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छठी बार में बना था तिरंगा, जाने इससे राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े दिलचस्प तथ्य
पूरे देश में 70 वें गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया जा रहा है। 26 अगस्त को एक बार फिर दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के लाल किले, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, हर सरकारी बिल्डिंग पर, हमारी सेना द्वारा फ्लैग होस्टिंग के वक्त यहां तक कि विदेश में मौजूद इंडियन एंबेसीज में फहराए जाने वाले झंडे कहां बनते हैं? इसके अलावा क्या आप जानते है कि वर्ष 1904 से 1947 से 6 बार भारतीय तिरंगे में बदलाव किए गए।
कई फ्रीडम फ्राइटर्स ने इसे अलग पहचान दी, लेकिन तिरंगे की फाइनल डिजाइन पिंगली वैंकया ने बनाई। आइए जानते भारतीय झंडे से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जो हर भारतीय को मालूम होनी चाहिए।
6 बार तिरंगे का बदल चुका है स्वरुप
समय के साथ हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भी कई बदलाव हुए हैं। आज जो तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज है उसका यह छठवां रूप है। इस ध्वज की परिकल्पना पिंगली वैंकैयानंद ने की थी। इसे इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पहले ही आयोजित की गई थी। इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया।
यहां नहीं कर सकते हैं तिरंगा का इस्तेमाल
किसी भी गाड़ी के पीछे, बोट या प्लेन में तिरंगा नहीं लगाया जा सकता. और न ही इसका प्रयोग किसी बिल्डिंग को ढकने किया जा सकता है।
देश के शहीदों के लिए सम्मान
देश के लिए जान देने वाले शहीदों और देश की महान शख्सियतों को तिरंगे में लपेटा जाता है. इस दौरान केसरिया पट्टी सिर की तरफ और हरी पट्टी पैरों की तरफ होनी चाहिए। शव को जलाने या दफनाने के बाद उसे गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता है या फिर वजन बांधकर पवित्र नदी में जल समाधि दे दी जाती हैं।
राष्ट्रीय शोक के दौरान
भारत के संविधान के अनुसार जब किसी राष्ट्र विभूति का निधन होने और राष्ट्रीय शोक घोषित होने पर कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता है। लेकिन सिर्फ उसी भवन का तिरंगा झुकाया जाता है जिस भवन में उस विभूति का पार्थिव शरीर रखा है। जैसे ही पार्थिव शरीर को भवन से बाहर निकाला जाता है, वैसे ही ध्वज को पूरी ऊंचाई तक फहरा दिया जाता है।
हीरे-जवाहरातों से जड़ा तिरंगा
राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा हैं, जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है।
हुबली में बनता है तिरंगा
भारत में कनार्टक की राजधानी बेंगलुरू से 420 किमी स्थित हुबली में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (फेडरेशन) यानी KKGSS खादी व विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन द्वारा सर्टिफाइड देश की अकेली ऑथराइज्ड नेशनल फ्लैग मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है जो झंडा बनाने का और सप्लाई करने का काम करता है। देश में जहां कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज इस्तेमाल होता है, यहीं के बने झंडे की होती है सप्लाई। विदेश में मौजूद इंडियन एंबेसीज के लिए भी यहीं बनाए जाते हैं झंडे।
एक दर्जन लोग ही जानते है राष्ट्रीय ध्वज की बुनाई
झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी-टाट। खादी बनाने के लिए केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग किया जाता है। यहां तक की इसकी बुनाई भी सामान्य बुनाई से भिन्न होती है। ये बुनाई बेहद दुर्लभ होती है। इसे केवल पूरे देश के एक दर्जन से भी कम लोग जानते हैं। अब तक धारवाड़ के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में ही खादी की बुनाई की जाती रही है। मध्य भारत खादी संघ का ग्वालियर केंद्र अब देश का ऐसा तीसरा केंद्र बन गया है
स्वतंत्रता से पहले राष्ट्रध्वज
7 अगस्त 1906: पहली बार राष्ट्रीय झंडे को कोलकाता के पारसी बागान चौक पर फहराया गया।
1907: जर्मनी के स्टटगार्ट में मैडम भीकाजी कामा ने दूसरा झंडा फहराया।
1917: डॉक्टर एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने कोलकाता में होम रूल आंदोलन के दौरान तीसरा झंडा फहराया।
1921: पिंगली वेंकैया ने हरे और लाल रंग का इस्तेमाल करते हुए झंडे तैयार किया।
1931: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर तिरंगे को अपना
फ्लैग कोड ऑफ इंडिया
देश में 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया' (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है।