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जानिए, नेपाल की 'जीवित कन्‍या' की पूजा का सच, पीरियड आने के बाद छीन लेते है 'देवी' की उपाधि

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नवरात्र शुरु हो चुके हैं, 9 दिन तक देवी के सभी स्‍वरुपों की पूजा की जाती हैं। नवरात्र के आखिरी दिन देवी के स्‍वरुपों को पूजने के लिए और 9 दिन की तप का फल पाने के लिए कन्‍या पूजन किया जाता हैं। कन्‍या पूजन का इतिहास बहुत पुराना हैं। लेकिन आपको जानकर बहुत आश्‍चर्य होगा कि भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल में जीवित कन्‍या को देवी बनाकर पूजने का रिवाज हैं, जिन्‍हें 'कुमारी देवी' कहा जाता हैं। जिन्‍हें साक्षात काली का स्‍वरुप मानकर उनको पूजा जाता हैं।

यह एक राष्‍ट्रीय दर्जा होता हैं। यह परंपरा करीब तीन सदी पुरानी बताई जाती है। कालातंर में यहां 11 कुमारी देवियां हैं। जैसे ही एक कन्‍या से देवी की उपाधि वापस ले ली जाती हैं, उस रिक्‍त स्‍थान क‍ी पूर्ति के लिए कुमारी देवी की चयन प्रक्रिया शुरु कर दी जाती हैं।

आइए जानते है कि आखिर कौन होती है कुमारी देवी और कैसे होता हैं उनका चयन?

कैसे साधारण कन्‍या बनती है कुमारी देवी?

कैसे साधारण कन्‍या बनती है कुमारी देवी?

नेपाल की कुमारी देवी का चयन के लिए जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि कुमारी में 32 गुणों का होना अनिवार्य होता हैं। कुंडली के अलावा उनके भीतर कुछ ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने में मदद करते हैं जैसे उनके समक्ष भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष वहां नृत्य करते हैं। अगर जो भी बच्ची बिना किसी डर के इन परिस्थितियों को पार कर लेती हैं, उसे मां काली का अवतार मानकर कुमारी देवी बनाया जाता है।

 रॉयल गॉडेस

रॉयल गॉडेस

नेपाल के लोगों की जीवित देवी या कुमारी देवी शाक्य या वज्रचार्य जाति से संबंध रखती हैं, इन्हें नेपाल के नेवारी समुदाय द्वारा पहचाना जाता है। नेपाल में करीब 11 कुमारी देवियां होती हैं जिनमें से रॉयल गॉडेस या कुमारी देवी को सबसे प्रमुख माना गया है।

3 साल के उम्र में ही बना दी जाती हैं..

3 साल के उम्र में ही बना दी जाती हैं..

शाक्य और वज्राचार्य जाति की बच्चियों को 3 वर्ष का होते ही उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है और उसके बाद 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं। जिसके बाद चयनित कन्‍या को ‘कुमारी' नाम दे दिया जाता है। इन सभी बच्चियों को ‘अविनाशी' अर्थात जिसका अंत नहीं हो सकता, कहा जाता है।

मासिक धर्म आने से पहले तक

मासिक धर्म आने से पहले तक

ये कन्‍याएं ताउम्र के लिए रॉयल गोडेस या कुमारी देवी बनकर नहीं रह सकती हैं। इसकी भी एक अवधि होती हैं, जब तक ये यौवन की दहलीज में पांव न रख लें। अर्थात जब तक इन्हें मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाता, तब तक ये कुमारी देवी की पदवी पर रहती हैं और उसके बाद कोई अन्य बालिका कुमारी देवी बनाई जाती है।

लोगों की आस्‍था..

लोगों की आस्‍था..

जब नेपाल में अप्रेल 2015 में भूकंप आया था अत्याधिक तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल की जमीन को हिलाकर रख दिया, हजारों की संख्या में लोग इस प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए। लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वह स्थान था जीवित देवी के नाम से प्रख्यात नेपाल की ‘कुमारी देवी' का मंदिर।

 ये है मान्‍यता..

ये है मान्‍यता..

नेपाल के लोगों का मानना है कि ये जीवित देवियां आपदा के समय उनकी रक्षा करती हैं। इस मान्यता की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आरंभ में ही हो गई थी। तब से लेकर अब तक नेपाल निवासी छोटी बच्चिययों को देवी का रूप मानकर उन्हें मंदिरों में रखकर उनकी पूजा करते हैं। उन्हें समाज और अपने परिवारों से अलग रहना पड़ता है।

 अलग हो जाता है रहन सहन

अलग हो जाता है रहन सहन

कुमारी देवी बनने के बाद उन्हें कुमारी घर में रखा जाता है, जहां रहकर वे अपना ज्यादातर समय पढ़ाई और धार्मिक कार्यों में बिताती हैं। वह केवल त्यौहार के समय ही घर से बाहर निकल सकती हैं लेकिन उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ने चाहिए।

 ऐसे चली जाती है पदवी

ऐसे चली जाती है पदवी

कुमारी देवी' की पदवी उनसे तब छीन ली जाती है जब उन्हें या तो मासिक धर्म शुरू हो जाए या फिर किसी अन्य वजह से उनके शरीर से रक्त बहने लगे या फिर मामूली सी खरोंच ही क्यों ना पड़ जाए।

 नहीं कर सकती शादी

नहीं कर सकती शादी

कुमारी देवी की पदवी से हटने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन तो मिलती है लेकिन नेपाली मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जो भी पुरुष पूर्व कुमारी देवी से विवाह करता है उसकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है। इसलिए कोई भी पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, जिस कारण उनमें से अधिकांश आजीवन कुंवारी रह जाती हैं।

English summary

Facts on the Kumari Living Goddess in Nepal

In Nepal the Kumari is a prepubescent girl selected by a council from the Newari people that acts as a manifestation of divine female energy.
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