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राहुल द्रविड़ ने कहा था इस बच्चे का ख्याल रखना, अब है वो टीम इंडिया का स्टार
इस
आर्टिकल
के
ज़रिये
उस
क्रिकेटर
की
ज़िन्दगी
को
क़रीब
से
जानने
की
कोशिश
की
गयी
है
जिन्होंने
2018
आईपीएल
में
किंग्स
XI
पंजाब
की
तरफ
से
खेलते
हुए
पहले
ही
मुक़ाबले
में
टूर्नामेंट
के
इतिहास
का
सबसे
तेज़
अर्धशतक
महज़
14
गेंदों
का
सामना
करते
हुए
पूरा
कर
दिया।
जी
हां,
हम
बात
कर
रहे
हैं
केएल
राहुल
की,
जिनके
पिता
उनका
नाम
गावस्कर
के
बेटे
के
नाम
पर
रखना
चाहते
थे
लेकिन
नाम
रखते
वक़्त
उन्हें
रोहन
नाम
याद
ही
नहीं
रहा
और
जब
नाम
याद
आया
तब
तक
बर्थ
सर्टिफिकेट
में
राहुल
नाम
लिखा
जा
चुका
था।
दरअसल
राहुल
के
पिता
सुनील
गावस्कर
के
बहुत
बड़े
प्रशंसक
थे
और
वो
चाहते
थे
की
जब
उनका
बेटा
हो
तो
उसका
नाम
वो
सुनील
ही
रखे।
ये
सपना
एक
गलती
की
वजह
से
अधुरा
रह
गया
लेकिन
राहुल
ने
ये
साबित
कर
दिया
की
पहचान
हुनर
से
बनती
है,
नाम
से
नहीं।
केएल
राहुल
अपने
पिता
के
अधूरे
सपने
को
अपने
ही
अंदाज़
में
पूरा
कर
रहे
हैं।
पेन-कॉपी
और
बैट-बॉल
के
बीच
बनाया
बेहतरीन
तालमेल
राहुल
का
जन्म
साल
1992
के
अप्रैल
महीने
में
18
तारीख
को
हुआ
था।
राहुल
को
जन्म
के
साथ
ही
परिवार
से
अनुशासन
तोहफे
में
मिला।
मम्मी
और
पापा
दोनों
प्रोफेसर
थे
तो
घर
में
पढ़ाई-लिखाई
का
माहौल
शुरू
से
था
और
इसी
माहौल
में
हाथों
में
बल्ला
लिए
राहुल
धीरे-धीरे
बड़े
हो
रहे
थे।
राहुल
के
बल्ले
की
धार
धीरे-धीरे
तेज
होती
जा
रही
थी
जिसका
सबूत
उन्होंने
पड़ोसियों
के
घरों
की
खिड़कियां
तोड़कर
दिया।
केएल
राहुल
की
गिनती
अच्छे
स्टूडेंट
में
होती
थी।
स्कूल
में
वो
पढ़ाई
में
भी
काफी
आगे
थे
और
क्रिकेट
में
भी
लेकिन
खुद
राहुल
तय
कर
चुके
थे
कि
भविष्य
के
लिए
क्रिकेट
की
राह
को
ही
चुनेंगे
और
उनके
इस
फैसले
को
घर
के
लोगों
का
साथ
मिला।
मैट्रिक
की
परीक्षा
में
90
प्रतिशत
अंक
लेने
वाले
राहुल
के
पिता
उन्हें
क्रिकेट
की
तैयारी
के
लिए
दक्षिण
क्रिकेट
एसोसिएशन
ले
गए
लेकिन
ये
सफर
बहुत
आसान
भी
नहीं
था।
विकेट
के
पास
खड़े
होकर
सीखा
विकेटकीपिंग
का
हुनर
ट्रेनिंग
के
लिए
राहुल
हमेशा
वक़्त
पर
पहुंचते
थे
और
उन्हें
क्रिकेट
की
बारीकियां
सिखने
के
लिए
रोज़
स्कूल
से
20
किलोमीटर
दूर
जाना
पड़ता
था।
उनके
बचपन
के
कोच
बताते
हैं
की
विकेट
के
पास
खड़े
होने
से
राहुल
ने
हर
गेंदबाज़
और
बल्लेबाज़
के
हाथों
के
मूवमेंट
को
नज़दीक
से
देखा
और
इसकी
मदद
से
उन्होंने
विकेटकीपिंग
के
गुण
का
विकास
किया।
विकेट
के
पीछे
और
आगे
दोनों
जगह
उनकी
कुशलता
ने
उन्हें
टीम
का
अहम्
खिलाड़ी
बना
दिया।
केएल
राहुल
जब-जब
बल्ले
से
शानदार
प्रदर्शन
करते
मैंगलोर
की
टीम
जीत
जाती
लेकिन
उनके
आउट
होते
ही
पूरी
टीम
ताश
के
पत्तों
की
तरह
बिखर
जाती।
उनके
बैटिंग
स्टाइल
की
चर्चा
चारों
ओर
होने
लगी
थी।
द्रविड़
ने
कहा
था
इस
बच्चे
का
ख्याल
रखना
अंडर-13
के
खेल
के
दौरान
राहुल
द्रविड़
की
नज़र
केएल
राहुल
पर
पड़ी।
लोकेश
राहुल
उस
दिन
ताबड़तोड़
बल्लेबाजी
कर
रहे
थे
और
दोहरे
शतक
के
साथ
राहुल
की
कलात्मक
बैटिंग
स्टाइल
ने
द्रविड़
को
हैरान
कर
दिया।
उन्होंने
केएल
राहुल
के
कोच
से
कहा
था
इस
बच्चे
का
ख्याल
रखिए।
17
साल
की
उम्र
में
वो
अपने
परिवार
के
साथ
मैंगलोर
से
बैंगलोर
आ
गए।
साल
2010
उनके
क्रिकेटिंग
करियर
में
एक
उड़ान
लेकर
आया।
अंडर-19
में
उनका
सलेक्शन
हुआ,
कर्नाटक
की
टीम
के
लिए
खेलते
हुए
पंजाब
के
खिलाफ
फर्स्ट
क्लास
मैच
में
डेब्यू
करने
का
मौका
मिला
और
इसी
वर्ष
लिस्ट
ए
के
लिए
हैदराबाद
के
खिलाफ
डेब्यू
किया।
राहुल
ने
इन
तीनों
ही
डेब्यू
में
कमाल
कर
दिया।
मुश्किल
राहों
पर
भी
चलने
का
हुनर
जानते
हैं
राहुल
अब
राहुल
के
लिए
क्रिकेट
का
दायरा
बड़ा
हो
चुका
था।
घरेलू
क्रिकेट
में
लोकेश
राहुल
के
नाम
का
जलवा
साल
2010-11
में
शुरु
हुआ
जहां
पूरे
सीज़न
में
उन्होंने
1033
रन
जोड़े
जिसमें
तीन
शानदार
शतक
शामिल
थे।
फाइनल
मुक़ाबले
में
महाराष्ट्र
के
खिलाफ
खेलते
हुए
उन्होंने
131
रनों
की
पारी
खेली
थी।
साल
2010
में
ही
उन्हें
अंडर-19
वर्ल्ड
कप
में
खेलने
का
मौका
मिला
था।
मगर
आगे
चलकर
राहुल
को
टीम
और
मैदान
दोनों
से
बाहर
होना
पड़ा
था।
बैक
इंजरी
की
वजह
से
वो
पूरा
एक
सीज़न
2011-12
में
एक
भी
मैच
नहीं
खेल
सके।
अगले
सीजन
में
वो
फिट
तो
रहे
लेकिन
उनका
बल्ला
कुछ
खास
नहीं
कर
सका।
लेकिन
इस
सब
अवरोधों
ने
मिलकर
राहुल
की
इच्छाशक्ति
को
और
मज़बूत
कर
दिया।
2013-14
का
साल
राहुल
के
लिए
काफी
राहत
भरा
रहा।
उन्होंने
बेहतरीन
प्रदर्शन
किया
और
रणजी
ट्रॉफी
में
कर्नाटक
की
टीम
को
जीत
भी
मिली।
इसके
बाद
2015
में
दिलीप
ट्रॉफी
टूर्नामेंट
के
फाइनल
में
लोकश
राहुल
ने
पहली
पारी
में
185
रन
और
130
रन
बनाकर
अपनी
बल्लेबाजी
का
स्तर
दिखाया।
रोहित
शर्मा
के
स्थान
पर
मिला
भारतीय
टीम
में
मौका
राहुल
की
दमदार
परियों
ने
बीसीसीआई
चयनकर्ताओं
को
प्रभावित
किया
जिन्होंने
2014
में
ऑस्ट्रेलिया
दौरे
के
लिए
रोहित
शर्मा
के
स्थान
पर
उन्हें
मौका
दिया।
मगर
वो
बल्ले
से
कुछ
खास
नहीं
कर
पाए
थे।
चयनकर्ताओं
ने
एक
बार
फिर
इस
स्टाइलिश
बल्लेबाज़
पर
भरोसा
दिखाया
और
इस
खिलाड़ी
ने
चौथे
मैच
में
अंतराष्ट्रीय
क्रिकेट
में
अपना
पहला
शतक
जमाया।
इस
दौरे
में
उनका
प्रदर्शन
औसत
रहा
लेकिन
वो
काफी
अनुभव
अपने
साथ
लेकर
आए
जिसका
प्रमाण
उन्होंने
घरेलु
क्रिकेट
में
तिहरा
शतक
लगाकर
किया।
इंटरनेशनल
क्रिकेट
में
राहुल
का
करियर
उतार-चढ़ाव
से
भरा
रहा
है।
2016
में
ज़िम्बाब्वे
दौरे
पर
गई
टीम
इंडिया
के
प्लेइंग
इलेवन
में
केएल
राहुल
का
नाम
भी
शामिल
था।
11
जून
को
हरारे
के
मैदान
पर
अपने
पहले
ही
वनडे
मैच
में
उन्होंने
नाबाद
100
रन
की
पारी
खेली।
इतना
ही
नहीं
इस
सीरीज
में
उन्हें
एक
मैन
ऑफ
द
मैच
अवॉर्ड
और
मैन
ऑफ
द
सीरीज
का
ख़िताब
भी
मिला।
इसी
दौरे
पर
उन्हें
टी-20
में
भी
खेलने
का
मौका
मिला
लेकिन
18
जून
2016
को
हरारे
स्पोर्टस
क्लब
के
मैदान
पर
लोकेश
राहुल
बगैर
खाता
खोले
ही
आउट
हो
गए।
इसी
के
साथ
20-20
क्रिकेट
में
पहली
ही
बॉल
पर
पवेलियन
लौट
जाने
वाले
वो
पहले
भारतीय
खिलाड़ी
बन
गए।
वैसे
सबसे
कम
पारी
खेलकर
क्रिकेट
के
तीनों
प्रारूपों
में
शतक
बनाने
का
रिकॉर्ड
राहुल
के
नाम
है।
आईपीएल
में
भी
है
जलवा
केएल
राहुल
को
सबसे
पहले
रॉयल
चैलेंजर
बैंगलोर
की
टीम
ने
खरीदा।
फिर
उन्हें
एक
बार
हैदराबाद
की
ओर
से
खेलने
का
मौका
मिला।
लेकिन
2016
में
फिर
से
बैंगलोर
की
टीम
ने
उन्हें
खरीद
लिया।
साल
2018
के
संस्करण
के
लिए
जनवरी
में
नीलामी
का
आयोजन
किया
गया
था
जहां
इस
बार
पंजाब
की
टीम
ने
इस
खिलाड़ी
की
सेवाएं
लेने
का
फैसला
लिया।
और
भी
हैं
रिकॉर्ड
लोकेश
राहुल
क्रिकेट
के
तीनों
फॉर्मेट
में
छक्के
की
मदद
से
शतक
पूरा
करने
वाले
दुनिया
के
एकलौते
बल्लेबाज
हैं।
राहुल
के
नाम
टेस्ट
क्रिकेट
में
लगातार
सात
अर्धशतक
लगाने
का
भी
रिकॉर्ड
है।
एक
बार
वो
199
के
फेर
में
फंसकर
इंटरनेशनल
क्रिकेट
में
दोहरा
शतक
बनाने
से
चूक
गए।
बदलते
दौर
के
क्रिकेट
में
केएल
राहुल
की
तुलना
किसी
और
क्रिकेटर
से
करना
उनकी
प्रतिभा
को
चुनौती
देने
के
समान
होगा।
टीम
इंडिया
को
अपने
इस
स्टार
से
ढेरों
उम्मीदें
हैं।
उन्हें
वन
इंडिया
हिंदी
की
ओर
से
शुभकामनाएं।