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बावनी इमली शहीद स्मारक: एक इमली का पेड़ जिस पर 52 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी

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हमारे देश को दासता की बेड़ियों से मुक्‍त कराने के ल‍िए अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। आजाद भारत के सपने को पूरा करने के ल‍िए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को करीब 200 साल ब्रिटिश शासकों से दो-दो हाथ करने पड़े थे। इस लंबे संघर्ष में हमारे देश की मिट्टी ने कई नायक पैदा किए। इनमें से कई के नाम तो लोगों के जुबान पर हैं। वहीं, उस वक्त कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए जिन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी को न्योछावर तो कर दी। लेकिन, देश की जनता अभी भी करीब-करीब उनके नाम और कारनामों से अनजान ही है। इनमें एक बड़ा नाम अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह 'अटैया' और उनके 51 साथियों के हैं। ज‍िन्‍हें अंग्रेजों ने व‍िद्रोह की सजा में एक इमली के पेड़ से लटकाकर फांसी दे द‍ी थी। जिस इमली के पेड़ में इन क्रांतिकार‍ियों को फांसी दी गई उसे बावनी इमली के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं इससे जुड़ा इतिहास।

अंग्रेज़ो की नाक में कर द‍िया था दम

अंग्रेज़ो की नाक में कर द‍िया था दम

बावनी इमली शहीद स्थल उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट पारादान में स्थित है। ठाकुर जोधा सिंह अटैया, बिंदकी के अटैया रसूलपुर (अब पधारा) गांव के निवासी थे। वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से प्रभावित होकर क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया बन गए थे। जोधा सिंह ने अपने दो साथियो दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ मिलकर गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत करी और अंग्रेज़ो की नाक में दम करके रख दिया।

बन गए मुखबरी का शिकार

बन गए मुखबरी का शिकार

जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था। सात दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर एक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को जहानाबाद में तहसीलदार को बंदी बना कर सरकारी खजाना लूट लिया था। साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। चार फरवरी 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने आक्रमण किया लेकिन वो बच निकले। लेकिन जैसा की हमारे कई क्रांतिकारि अपनों की ही मुखबरी का शिकार बने ऐसा ही जोधा सिंह और उनके साथियो के साथ हुआ।

28 अप्रैल से 4 मई तक शहीदों के शव पेड़ पर झूलते रहे

28 अप्रैल से 4 मई तक शहीदों के शव पेड़ पर झूलते रहे

जोधा सिंह 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ खजुआ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सभी को इस इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार मई की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ महराज सिंह बावनी इमली आये और शवों को उतारकर शिवराजपुर गंगा घाट में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की। तभी से यह इमली का पेड़ भारत माता के इन अमर सपूतो की निशानी बन गया। आज भी यहां पर शहीद दिवस 28 अप्रेल को और अन्य राष्ट्रीय पर्वो पर लोग पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचते है।

English summary

52 Imali Shahid Smarak Story & History In Hindi

Bawani Imli is a historical place where Britishers hanged several freedom fighters of that region during the freedom struggle here.
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