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काशी के इस श्मसान घाट पर शिव भक्त खेलते हैं "मसाने की होली"
आपने बरसाना की लठ्ठमार और राजस्थान की बेंतमार होली के बारे में सुना होगा। लेकिन कभी आपने श्मसान में जलती चिता की राख से होली खेलते हुए के बारे मे सुना हैं? सुनकर हैरत हो रही होगी ना कि भला होली जैसा त्योहार कोई चिता की राख से कैसे खेल सकता हैं।
तो आज हम आपको ऐसी अनोखी होली के बारे में जो बनारस या काशी में चिता की राख के साथ खेली जाती हैं। जी हां वाराणसी कह लो या बनारस चाहे तो काशी के नाम से ही पुकार लो, यहां के सबसे नामचिन्ह मर्णिकर्णिका श्मसान घाट शिव भक्त हर साल रंग एकादशी के मौके पर चिता की राख से होली खेलते हैं।
आइए जानते हैं वाराणसी के इस अनोखी होली के बारे में।
सदियों से चली आ रही है यह प्रथा..
दरअसल ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते हैं। ये सदियों पुरानी प्रथा काशी में चली आ रही है। काशी में होली मसाने की होली के नाम से जानी जाती है। इस होली को खेलने वाले शिवगणों को ऐसा प्रतीत होता है कि वह भगवान शिव के साथ होली खेल रहे हैं। इसलिए काशी के साधु संत और आम जनता भी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते हैं।
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यह है मान्यता..
यहां होली की शुरुआत एकादशी के बाबा विश्वनाथ के दरबार से होती है। साधु-संत माता पार्वती को गौना कराकर लौटते हैं। अगले दिन बाबा विश्वनाथ काशी में अपने चहेतों या शिवगण के साथ मर्णिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं। अपने चेलों भूत-प्रेत के साथ होली खेलते हैं।
महाशिवरात्रि से तैयारी
मर्णिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेलने की तैयारियां महाशिवरात्रि के समय से ही प्रारम्भ हो जाती हैं। इसके लिए चिताओं से भस्म अच्छी तरह से छानकर इक्ट्ठी की जाती है।
विधिवत तरीके से खेलते है होली
इस पराम्परा के तहत रंग एकदशी के दिन सुबह जल्दी मर्णिकर्णिका घाट पर साधु और अघोरी लोग जमा हो जाते हैं। जहां डमरुओं की नाद के साथ बाबा मसान नाथ की आरती शुरु होती है। इसमें विधिपूर्वक बाबा मसान नाथ को गुलाल और रंग लगाया जाता है। आरती होने के बाद साधुओं की टोली चिताओं के बीच, मुर्दो के बीच इक्ट्ठी होकर हर हर महादेव के साथ ही चिता की भस्म के साथ होली खेलना शुरु करते हैं। और होली खेलके मर्णिकर्णिका घाट पर स्नान करके लौट जाते हैं।
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गिरा था शिव का कुंडल
काशी के इस श्मशान के बारे में कहा जाता है कि यहां दाह संस्कार करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मर्णिकर्णिका घाट पर शिव के कानों का कुण्डल गिरा था जो फिर कहीं नहीं मिला, जिसकी वजह से यहां मुर्दे के कान में पूछा जाता है कि कहीं उसने शिव का कुंडल तो नही देखा।