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आखिर कुंती ने अपने पहले पुत्र कर्ण को क्यों त्‍यागा

By Super Admin
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महाभारत हिन्दू धर्म का वह महाकाव्य है जिससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऋषि वेद व्यास द्वारा रची महाभारत में दो भाइयों कौरवों और पांडव के बीच का संघर्ष दिखाया गया है। जो एक ही घराने से हैं, लेकिन आपस में लड़ते हैं। महाभारत के युद्ध से पूर्व ऐसी बहुत सारी घटना घटित होती हैं जो आगे युद्ध के समय सामने आती हैं। इसमें से एक ऐसी ही घटना है कुन्ती पुत्र कर्ण की।

कर्ण के पिता सूर्य और माता कुन्ती थी लेकिन इनका पालन पोषण अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने किया था। इसीलिए इनका नाम राधेया पड़ा था। राधेया यानि कर्ण इन दोनो को गंगा नदी के किनारे एक टोकरी में मिला था। यही कारण हैं कि इन्हें सूतपुत्र कहा गया। लेकिन ऐसा क्या हुआ था जिससे कुन्ती को अपने पहले पुत्र को त्यागना पड़ा था। आइये जानते हैं।

 Why Kunti abandoned her first child Karna?

कुन्ती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थीं और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। कुन्ती का असली नाम शुरासेना था जो उनके पिता पृथा ने रखा था। महाराज कुन्तिभोज से इनके पिता की मित्रता थी, लेकिन उनकी कोई सन्तान नहीं थी, अत: महाराज पृथा ने उन्हें कुन्तिभोज को गोद देदी और उन्हीं की पुत्री होने के कारण इनका नाम कुन्ती पड़ा। एक बार उनके यहाँ ऋषि दुर्वास आये जिनकी देख रेख के लिए कुन्ती को भेजा गया। कुन्ती के सत्कार और निष्ठा को देख कर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वरदान दिया कि वे किसी भी भगवान को बुला कर उनसे पुत्र मांग सकती हैं।

कुन्ती ने उत्सुकतावश यह जानने की इच्छा हुई कि क्या यह मंत्र मिला काम करता है। तब उसने आकाश में भगवान सूर्य को देखा। कुन्ती ने मंत्र पढ़कर सूर्यदेव का स्मरण किया। भगवान सूर्य, कुन्ती के सामने आ गए। उनके सुंदर रूप को देखकर, कुन्ती आकर्षित हो गईं। सूर्य ने कहा, कुन्ती में तुम्हें पुत्र देने आया हूं। कुन्ती घबरा गईं, उन्होंने कहा कि मैं अभी कुंआरी हूं, ऐसे में मैं पुत्रवती नहीं होना चाहती। सूर्य ने कहा कि में मंत्र के वरदान स्वरूप तुम्हें पुत्र जरूर देकर जाउंगा। इस तरह कुन्ती ने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया। वह बालक जन्म के समय से ही तेजस्वी और सुंदर था।

पुत्र होने के बाद उसे बिन शादी के माँ बने का डर लगने लगा। इसलिए कुन्ती ने उस पुत्र को एक संदूक में रखकर गंगा नदी में बहा दिया। वह संदूक तैरता हुआ, अधिरथ नाम के एक सारथी की नजर में पड़ा। सारथी की कोई संतान नहीं थी, उसने जब संदूक खोला तो उसे पुत्र मिल गया।

आगे चल कर कुन्ती का विवाह पांडू से हुआ। राजवंश में राजा एक से अधिक विवाह करते थे इसलिए पांडू ने भीष्म पितामह के कहने पर मद्रराज की पुत्री माद्री से भी विवाह कर लिया। एक बार राजा पांडू वन में आखेट के लिए गये और उन्होंने ने गलती से वन में हिरणों के जोड़े को मार दिया यह और कोई नहीं एक ऋषि दम्पति थे। उन ऋषि दम्पति ने पांडू को श्राप दे दिया कि जब भी वो अपनी पत्नियों के साथ अन्तरंग होंगे उनकी मृत्यु हो जायेगी। ऋषि के श्राप से पांडू दुखी होकर राजपाट अपनी पत्नियों को सौंपकर वन में ब्रह्मचर्य जीवन बिताने चले गये।

कुन्ती को पता था कि महाराज पांडू को सन्तान की लालसा तो है लेकिन ऋषि के श्राप से वो संतान उत्पन्न नही कर सकते है। अब कुन्ती ने विवाह से पूर्व ऋषि दुर्वासा के वरदान को याद करते हुए कुन्ती ने देवताओ को याद किया और उसके अनुग्रह पर तीन पांड्वो यमराज के अनुग्रह पर युदिष्ठर , वायुदेव के अनुग्रह पर भीम और इंद्रदेव के अनुग्रह पर अर्जुन का जन्म हुआ। अब कुन्ती ने माद्री को भी वन में रहकर मन्त्रो को उसके साथ बाट दिया था फलस्वरूप माद्री ने नकुल औ सहदेव को जन्म दिया।

English summary

Why Kunti abandoned her first child Karna?

Karna was raised by Dritharashtra’s childless charioteer Adhiratha and his wife Radha. He was named Radheya after being found in a basket afloat the Ganga River by the couple.
Story first published: Sunday, June 11, 2017, 15:34 [IST]
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