलम
की
तरह
इस्तेमाल
किया
गया।
परशुराम
के
क्रोध
ने
तोड़ा
था
एक
दांत
एक
बार
भगवान
विष्णु
ने
क्षत्रियों
का
विनाश
करने
करने
के
लिए
परशुराम
का
रुप
लिया
था
जो
कि
अपने
गुस्से
और
अहंकार
के
लिए
प्रसिद्ध
था।
मान्यता
है
कि
क्षत्रियों
का
संघार
करने
के
लिए
भगवान
शिव
ने
अपना
परशु
परशुराम
को
दिया
और
जब
परशुराम
ने
सभी
क्षत्रियों
का
संघार
कर
लिया
तो
वो
भगवान
शिव
से
मिलने
के
लिए
कैलाश
जा
पहुंचे।
परशुराम
जब
कैलाश
पहुंचे
तो
भगवान
शिव
ध्यान
लगाए
बैठे
थे
और
किसी
को
भी
अंदर
ना
आने
देने
की
जिम्मेदारी
भगवान
गणेश
को
दी
गई
थी,
इसलिए
भगवान
गणेश
ने
परशुराम
को
द्वार
पर
ही
रोक
दिया
जिससे
क्रोधित
होकर
परशुराम
ने
गणेश
पर
प्रहार
किया
जिससे
उनका
एक
दांत
टूटकर
धरती
पर
जा
गिरा।
तो
इसलिए
नहीं
देखा
जाता
है
गणेश
चतुर्थी
को
चंद्रमा
पौराणिक
कथाओं
में
दर्ज
है
कि
भगवान
गणेश
अधिक
भोजन
करते
थे।
इसी
से
संबंधित
एक
कहावत
है,
कि
एक
बार
भगवान
गणेश
और
उनकी
सवारी
मूषक
एक
जगह
से
दावत
खाकर
लौट
रहे
थे
कि
तभी
एक
सर्प
ने
मूषक
को
काट
लिया
जिससे
मूषक
भाग
उठा
और
भगवान
गणेश
नीचे
जा
गिरे,
जिससे
उनके
पेट
फट
गया
और
भोजन
बाहर
जा
गिरा।
भगवान
गणेश
ने
पुन:
अपना
पेट
बांधा
और
भोजन
को
अंदर
कर
लिया,
ये
पूरा
नजारा
देखकर
चंद्रमा
जोर-जोर
से
हंसने
लगा।
चंद्रमा
की
इस
हरकत
से
क्रोधित
होकर
गणेश
ने
उसको
श्राप
दे
दिया
कि
अब
वो
कभी
नहीं
चमकेगा,
इस
श्राप
से
चिंतित
देवताओं
ने
गणेश
से
श्राप
वापस
लेने
की
विनती
की
कि
वो
मानव
जाति
के
कल्याण
के
लिए
वो
इस
श्राप
को
वापस
ले
लें।
यही
कारण
है
कि
गणेश
चतुर्थी
को
चांद
नहीं
देखा
जाता
है।
भगवान
गणेश
के
32
रूपों
में
एकदंता
22वां
रूप
है,
गणेश
ने
ये
अवतार
मदासुरा
के
मारने
के
लिए
लिया
था।